कई बार ऐसा होता है की लिखने को बहुत कुछ होता है लेक़िन समझ नहीं आता क्या लिखें। मेरे साथ अक्सर ये होता है क्योंकि आईडिया की कोई कमी नहीं है बस विषय चुनने का मुद्दा रहता है। मैंने इससे बचने का अच्छा तरीक़ा ये निकाला कि लिखो ही मत तो कोई परेशानी नहीं होगी।
लेक़िन जब से 2017-18 से लिखने का काम फ़िर से शुरू किया है तब से ऐसा लगता है लिखो। जिन दिनों ये उधेड़बुन ज़्यादा रहती है उस दिन थोड़ा सा ध्यान देना पड़ता है। विचारों की उस भीड़ में से कुछ ढूंढना और फ़िर लिखने पर बहुत बार तो ये हुआ की पोस्ट लिखी लेक़िन मज़ा नहीं आया। उसे वहीं छोड़ आगे बढ़ जाते हैं। फ़िर कभी जब समय मिलता है तब ऐसी अधूरी पोस्ट पढ़कर खुद समझने की कोशिश की जाती है आख़िर क्या कहना चाह रहे थे। और हमेशा मैं ऐसी सभी पोस्ट को डिलीट कर देता हूँ।
आज भी मामला कुछ ऐसा ही बन रहा था। एक तरफ़ इरफ़ान खान जी के निधन से थोड़ा मन ठीक नहीं था, तो सोचा आज उनके बारे में लिखा जाये। लेक़िन फ़िर ये ख़्याल आया की क्या लिखूँ? ये की शादी के बाद श्रीमतीजी को जब पहली बार मुंबई आयीं थी उनको लेकर मेट्रो सिनेमा में उनकी फ़िल्म मक़बूल देखी थी और श्रीमतीजी को उस दिन मुझे किस तरह की फिल्में पसंद हैं इसका एक नमूना देखने को मिल गया था?
वैसे इसे एक इत्तेफाक ही कहूँगा की बीते कुछ दिनों से उनका ज़िक्र किसी न किसी और बात पर हो रहा था। जैसे मैं श्रीमतीजी से कह रहा था की उनकी फिल्म क़रीब क़रीब सिंगल देखनी है फ़िर से (इसका लॉक डाउन से कोई लेना देना नहीं है)। पहली बार देखी तो अच्छी लगी थी और उनका वो चिरपरिचित अंदाज़। फ़िल्म की स्क्रिप्ट और डायलाग भी काफ़ी अच्छे थे।
वैसे ही श्रीमती जी की एक मित्र ने मेरी एक काफ़ी पुरानी पोस्ट पढ़ कर उन्हें फ़ोन किया था। इत्तेफाक की बात तो ये है जिस पोस्ट का वो ज़िक्र कर रहीं थीं उसमें इरफ़ान जी के इंटरव्यू में उन्होंने क्या कहा था उसका ज़िक्र था।
पिछले दिनों एक बार और उनके बारे में बिल्कुल ही अजीब तरीक़े से पढ़ना हुआ। अजीब आज इसलिये लग रहा है और कह रहा हूँ क्योंकि आज वो नहीं हैं। दरअसल मैं पढ़ रहा था कंगना रानौत पर लिखी हुई एक स्टोरी पढ़ रहा था जो क़रीब दो साल पुरानी थी। उससे पता चला की जिस इंटीरियर डिज़ाइनर ने कंगना का मनाली वाला बंगला डिज़ाइन किया है उन्होंने उससे पहले इरफ़ान जी का मुम्बई वाला घर डिज़ाइन किया था। कंगना को वो पसंद आया और इसलिये उन्होंने उन डिज़ाइनर साहिबा की सेवाएँ लीं।
जैसा मेरे साथ अक्सर होता है मुझे ये जानने की उत्सुकता हुई की इरफ़ान जी का घर कैसा है। बस इंटरनेट पर ढूंढा और देख लिया और पढ़ भी लिया। इंटीरियर डेकोरेशन का मुझे कभी शौक़ हुआ करता था लेक़िन बाद में नये शौक़ पाल लिये तो वो सब छूट गया। लेक़िन उस दिन फ़िर से थोड़ी इच्छा जगी। अब श्रीमतीजी इसको कितना आगे बढ़ने देती हैं, ये देखना पड़ेगा।
आज जब इऱफान खान जी के निधन की ख़बर आयी तो ये बातें याद आ गयी। कुछ समय के लिये बहुत बुरा भी लगा। लेक़िन किसी चैनल पर कोई कह रहा था हमें उनके काम को, उनके जीवन को सेलिब्रेट करना चाहिये।
बस फ़िर क्या था। उनकी क़रीब क़रीब सिंगल टीवी पर चालू। योगी बने इरफ़ान खान और न जाने कितने किरदारों के ज़रिये वो हमेशा हमारे बीच रहेंगे। उनको कोई भी क़िरदार दे दीजिये उसमें वो अपने ही अंदाज़ में जान फूँक देते थे।
इऱफान खान के घर के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
कंगना रनौत के बंगले के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।