टीवी पर समाचार के नाम पर जो परोसा जाता है वो देखना बहुत पहले ही बंद हो चुका है। लेक़िन दो दशकों की समाचार के बीच रहने आदत के चलते अब अपने को अपडेट करने का दायित्व आकाशवाणी को दिया है। सच मानिये रोज़ सुबह शाम पंद्रह मिनट का बुलेटिन सुनने के बाद किसी दूसरे माध्यम की ज़रूरत महसूस नहीं होती।
ट्विटर एक विकल्प हो सकता था लेक़िन वहाँ पर जो हंगामा होता है उसमें समाचार कहीं गुम हो जाता है और फ़ालतू की बहस शुरू हो जाती है। उसमें बीच में बहुत ही मज़ेदार वाकये होते हैं जैसे किसी गुरु के समर्थक अपने जेल में बंद गुरु की रिहाई की माँग करते हैं। लगभग रोज़ ही ऐसा होता है।
फ़ेसबुक पर भी ऐसा ही कुछ नज़ारा होता है। एक तो अल्गो के चलते अगर कभी ग़लती से किसी पोस्ट को क्लिक कर लिया तो फेसबुक ये मान लेता है आप इस विषय में रुचि रखते हैं। लेक़िन ऐसा होता नहीं है। इसलिए थोड़ा सोच समझ कर ही क्लिक करते हैं।
ये जो मोबाइल डिवाइस है जिससे ट्विटर, फेसबुक का सफ़र होता है, इसके भी कान होते
ये विश्वास करना शुरू में मुश्किल था। लेक़िन उसके बाद एक दिन ऐसा भी आया जब ये विचित्र किंतु सत्य बात साक्षात सामने प्रकट हुई एक एसएमएस के रूप में। मेरी एक पुरानी चोट है 2009 नवंबर की जिसमें पैर का लिगामेंट चोटिल हो गया था। ये चोट यदा कदा अपना आभास कराती रहती है। डॉक्टर ने फुट मसाज के बारे में कहा।
दो दिन के बाद SMS आया एक मसाज से सेंटर के बारे में। जबकि मैंने किसी से इस बारे में संपर्क भी नहीं किया था तो नंबर किसी के पास होने की संभावना नहीं के बराबर थीं। बाद में एक नामी केरल मसाज सेन्टर गये और मसाज करवाया लेक़िन उस सेन्टर से जाने के बाद कोई संदेश आज तक नहीं आया। अलबत्ता बाकी ढ़ेर सारे सेन्टर के आये और अब भी आते रहते हैं। और वो बहुत सारी \’सेवाओं\’ का भी विज्ञापन भी करते रहते हैं।
इसके अलावा अगर गलती से मोबाइल डेटा चालू रह जाता है तो गूगल आपकी सारी खोज ख़बर रखता है। आप कहाँ गये, वहाँ का मौसम, जहाँ रुके उसके बारे में, सब जानकारी रहती है। इसके बाद भी लोग किसी सीक्रेट मिशन के बारे में बात करते हैं तो थोड़ा अजीब सा लगता है। जैसे हमारे एक जानने वाले घर पर कुछ और बोलकर दो दिन हिल स्टेशन पर बिता कर आये। घर वालों को भले ही पता न चला हो, गूगल सब जानता है।
वैसे ये गूगल मैप है बड़ा उपयोगी। आप उसमें बस सही गली, मोहल्ला डाल दीजिये और वो आपको वहाँ पहुँचा ही देगा। सितंबर में एक रात लांग ड्राइव न होते हुये भी हो गयी इसी मैप के चलते। जहाँ भी वो मुड़ने का बताता या मोहतरमा बतातीं वहाँ से मुड़ना थोड़ा मुश्किल ही होता। नतीजा ये हुआ की 10 km की ड्राइव 110 km की हो गयी।
मॉरल ऑफ द स्टोरी: टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को बेहतर ज़रूर बनाती हैं लेक़िन उनके ही भरोसे न रहें। अपने आसपास के मनुष्यों को भी मौका दें। कभी रुक कर किसी से पुराने जमाने की तरह पता भी पूछ लें। टेक्नोलॉजी में बाक़ी सब कुछ होगा लेक़िन एक दिल और कुछ एहसास अपने आसपास के लोगों में ही मिलेगा।https://youtu.be/C_dI4mXlxNg