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हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से

मिस्ट्री, सस्पेंस फ़िल्म देखने का एक अलग रोमांच है। जैसे तीसरी मंज़िल या ज्वेल थीफ या वो कौन थी आदि। क़माल की बात ये है की आम रोमांटिक फिल्म से अलग होते हुये भी इन फिल्मों का संगीत आज तक याद है लोगों को। उदहारण के लिये लग जा गले से। इससे बेहतरीन प्यार का इज़हार करने वाला कोई और गाना हो सकता है? और अगर आप को फ़िल्म की जानकारी मतलब उसके सब्जेक्ट की जानकारी नहीं हो तो ये बहुत ही अजीब सी लगती है की इतना खूबसूरत गीत एक मिस्ट्री फ़िल्म का हिस्सा है।

ये फिल्मों की एक ऐसी श्रेणी है जिसमें हर एक दो साल में कुछ न कुछ नया आता रहता है। अब तकनीक और अच्छी हो गयी है तो और अच्छी फिल्में बन रही हैं। लेकिन कहीं न कहीं अब वो मज़ा नहीं आ रहा है। फिल्मों का संगीत भी ऐसा कुछ खास नहीं है जैसा 1964 में बनी वो कौन थी के संगीत में है और उसमें अगर वो रीसायकल फैक्ट्री से बन कर निकला है तो रही सही उम्मीद भी चली जाती है।

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नये ज़माने के निर्देशक अब फिल्मों में बैकग्राउंड म्यूजिक को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं। इन फिल्मों में उसका अपना एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। फिल्मों में ज़रूरी न हो तो गाने भी नहीं होते। एक दो गाने प्रोमोशन के लिये शूट कर लेते हैं। लेकिन अब वो भी नहीं होगा क्योंकि एक दर्शक ने केस कर दिया था निर्देशक पर की प्रमोशनल गाना फ़िल्म में दिखाया ही नहीं गया।

दूसरी श्रेणी फ़िल्मों की जिसे मैंने अब देखना कम या बंद कर दिया है वो है हॉरर फिल्म। ऐसा नहीं है की पहले बहुत देखता था लेकिन जितनी भी अच्छी फिल्में आयी हैं मैंने लगभग सभी देखी हैं और सब की सब सिनेमाघरों में।

मुझे याद जब रामगोपाल वर्मा की रात फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उस समय मैं कॉलेज के प्रथम वर्ष में था। फ़िल्म कॉलेज से थोड़ी दूर लगी थी। मतलब कॉलेज के आसपास कोई भी सिनेमाघर नहीं था। कॉलेज था भोपाल की BHEL टाऊनशिप में। मेरे कॉलेज के नये नये मित्र जय कृष्णन को भी फ़िल्म देखने का शौक था। बस हम दोनों पहुँच गये सिनेमाघर। कॉलेज के बाकी साथियों ने इस बार हमारा साथ नहीं दिया। शायद उन्होंने अख़बार में फ़िल्म के पोस्टर के साथ लिखी चेतावनी याद रही – कृपया कमज़ोर दिल वाले ये फ़िल्म न देखें।

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फ़िल्म देखने मुश्किल से 15-20 लोग रहे होंगे पूरे हॉल में। दोनों बैठ तो गये लेकिन पता नहीं था क्या होने वाला है। लेकिन क्या बढ़िया फ़िल्म थी। उसका कैमरावर्क कमाल का था और सस्पेंस भी। मेरे लिये आज भी फ़िल्म रात हॉरर फिल्मों में सबसे ऊपर है। अंग्रेज़ी की भी कई फिल्में देखी और महेश भट्ट/विक्रम भट्ट की फैक्ट्री वाली कुछ फिल्में भी देखी हैं। लेकिन रात में जब कैमरा रेवती के पीछे पीछे सिनेमाघर के अंदर और उसके बाद मैनेजर के कमरे में पहुँचता है…

रामसे भाइयों ने भी ढ़ेर सारी फिल्में बनाई हैं लेक़िन मुझे सिर्फ़ उनके नाम याद हैं। बात गानों से शुरू हुई तो उसी से ख़त्म करते हैं। ये गुमनाम फ़िल्म का गीत है जिसमें हेलेन जी वही संदेश दे रही हैं जो आज इस समय बिल्कुल फिट बैठता है।

https://youtu.be/tKodgq-1TgY

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