आज ढ़ेर सारा ज्ञान प्राप्त हुआ, हो रहा है। कोई अनहोनी घटना होती है और सब जैसे मौके का इंतज़ार कर रहे होते हैं। सोशल मीडिया, व्हाट्सएप आज मानसिक तनाव से कैसे बचें इससे भरा हुआ है। और सही भी है। सुशांत सिंह राजपूत का इस तरह अपने जीवन का अंत कर लेना एक बार फ़िर से हमारे मानसिक स्वास्थ्य के प्रति नज़रिये पर प्रश्न लगता है।
हमलोग बाहरी दिखाई देने वाली बातों पर ध्यान देते हैं। अगर हमें सब सही लगता है तो हम मान लेते हैं कि सब ठीक ठाक है। ये उन लोगों केलिये ठीक है जो आपको ठीक से जानते नहीं। लेक़िन उन लोगों को भी समझ न आये जो आपके क़रीबी हैं तो या तो आप अच्छे कलाकार हैं या आपको जानने वाले बेवकूफ। अगर ऊपरी परत खुरच कर देखी जाये तो शायद अंदर की बात पता चले। लेक़िन हम लोग चूँकि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कम जानते हैं, तो सेक्स के जैसे इस विषय पर बात नहीं करते या कतराते हैं। ये अलग बात है की सेक्स के विषय में हमें लगता है हम काफ़ी कुछ जानते हैं लेक़िन वहाँ भी ज्ञान आधा अधूरा ही रहता है। अगर हम किसी विषय के बारे में ग़लत क़िताब पढ़ेंगे तो हमारा ज्ञान सही कैसे होगा?
आज से क़रीब बीस वर्ष पहले मेरे एक रिशेतदार अपने काम के चलते या यूँ कहें अपने कुछ काम के न होने के बाद डिप्रेशन का शिकार हो गए। उस समय पहली बार ये शब्द सुना था लेक़िन बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं मिली (ये भी कोई बात करने का विषय है)। उन्होनें कई मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखाया और ठीक हो गए। लेकिन इस विषय पर बात करना मना नहीं था तो खुल कर बात भी नहीं हुई।
सरकारी घर के समीप एक मानसिक रोग विशेषज्ञ रहते थे। जानते हैं लोग उन्हें क्या कह कर बुलाते थे? पागलों का डॉक्टर। अब जब इस कार्य को कर रहे डॉक्टर को इज़्ज़त नहीं मिलती तो मरीजों को कैसे मिलेगी? और फ़िर हमारा समाज। यहाँ आप पर लेबल लग गया तो निकालना मुश्किल होता है। ऐसे में कौन ये कहेगा की उन्हें कोई मानसिक परेशानी/बीमारी है? दरअसल हमनें बीमारी के अंग भी निर्धारित कर लिये हैं। फलाँ, फलाँ अंग में हो तो ये बीमारी मानी जायेगी। आपका दिमाग़ इस लिस्ट में नहीं है न ही आपके गुप्तांग।
सुशांत सिंह राजपूत शायद एक या दो फिल्मों से जुड़े लोगों में से थे जिन्हें मैं ट्विटर पर फॉलो कर रहा था। उसके पीछे एकमात्र कारण ये था की वो बहुत ही अलग अलग विषय पर ट्वीट करते थे। इस पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री में शायद वो आख़िरी शक़्स थे जिनसे मुझे ऐसे किसी कदम की उम्मीद होगी। मेरे लिये और मेरे जैसे कइयों के लिये सुशांत सिंह की ट्वीट ही उनके बारे में बताती थी। लेक़िन जो उनके क़रीब थे उनको तो ये मालूम होगा की सुशांत सिंह किस परेशानी का सामना कर रहे थे।
उनके ट्वीट पढ़ कर लगता सुशांत सिंह ज़िन्दगी से भरे हुये हैं। उन्होंने अपनी एक 50 कामों की लिस्ट शेयर करी थी जो उन्होंने करने की ठानी थी। उसमें से कुछ तो उन्होंने कर भी लिये थे। उनकी रुचि फ़िल्म से इतर भी थी इसलिये भी उनके बारे में पढ़ना अच्छा लगता है। नहीं तो अक्सर जो जिस फील्ड में होता है उसी के बारे में बोलता रहता है।
चीजें अभी भी नहीं बदली हैं। फ़िल्म लव यू ज़िन्दगी में आलिया भट्ट अपने परिवार को जब बताती हैं अपनी मानसिक अवस्था के बारे में तब वो एक तरह का शॉक देती हैं अपने परिवार को। क़माल की बात ये है की आलिया भट्ट और दीपिका पादुकोण ने खुलकर अपने डिप्रेशन के बारे में बात करी लेक़िन सुशांत सिंह नहीं कर पाये।
फ़िल्म इंडस्ट्री से लोग थोक के भाव निकल कर आ रहे हैं जो इस बारे में टिप्पणी कर रहे हैं। लेक़िन अग़र सुशांत इतने लंबे समय से डिप्रेशन से लड़ रहे थे तो क्यों इंडस्ट्री ने उनका साथ नहीं दिया? क्यों परिवार ने भी उनका साथ नहीं दिया? अमूमन ऐसी कोई आ अवस्था हो तो परिवार को उसके साथ होना चाहिये था।
मेरा ये मानना है हम सब आज के इस दौर में डिप्रेशन से पीड़ित हैं। कइयों का ये बहुत ही शुरुआत के दौर में ही ख़त्म हो जाता है और कइयों का एडवांस स्तर का होता है। परिवार और दोस्तों के चलते ये आगे नहीं बढ़ता और व्यक्ति ठीक हो जाता है। जो आज बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं अगर वो पहले ही जग जाते तो शायद सुशांत हमारे बीच होते। मुझे दुख है सुशांत जैसे व्यक्ति जिन्होंने कई बुरे दिन भी देखे होंगे उन्होंने हार मानली।