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संभल मेरे साथ चल तू, ले हाँथों में हाँथ चल तू

कई बार हम लोग किसी मुसीबत में होते हैं और किसी मदद की उम्मीद करते हैं। आपको लगता है वो व्यक्ति जिसके लिये आपने क्या क्या नहीं किया वो आपकी मदद ज़रूर करेगा। फ़िर परिस्थियाँ ऐसी बनती हैं कि वो आपकी मदद नहीं कर पाता और आपको दो टूक शब्दों में बता भी देता है की वो कुछ नहीं कर सकता।

इसके विपरीत आप ऐसे किसी व्यक्ति से मिलते हैं जो आपको आश्वासन तो देता रहता है पर करता कुछ नहीं है। लेक़िन तब भी आपका मन ख़राब होता है पहले व्यक्ति से क्योंकि उसने साफ़ मना कर दिया लेक़िन दूसरे व्यक्ति के लिये आप ऐसी कोई भावना नहीं रखते क्योंकि उसने आपके अंदर आशा को जीवित रखा है।

उम्मीद की किरण

दोनों में से कौन सही है? मेरे लिये तो पहला व्यक्ति सही है क्योंकि उसने सच तो कहा। झूठी उम्मीद तो नहीं दिखाई। ये कहने के लिये भी हिम्मत चाहिये विशेषकर तब जब कोई आपसे उम्मीद लगाये बैठा हो। कोई मुझे ये कहे तो दुख तो ज़रूर होगा। लेक़िन वो उस व्यक्ति से लाख गुना बेहतर है जो कहता है चलिये देखते हैं। कई बार दूसरा वाला व्यक्ति भी सही होता है। कैसे?

लेखक ओ हेनरी की कहानी द लास्ट लीफ़ (आखिरी पत्ती) आपने शायद पढ़ी हो या देखी हो। एक बीमार लड़की ने अपनी जीवन की साँसें उसकी खिड़की से दिखने वाले एक पेड़ से जोड़ दी हैं और उसका ऐसा मानना है की जिस दिन आख़िरी पत्ती गिरेगी उस दिन उसका जीवन भी समाप्त हो जायेगा। उसके घर के करीब रहने वाला एक पेंटर जो अपनी मुश्किलों में उलझा हुआ है, उस लड़की की खिड़की पर पत्ती पेंट करता है। जब आखिरी पत्ती गिरती नहीं है तो लड़की की कुछ उम्मीद बंधनी शुरू होती है और कुछ दिनों में वो ठीक हो जाती है।

मेरे जीवन में दो बार ऐसे क्षण आये जब मैंने लोगों से मदद माँगी। दोनों ही बार उन लोगों की संख्या ज़्यादा थी जिन्होंने कुछ किया ही नहीं। उनको मेल लिखा, फ़ोन किया और मैसेज भी। लेक़िन उन्होंने ये भी ज़रूरी नहीं समझा की वो उसका जवाब दें। बात करने की तो नौबत तक नहीं पहुंची।

मानवता सबसे पहले

मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। लेक़िन अगर हम सामने वाले के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करें तो उससे ज़्यादा ग़लत बात क्या हो सकती है। ज़रूरी नहीं है की जो भी आपके पास मदद के लिये आये आप उसकी मदद कर ही पायें। कई बार सिर्फ़ उनको ज़रूरत होती है किसी की जो उनकी बातें सुने और उनकी हिम्मत बढ़ाये।

जिस कठिन समय से हम सब किसी न किसी रूप में साथ हैं, ऐसे में हमें ही एक दूसरे का साथ देना है। अगर आप किसी को जानते हैं या आपको उनकी परेशानी का अंदाज़ा है तो आप उनसे बात करिये।

बस हमें वो उम्मीद बंधानी है। ये भी गुज़र जायेगा। उन सभी को जिनसे हम मिलते हैं (या आने वाले दिनों में मिलेंगे) या बात करते हैं। अगर कोई आकर आपसे अपनी तक़लीफ़, परेशानी बताता है तो आप ये मानिये वो आप पर विश्वास करता है। उसके विश्वास का मान रखिये और उसको प्रोत्साहित करें कि वो इस मुश्किल में अकेले नहीं है। हर मदद पैसे से नहीं होती। किसी की तकलीफों के बारे सुनना भी मदद ही है।

https://youtu.be/Y7X21asNwrA

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