इतना तो याद है मुझे की उनसे मुलाक़ात हुई

ये गाना चित्रहार की देन है। जिन्हें इस प्रोग्राम के बारे में नहीं पता – बरसों पहले दूरदर्शन पर बुधवार और शुक्रवार को ये कार्यक्रम आता था। मतलब आपके संगीत का हफ्ते का डोज़। फ़िर शुरू हुआ रविवार की रंगोली का सिलसिला जो अभी भी चालू है। वैसे तो चित्रहार अभी भी आता है लेकिन समय का पता नहीं।

चित्रहार में अक्सर ये गाना आता था। देखने में भी अच्छा लगता था और सुनने में भी। फ़िल्म देखी नहीं है। पिछले दिनों लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी के संगीत पर इंडियन आइडल देखा तो फ़िर से पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गयी।

हमें गाने क्यों याद रहते हैं? ये क्या उसका संगीत है, किसने गाया है या उसके बोल या उसे कैसा फिल्माया गया है? आपको गाने कैसे याद रहते हैं?

जो कुछ नहीं तो ये इशारे क्यों, ठहर गए मेरे सहारे क्यों

आज जब महाराष्ट्र में पाला बदलने की बात हो रही थी तब एक नेता ने कहा \”वो कल नज़र मिला के बात नहीं कर रहे थे\”। तो ये सदाबहार देव आनंद साहब का गाना उन्हीं आंखों के नाम। वैसे इस फ़िल्म के सभी गाने कमाल के थे और पिताजी के मुताबिक इस फ़िल्म के बाद भुट्टे खाने का चलन बढ़ गया था। किशोर कुमार और लताजी की आवाज़ में मजरूह सुल्तानपुरी साहब के बोल और संगीत सचिन देव बर्मन जी का।

लिखा है तेरी आँखों में,
किसका अफ़साना
लिखा है तेरी आँखों में,
किसका अफ़साना
अगर इसे समझ सको,
मुझे भी समझाना
लिखा है तेरी आँखों में,
किसका अफ़साना

जवाब सा किसी तमन्ना का
लिखा तो है मगर अधूरा सा
अरे ओ
जवाब सा किसी तमन्ना का
लिखा तो है मगर अधूरा सा
हो,
कैसी न हो मेरी हर बात अधूरी
अभी हूँ आधा दिवाना
लिखा है तेरी आँखों में,
किसका अफ़साना
अगर इसे समझ सको,
मुझे भी समझाना
लिखा है तेरी आँखों में,
किसका अफ़साना

जो कुछ नहीं तो ये इशारे क्यों
ठहर गए मेरे सहारे क्यों
अरे ओ
जो कुछ नहीं तो ये इशारे क्यों
ठहर गए मेरे सहारे क्यों
हो, थोड़ा सा हसीनों का सहारा लेके चलना
है मेरी आदत रोज़ाना
लिखा है तेरी आँखों में,
किसका अफ़साना
अगर इसे समझ सको, मुझे भी समझाना
लिखा है…

दो घड़ी वो जो पास आ बैठे, हम ज़माने से दूर जा बैठे

एक पुराना विज्ञापन आज फ़िर से देखा। घर की बहू सुबह से सबकी सेवा में लगी रहती है। अपनी चाय भी पीना भूल जाती है। रात को पति देखता है की सबको गर्म गर्म खाना खिलाने के बाद वो स्वयं अकेले ठंडा खाना खाती है। लेकिन उस बीच में भी उसे कभी सास की दवाई तो कभी बिटिया की किताब ढूंढने के लिये उठना पड़ता है। पति बड़ा आहत होता है और अगले ही दिन से उसमें पत्नी प्रेम जाग उठता है और वो उससे कहता है अबसे पहले तुम, जो की विज्ञापन की थीम भी है।

इस पर लोगों की प्रतिक्रिया ही इस पोस्ट की जननी है। कुछ महिलाओं ने इससे सहमति जताई और कहा की महिलाओं को भी घर में सम्मान मिलना चाहिये। लेकिन कुछ अन्य महिलाओं ने कहा दरअसल अंत में खाने के पीछे कारण है सही अंदाज़ा लगाना की कितनी रोटियां बनाई जायें और कितनी सब्ज़ी बच रही है। इसमें कोई महिला सशक्तिकरण जैसी कोई बात नहीं है और ये एक प्रक्टिकल सोच है।

इस विज्ञापन के बारे में दो विचार थोड़े अलग थे। एक किसी ने पूछा कि सास क्यों नहीं बहु का साथ देती रसोई में। क्या बहु सिर्फ़ काम करने के लिये ही है। शायद जिन महिलाओं को इस विज्ञापन का संदेश पसंद आया उनके साथ ऐसा व्यवहार होता है इसलिये उन्हें कहीं न कहीं अपनी पीड़ा दिखाई दी।

मैं स्वयं ऐसे कई परिवारों को जानता हूँ जो पढ़े लिखे हैं। अच्छे पद पर काम कर चुके हैं लेकिन बहु को रिमोट कंट्रोल करते हैं। सास ससुर रहते दूसरे शहर में हैं लेकिन बहु की मजाल है कि वो अपने हिसाब से कोई काम कर सके। उसके कहीं आने जाने पर रोकटोक है और रिश्तेदारों से फ़ोन पर बात करने पर भी पाबंदी।

दूसरी बात जिसने मुझे सोचने पर मजबूर किया वो पति जी का एकदम से जागृत होना। मतलब इतने वर्षों से क्या ये उन्हें दिखाई नहीं दे रहा था? अच्छी बात है की उन्हें इस बात का एहसास हुआ, देर से ही सही।

https://youtu.be/Sm_tmr7cYQk

Smog is such a good PR exercise, no one wants to miss it!

For a journalist there is so much happening in India right now to report that Hindi saying \”haath main ladoo aur sar kadhai main\” (Hands full is sufficient) is just apt. Look at it – Delhi is full of smog, there is Whatsapp snooping, two political parties in Maharashtra are fighting like families agreed to a match but now refusing to take Saat Phera demanding more alimony. And if this is not enough, the police and lawyers are now fighting it out in the open with several videos of policemen being attacked doing the rounds.

None of these, except Delhi smog, is going to make an impact. Maharashtra will have a government by tomorrow, police and lawyers are conjoined twins and will call a truce, Whatsapp snooping is already dead. So what remains is smog which has been troubling Dilliwalas for the past three years. It usually happens around this time of the year and it has been happening for the last three years without fail.  Think about it – We cannot say the same about monsoon (which is surprising with all the forecast apparatus at our disposal).

Yet, every year the citizens face this problem. Every body wakes up couple of days after they have inhaled the poison and then it\’s free for all. There are jokers who break the rule and claim the odd-even thing is really odd and certainly not even. The National Green Tribunal wakes up from the slumber and so does our legal system. Strong worded orders are passed and that\’s it.

What this offers the circus managers is a lifetime PR opportunity. So a minister would cycle to his office and get it recorded by media. Another minister who rode a bicycle a month back as good health initiative will not do so now it as it would give mileage to opposition. Some will distribute free mask to the people on road. All the stake holders behave like Chatur of 3 idiots who would release obnoxious air in the environment and blame his roommates.

What no one realises is after the photo op everyone gets into air purified rooms and breathe clean air. It\’s you and me who inhale the air, get sick, may be lung cancer and die. Human life has no value in India. None. While we may believe in rebirth and all that but if I leave the planet in this condition I would want to come back as an alien.

As for common man, he will dutifully add to the chaos not realising it\’s he who has created the problem and the solution also lies with him.

दिल मेरा धक धक डोले, दीवाना लिये जाये हिचकोले

जब इस फ़िल्म की घोषणा हुई थी तब सोशल मीडिया नहीं था। लेकिन घर पर घमासान शुरू हो गई थी। एक आमिर खान का खेमा और एक सलमान खान का। चूँकि बहुत ज़्यादा खबरें भी नहीं थीं फिल्मों के बारे में तो इंतज़ार था इसकी रिलीज़ का। हाँ फ़िल्म की घोषणा के समय आमिर-सलमान की दो फ़ोटो ज़रूर सामने आई थीं।

जब 1994 में अंदाज़ अपना अपना आयी तो देखने में बड़ा मजा आया। कौन किस पर भारी पड़ा ये कहना मुश्किल तब भी था और आज भी। सलमान खान का वो सीधा साधा होना या आमिर का चालाक होना – ख़ासकर वो जेल वाला सीन जब आमिर सोचते हैं कि उन्होनें सलमान को मुश्किल में डाल दिया है। उस सिचुएशन में पापा कहते हैं का बैकग्राउंड जैसे सोने पे सुहागा।

https://youtu.be/qIu-ai9Tiu0

सलमान और करिश्मा कपूर का ये रात और ये दूरी पर सलमान के डांस स्टेप्स। मतलब एक अलग ही लेवल की कोरियोग्राफी थी। सलमान को ढ़ोलक बजाते हुये देख लीजिये।

https://youtu.be/1H0vtkIiPbM

जब ये फ़िल्म पहली बार देखी तो सिनेमाघर भरा हुआ नहीं था। लेकिन ऐसे शानदार गुदगुदाने वाले सीन के बाद भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर ढ़ेर हो गयी।

https://youtu.be/uImtwJJ9pq4

ये भी लगा कि कई जोक्स लोगों को समझ नहीं आये। जैसे मेहमूद साहब का वाह वाह प्रोडक्शन जिसकी शुरुआत 1966 में बनी फ़िल्म \’प्यार किये जा\’ के समय हुई थी। वही फ़िल्म जिसका ये सीन आज भी आपको हँसा जाता है।

https://youtu.be/JFVH4oSjqOE

या शोले के ज़िक्र पर आमिर का सलमान को देखकर कहना पता है इसके बाप ने लिखी है (शोले सलमान खान के पिता सलीम खान और जावेद अख़्तर ने लिखी थी).

ये बिल्कुल नहीं लगा था की समय के साथ साथ इसके चाहने वाले भी बढ़ते जायेंगे और पच्चीस साल बाद इसका नाम सबसे बेहतरीन कॉमेडी फिल्मों में शुमार होगा। लेकिन ये समझ में नहीं आया की 25 साल पहले लोगों की समझ को क्या हो गया था? देर आये दुरुस्त आये कहावत को चरितार्थ करता है लोगों का फ़िल्म अंदाज़ अपना अपना के प्रति प्रेम जो अमर है!

हो गया है तुझको तो प्यार सजना, लाख करले तू इन्कार सजना

बचपन में और शायद उसके कुछ समय बाद भी गणपति और दुर्गाउत्सव के दौरान भोपाल में बड़ी रौनक रहती। घर के आसपास कई जगह पर प्रतिमा स्थापित होती और सब जगह कुछ न कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते। उसमें से जिस कार्यक्रम का बेसब्री से इंतज़ार रहता वो था रात का फ़िल्म शो।

बीच रोड पर रात को दिखायी जाने वाली फिल्म का नाम दिन में बोर्ड पर लिखा रहता और रात 10 बजे से सफ़ेद चादर की स्क्रीन तैयार रहती हम लोगों के मनोरंजन के लिये। अक्टूबर की हल्की हल्की ठंडी रात और हाथ में गर्म ताज़ी सीकी हुई मूंगफली के साथ उस फ़िल्म को देखने का आनंद ही कुछ और था।

मुझे याद है शोले फ़िल्म की इस सीजन में बहुत डिमांड रहती। मैंने इसे हॉल में भी देखा है और खुली सड़क पर भी। दोनों के अपने मज़े हैं।

अब पता नहीं ये प्रथा चालू है या नहीं लेकिन आज शाहरुख खान के जन्मदिन पर फ़िल्म स्वदेस का ये गाना देखा तो वो समय याद आ गया। इस सीन/गाने में उन्होंने इस पर्दे के इस पार और उस पार की जो दूरी थी उसको मिटाने की कोशिश करी। गांव के बड़े बूढ़े ये सब देख कर थोड़े सकपकाये हुए से हैं। स्वदेस शाहरुख़ खान की मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में से एक है। बहुत कम फिल्में हैं जिसमें शाहरुख खान ने किरदार को बहुत ही सहज रूप में निभाया है।

बरसों बाद ऐसे ही खुले आकाश में फ़िल्म देखने का मौका मिला अहमदाबाद में। वहाँ एक ड्राइव-इन थिएटर हुआ करता था। आप बस अपनी गाड़ी लेकर सीधे मैदान में चले जाइये और अपने साथ लायी हुई दरी, चटाई आदि बिछाकर बैठ जाइये या आराम करने के मूड में हैं तो लेट जाइये। खुले आकाश के नीचे शाहरुख़ ख़ान और काजोल को हो गया है तुझ को तो प्यार सजना देखने का आनंद ही कुछ और रहा होगा।

फ़िलहाल आप रोमांस के किंग के इस गाने का आनंद यहीं उठा सकते हैं।

चलो एक बार फ़िर से अजनबी बन जायें हम दोनों

ट्विटर पर आज एक बड़ा अच्छा संवाद चल रहा था। अगर आपने किसी के सामने अपने दिल के अंदर जो कुछ भी है वो सब निकाल कर रख देते हैं, उसके बाद क्या आप फ़िर से अजनबी हो सकते हैं?

करीब करीब सभी का ये कहना था कि ऐसा उनके साथ हमेशा होता है। और छह महीने बाद यही घटना फ़िर से दोहराई जाती है। मुझे इस पूरे संवाद ने बड़ा विचलित किया। मैंने ऐसे प्रकरण देखे हैं लेकिन ये दोस्तों के बीच नहीं – भाई बहन के बीच, माता पिता और संतान और पति पत्नी के बीच। सालों से बने हुये सम्बन्ध एक झटके में ख़त्म हो जाते हैं और दोनों सामने से बिल्कुल अजनबियों की तरह व्यवहार करते हैं।

मेरे साथ ऐसा बहुत हुआ है ये कहना गलत होगा। मैंने बहुत लोगों के साथ ऐसा किया है। मतलब पूरी तरह से एक अजनबी की तरह पेश आना। जब कुछ दिनों बाद दिमाग शांत होता और अक्ल ठिकाने आती तो फ़िर से चीजें नार्मल हो जाती। इन दिनों ऐसे दौरे कम पड़ते हैं लेकिन पुराने मिलने जुलने वाले जानते हैं उस दौर के बारे में।

दोस्तों से लड़ाई हुई और बातचीत बंद। लेकिन सामनेवाले की उतनी ही चिंता तो किसी माध्यम के ज़रिये मदद करते। लेकिन क्या हो जब सामने वाला भी ऐसा ही हो? इसके बारे में विस्तार से और जल्दी ही।

गुलज़ार साहब ने कहा भी है, कोई रिश्ता नहीं रहा फ़िर भी एक तस्लीम लाज़मी सी है…

जगजीत सिंह जी की मखमली आवाज़ में आप भी इस ग़ज़ल का आनंद लें और बातचीत चालू रखें क्योंकि बात करने से बात बनती है।