फ़िल्म इंगलिश-विंगलिश में श्रीदेवी पहली बार अकेले विदेश यात्रा पर अपनी बहन के पास अमेरिका जाने के लिये हवाई जहाज से सफ़र कर रही होती हैं। अमिताभ बच्चन, जो उनके सहयात्री होते हैं उनसे पूछते हैं कि क्या वो पहली बार जा रहीं हैं और बातों बातों में एक अच्छी समझाईश उन्हें और हम सबको दे देते हैं।
\”पहली बार एक ही बार आता है। उसका भरपूर आनद लें। बेशक, बेफिक्र, बिंदास\”।
हम भी अपनी बहुत सारी पहली बातें याद रह जाती हैं। क्योंकि पहली बार की बात ही कुछ और होती है। ज़्यादातर ये मोहब्बत तक ही सीमित नहीं होती हैं। हाँ उसको याद रखने के बहुत सारे कारण हो सकते हैं। जैसे मुझे अपनी पहली तनख्वाह याद है और मैंने उसे कैसे खर्च किया ये भी।
ठीक उसी तरह मुझे हमेशा याद रहेंगे अपने पहले बॉस नासिर क़माल साहब। पत्रकारिता से दूर दूर तक मेरा कोई लेना देना नहीं था। इसकी जो भी समझ आयी वो उन्ही की देन है। चूंकि ये मेरी पहली नौकरी थी और अनुभव बिल्कुल भी नहीं था तो उनके लिए और भी मुश्किल रहा होगा। लेकिन उन्होंने एक बार भी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करी और न मेरी लिखी कॉपी को कचरे के डब्बे में डाला।
उन दिनों टाइपराइटर पर लिखना होता था। वो उसी पर एडिट कर कॉपी को पढ़ने लायक बनातेे। वो खुद भी कमाल के लेखक। भोपाल के बारे में ऐसी रोचक कहानियाँ थीं उनके पास जिसका कोई अंत नहीं। कब वो बॉस से दोस्त बन गए पता नहीं चला। उनके जैसे सादगी से जीवन जीने वाले बहुत कम लोग देखें हैं।
भोपाल छुटा लेकिन हम हमेशा संपर्क में रहे। वो कुछ दिनों के लिये बैंगलोर भी गए लेकिन पत्रों का सिलसिला जारी रहा। बीच में एक ऐसा भी दौर आया कि मैंने पत्रकारिता छोड़ने का मन बना लिया और नासिर भाई को बताया। उन्होंने एक अच्छा ख़ासा ईमेल मुझे लिख कर समझाया और अपने निर्णय के बारे में पुनः विचार करने के लिये कहा।
आज उनका जन्मदिन है लेकिन वो मेरी बधाई स्वीकार करने के लिए हमारे साथ नहीं हैं। वो अपने जन्मदिन को लेकर भी थोड़े परेशान रहते। कहते सब लोग गांधीजी की पुण्यतिथि मना रहे हैं तो मैं कैसे अपना बर्थडे मनाऊं।
मुझे इस बात का हमेशा मलाल रहेगा कि उनसे मुलाकात नहीं हो पाई। लेकिन साथ ही इसका फक्र भी रहेगा कि उन्होंने मुझ जैसे को भी लिखना सीखा ही दिया। मेरी खुशनसीबी की नासिर भाई मुझे मेरे पहले बॉस के रूप में मिले।
जिस तरह अच्छी टीम बनती नहीं बन जाती है उसी तरह अच्छे बॉस मिलते नहीं मिल जाते हैं।