बहुत सी फिल्मों में ऐसी महफिलें देखी थीं जिसमें सब पार्टी का मज़ा ले रहे हैं और ऑरकेस्ट्रा का गाना भी चल रहा है। बड़े हुये तो होटलों में जाना होता था। मगर कभी जाना हुआ भी तो वही इंडियन कॉफ़ी हॉउस जाते या ऐसे ही किसी होटल जहाँ ये सब चीजें नहीं होती थीं। फ़िर लगा शायद बार में ऐसा होगा लेकिन जितने भी बार गया वहाँ तेज़ संगीत, DJ होता।
पाँच साल पहले पहली बार महाबलेश्वर जाना हुआ और एक ठीक ठाक होटल में रुकने की बुकिंग थी। दोपहर में जब पहुँचे तब खाना खाकर आसपास घूमने निकल गये। शाम को जब लौटकर आये तो पहले तो सभी बेसुरों ने इकट्ठा होकर कराओके पर गाना गाया। वहाँ एक नौजवान मिला जो ठीक ठाक ही गा रहा था। कराओके पर गाना एक कला है और आपको इसको मास्टर करने में थोड़ा सा समय लगता है। लेकिन भट्ट अंकल के पड़ोसी होने का असर आ ही गया क्योंकि मेरे गाये गाने सब लगभग सुनने में ठीक लग रहे थे।
थोड़ी देर बाद वो बंदा वहां से चला गया और उसके बाद बग़ल के डाइनिंग हॉल से गीत संगीत की आवाज़ आ रही थी। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं। इतने बरसों से मेरी जो तमन्ना थी वो आज पूरी हो गयी थी। बस फ़िर क्या था एक अच्छी सी टेबल देखकर डेरा जमा लिया। उसके बाद शाम का कुछ अता पता नहीं रहा। दो लोगों की उस टीम ने कई फ़रमाइश गाने और मेड़ली सुनाई। उसके बाद से बाक़ी तीन रातें उन दोनों के नाम थीं।
इसके बाद टीम के सभी सदस्यों के साथ एक पार्टी में जाना हुआ जहाँ एक बार फ़िर लाइव ऑरकेस्ट्रा थी। दोनों ही पार्टी में एक बहुत बड़ा फ़र्क़ था लोगों का। पहली पार्टी में एक बहुत ही सुकून, इत्मीनान वाला माहौल था। सब अपने परिवार के साथ थे तो उस समय को ज़्यादा से ज़्यादा यादगार बनाने का था। ऑफिस वाली पार्टी में हंगामा बहुत ज़बरदस्त होता है। यादगार वो भी रहती हैं लेक़िन उसके कारण अलग होते हैं और आज जब याद आती हैं तो उन जोकरों की हरकतों के बारे में सोचकर हँसी आती है।
एक साल बाद फ़िर महाबलेश्वर जाना हुआ और इत्तेफाक से उसी होटल में रुकना हुआ। इस बार भी वो दोनों गायक और संगीतकार जोड़ी से मिलना हुआ। इस बार और मज़ा आया। उनको भी पता था कैसे गाने पसंद हैं तो उन्होंने भी पिटारे में से खोज खोज कर गाने सुनाये। क्या मैंने ऑरकेस्ट्रा में लालच में वहीं बुकिंग कराई थी?
आज मुझे वो महाबलेश्वर की शामें याद आ गईं जब फ़िल्म कर्ज़ में ऋषि कपूर जी को गिटार बजाते हुये देखा और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी की क़माल की कर्ज़ की थीम धुन सुनी। उस धुन में क़माल का जादू है और वो न सिर्फ़ गिटार पर बल्कि संतूर पर भी बहुत ही अच्छी लगती है। पहले कई फिल्मों में इस तरह का थीम म्यूजिक हुआ करता था। अब तो फ़िल्म संगीतकारों से भरी रहती है लेक़िन संगीत नदारद होता है।
बरसों पहले जब मैं दिल्ली में था तब सलिल को जन्मदिन पर एक गिटार भेंट किया था। अब शायद वो किसी स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रहा होगा (अगर पैकर्स की मेहरबानी रही हो तो)। ये शायद महाबलेश्वर की शामों की ही देन है की मैंने अपने जन्मदिन पर गिटार गिफ़्ट के रूप में ले लिया। क्या मैं कर्ज़ का थीम म्यूजिक बजा सकता हूँ? इन वर्षों में कुल चार बार हाँथ लगाया है और अभी तो ठीक से पकड़ना भी नहीं सीखा है। अभी पिछले एक दो हफ़्ते से बाहर रखा हुआ है और अब उनकी नज़र में वो आने लगा है। आदेश जल्द मिलेगा की उसको उसकी जगह पर रख दिया जाये। तब तक एक दो पोज़ खिंचवा ही सकते हैं।
हाँ 3 इडियट्स के शरमन जोशी के जैसे गिटार बजा के कुछ न कहो ज़रूर सुना सकता हूँ। या लम्हे के अनुपम खेर जैसे लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे की भी अच्छी तैयारी है। अगर इक्छुक हों तो संपर्क करें।