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हम हो गये जैसे नये, वो पल जाने कैसा था

आपने ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा ज़रूर देखी होगी। दोस्ती के साथ साथ ये फ़िल्म जीने के भी कुछ फ़लसफ़े दे जाती है। फ़िल्म में वर्क फ्रॉम होम या WFH, आजकल जिसका बहुत ज़्यादा ज़िक्र हो रहा है, उसकी भी झलक मिलती है। ऋतिक रोशन को अपने काम से बहुत प्रेम है और वो सफ़र करते हुये भी गाड़ी साइड में खड़ी करके मीटिंग कर लेते हैं (मोशी मोशी वाला सीन)।

लगभग पिछले पंद्रह दिनों से कोरोना के साथ अगर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करने वाला शब्द कोई है तो WFH है। पहले कुछ तरह के काम ही इस श्रेणी में रहते थे। लेकिन अब क्या सरकारी क्या प्राइवेट नौकरी सब यही कर रहे हैं।

मेरा इस तरह के काम करने के तरीके से पहला परिचय हुआ था 2008 में जब मैंने अपना डिजिटल माध्यम का सफ़र शुरू किया था। एक वेबसाइट से जुड़ा था और हमें सप्ताहांत में आने वाले शो के बारे में लिखना होता था। उस समय ये कभी कभार होने वाला काम था इसलिये कोई बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उस समय नेट कनेक्शन भी उतना तेज़ नहीं होता था लेकिन काम चल जाता था।

इससे पहले अपने आसपास सभी को ऑफिस जाते हुये ही देखा था। हाँ सब काम घर पर लाते थे और फ़िर अपनी सहूलियत से करते थे। लेकिन वो भी कुछेक लोगों को देखा था।

इस तरीक़े से पूरी तरह पहचान हुई 2011 में जब मैंने दूसरी कंपनी जॉइन करी। इस समय तक ये कोई अनोखी बात नहीं थी और भारत एक इन्टरनेट क्रांति के युग में प्रवेश कर चुका था। नई जगह पर इससे कोई मतलब नहीं था की आप कहाँ से काम कर रहे हैं जबतक की काम हो रहा है। अगर आपकी तबियत ठीक नहीं है और आप घर से काम करना चाहते हैं तो बस परमिशन ले लीजिये।

अच्छा जब कोई ये विकल्प लेता तो सबके सवाल वही थे – कितना काम किया? आराम कर रहा होगा, मज़े कर रहा होगा। कभी मैंने ख़ुद भी ऐसा किया तो ऐसा लगा ज़्यादा काम हो जाता है घर से। लेकिन ये तभी संभव है जब थोड़ा नियम रखा जाये। नहीं तो एक साइट से दूसरी और इस तरह पचासों साइट देख ली जाती हैं। समय कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता।

2017 में जब नौकरी बदली तो ऐसी कंपनी में नौकरी करी जो इन बदलावों को दूर से देख रही थी लेक़िन अपनाये नहीं थे। वहाँ का मैनेजमेंट ऐसी हर चीज़ को बड़े ही संदेह की दृष्टि से देखता और हमेशा इस कोशिश में रहता की किसी न किसी तरह लोगों को ऑफिस बुलाया जाये। वहाँ ये बदलने के लिये बड़े पापड़ बेलने पड़े।

2019 में लगा अब तो हालात काफ़ी बदल गये होंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। और मैं ये मीडिया कंपनियों की बात कर रहा हूँ। सोचिये अगर 2019 से इस कंपनी ने धीरे धीरे ही सही, इस बदलाव की राह पर चलना शुरू कर दिया होता तो आज इस समय उनकी तैयारी कुछ और ही होती।

शायद समय हमें यही बताता है। समय रहते बदल जाओ, नहीं तो पड़ेगा पछताना। ये सिर्फ़ काम के लिये ही सही नहीं है। जैसे कैटरीना कैफ ऋतिक रोशन से कहती हैं जब वो अपने भविष्य का प्लान उन्हें बताते हैं। \”क्या तुम्हें पता है तुम चालीस साल तक ज़िंदा भी रहोगे?\”

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