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जाते थे जापान, पहुँच गये चीन, समझ गये न

एक खेल है चाइनीज कानाफूसी (Chinese Whispers)। इस खेल में आप एक संदेश देते हैं एक खिलाड़ी को जो एक एक कर सब खिलाड़ी एक दूसरे के कान में बोलते हैं। जब ये आखिरी खिलाड़ी तक पहुँचता है तब उससे पूछा जाता है उसे क्या संदेश मिला और पहले खिलाड़ी से पूछा जाता है आपने क्या संदेश दिया था। अधिकतर संदेश चलता कुछ और है और पहुँचते पहुँचते उसका अर्थ ही बदल जाता है।

इसको आप आज के संदर्भ में न देखें। इस खेल की याद आज इसलिये आई क्योंकि एक व्यक्ति को एक जानकारी चाहिये थी। लेकिन उसने ये जानकारी उस व्यक्ति से लेना उचित नहीं समझा जो इसके बारे में सब सही जानता था। बल्कि एक दूसरे व्यक्ति को फ़ोन करके तीसरे व्यक्ति से इस बारे में जानकारी एकत्र करने को कहा। अब ये जानकारी चली तो कुछ और थी लेकिन क्या अंत तक पहुँचते पहुँचते वो बदल जायेगी? ये वक़्त आने पर पता चलेगा।

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पीटीआई में मेरे एक बॉस हुआ करते थे जिनकी एक बड़ी अजीब सी आदत थी। वो हमेशा किसी तीसरे व्यक्ति का नाम लेकर बोलते की फलाँ व्यक्ति ऐसा ऐसा कह रहा था आपके बारे में। अब आप उस तथाकथित कथन पर अपना खंडन देते रहिये। कुल मिलाकर समय की बर्बादी।

एक बार उन्होंने मेरी एक महिला सहकर्मी का हवाला देते हुये कहा कि उन्होंने मेरे बारे में कुछ विचार रखे हैं। मेरे और उन महिला सहकर्मी के बीच बातचीत लगभग रोज़ाना ही होती थी। इसलिये जब उन्होंने ये कहा तो मैंने फौरन उस सहकर्मी को ढूंढा और इत्तेफाक से वो ऑफिस में मौजूद थीं। उन्हें साथ लेकर बॉस के पास गया और पूछा की आप क्या कह रहे थे इनका नाम लेकर।

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बॉस ने मामला रफा दफा करने की कोशिश करी ये कहते हुये की \”मैंने ऐसा नहीं कहा। मेरे कहने का मतलब था उस सहकर्मी का ये मतलब हो सकता था।\” उस दिन के बाद से मुझे किसी के हवाले से मेरे बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।

कोई बुरा बनना नहीं चाहता ये भी सच है। इसलिये ऊपर जो फ़ोन वाली बात मैंने बताई उसमें भी यही होगा। दूसरे लोगों का हवाला दिया जायेगा और उनके कंधे पर बंदूक रखकर चलाई जायेगी। कुछ लोग वाकई में इतने भोले होते हैं की उन्हें पता ही नहीं होता की उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। देर से सही उन्हें इस बात का एहसास होता है और ये उनके जीवन की एक बड़ी सीख साबित होती है।

ये जो चीन से कानाफ़ूसी शुरू हुई है (आज के संदर्भ में), इसका असली सन्देश हमारे लिये सिर्फ़ एक है। अपने जीवन की प्राथमिकता को फ़िर से देखें। कहीं हम सही चीज़ छोड़ ग़लत चीज़ों को तो बढ़वा नहीं दे रहे। बाक़ी देश दूर हैं तो शायद उन तक पहुँचते पहुँचते ये संदेश कुछ और हो जाये। लेकिन हम पड़ोसी हैं इसलिये बिना बिगड़े हुये इस संदेश को भली भांति समझ लें।

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