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ये लम्हे ये पल हम बरसों याद करेंगे

इस वर्ष का विम्बलडन भी कोरोना की भेंट चढ़ गया। खेलकूद में कोई विशेष रुचि नहीं रही शुरू से। इस बात की पुष्टि वो लोग कर सकते हैं जिन्होंने मेरी पूरी प्रोफाइल फोटो देखी है। लेकिन टेनिस में रुचि जगी जिसका श्रेय स्टेफी ग्राफ और बोरिस बेकर को तो जाता ही है लेकिन उनसे भी ज़्यादा पिताजी को। विम्बलडन ही शायद पहला टूर्नामेंट था जिसे मैंने देखा और फॉलो करने लगा।

इसके पीछे की कहानी भी यादगार है। इस टूर्नामेंट की शुरुआत हुई थी और शायद स्टेफी ग्राफ का ही मैच था। लेकिन समस्या ये थी की टीवी ब्लैक एंड व्हाइट था। पिताजी और मेरे एक और रिश्तेदार का मन था की मैच कलर में देखा जाये। तो बस पहुँच गये कलर टीवी वाले घर में। मैं भी साथ में हो लिया या ज़िद करके गया ये याद नहीं।

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पिताजी भी बहुत अच्छा टेनिस खेलते थे तो शायद टेनिस के प्रति मेरा रुझान का कारण वो भी हैं। खेलों के प्रति उनका ख़ास लगाव रहा है। उनकी टेनिस खेलते हुये और विजेता ट्रॉफी लेते हुये कई फ़ोटो देखी हैं। उनका पढ़ने और सिनेमा देखने के शौक़ तो अपना लिये लेकिन ये शौक़ रह गया।

पिताजी ने पूरा खेल समझाया। पॉइंट कैसे स्कोर होते हैं और उन्हें क्या कहते है। बस तबसे ये खेल के प्रति रुझान बढ़ गया। उसके बाद नौकरी के चलते सब खेलों पर नज़र रखने का मौका मिला और दिल्ली में पीटीआई में काम के दौरान एक चैंपियनशिप कवर करने का मौका भी मिला।

इन दिनों कुछेक खिलाड़ियों को छोड़ दें तो ज़्यादा देखना नही होता लेकिन नोवाक जोकोविच का मैच देखने को मिल जाये तो मौका नहीं छोड़ता। रॉजर फेडरर एक और खिलाड़ी हैं जो क़माल खलते हैं। उससे कहीं ज़्यादा कोर्ट में वो जिस शांत स्वभाव से खेलते हैं लगता ही नहीं की वो दुनिया के श्रेष्ठ खिलाड़ी हैं।

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कुछ वर्षों पहले जब घर देख रहा था तब एक घर देखा जिस सोसाइटी में टेनिस कोर्ट भी था। मुझे लगा शायद अब मैं टेनिस का रैकेट पकड़ना सीख ही लूंगा। लेकिन उधर बात बनी नहीं तो टेनिस खेलने के प्लान जंग खा रहा है।

अब जो लिस्ट बना रखी है मौका मिलते ही करने की उसमें ये भी शामिल है। और क्या शामिल है इसके बारे में कल। अगर इन दिनों आप की भी लिस्ट में बदलाव हुये हों तो बतायें।

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