आज की इस पोस्ट के प्रेरणास्रोत हैं आनन्द श्रीवास्तव। इलाहाबाद निवासी आनन्द से फ़ेसबुक पर ही दोस्ती हुई है। पिछले दिनों इन्होंने एक पोस्ट शेयर करी अपने पिताजी के बारे में। बीते समय को याद करते हुए आनन्द ने लिखा की कैसे उन्होंने पिताजी को गले लगाने का अपना प्रण पूरा किया और ये पूछा भी की क्यों बेटे अपने पिता से ऐसे दूर रहते हैं। माता, भाई, बहन सबसे तो हम अपना स्नेह दिखा देते हैं लेकिन बड़े होने के बाद पिता-पुत्र के बीच कुछ हो जाता है और दोनों ही पक्ष इसके लिये ज़िम्मेदार हैं। पिता अपनी बेटियों पर तो लाड़ बरसाते हैं लेकिन पुत्रों पर इतने खुले तौर पर नहीं।
पापा और मैं
आनन्द की पोस्ट पढ़ने के बाद मैं पिताजी और अपने रिश्ते के बारे में सोचने लगा जो बहुत से कारणों से अलग रहा और इसका पूरा पूरा श्रेय उनको ही जाता है। मेरा फिल्मों, किताबों और संगीत के शौक उन्ही की देन है। लेकिन उनकी और कई अच्छी आदतें मैं नही अपना पाया।
पूरे ख़ानदान में पिताजी सबसे ज़्यादा स्टाइलिश माने जाते हैं जिन्हें पहनने ओढ़ने के साथ खाने पीने, घूमने फिरने और खेलने का बेहद शौक़। अपनी बहनों को कार में बिठाकर घुमाना हो या इंदौर की बेकरी पर कुछ खाना हो – सबके लिए पिताजी हाज़िर। अच्छे कपड़ों की ज़रूरत हो तो उनके भाई पिताजी की अलमारी पर ही धावा बोलते।
अपने स्वभाव के चलते पापा सभी रिश्तेदारों से भी नियमित संपर्क में रहते हैं। हम लोगों को भी समझाते रहते हैं कि कोई शहर में हो तो उससे मिलो। इस डिपार्टमेंट में मुझे बहुत काम करने की गुंजाइश है।
स्क्रीन पर पिता-पुत्र
अगर फिल्में समाज का आईना होती हैं तो समाज में पिता पुत्र के रिश्ते भी कुछ ऐसे ही होते होंगे। पिता पुत्र के दोस्त होने की बात तो करते हैं लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। पुराने समय के समाज में पिता का अपनी संतानों से इतना ज़्यादा संपर्क ही नहीं रहता था। ठीक वैसा ही जैसा काजोल और अमरीश पुरी का था दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे फ़िल्म में। दोनों के बीच एक दूरी रहती और जितनी बात होती वो पूरे अदब के साथ और एक बार फ़रमान जारी हो गया तो अगली फ्लाइट से सीधे पंजाब।
मुझे याद आयी फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक जो कई बार देखी है। ये फ़िल्म कई मायनों में यादगार है। फ़िर चाहे वो इसके गाने हों या कलाकार या लव स्टोरी का नया अंदाज़। लेकिन एक और चीज़ जो मुझे बहुत अच्छी लगी फ़िल्म में वो थी पिता-पुत्र का रिश्ता। इसके पहले की और इसके बाद कि भी कई फिल्मों में पिता और बच्चों के बीच रिश्ते में एक दूरी है।
फ़िल्म में आमिर खान जूही चावला की सगाई से लौटते हैं और गुस्से से भरे उनके पिता दिलीप ताहिल उनका इंतज़ार कर रहे हैं। घर के सभी सदस्य डरे हैं कि कहीं वो अपने बेटे की पिटाई न कर दें। लेकिन टूटे हुये आमिर को देख वो उसे गले लगा लेते हैं और रोते हुये अपने बेटे से कहते हैं बाद में बात करेंगे।
मॉडर्न पिता-पुत्र
मैंने अपने आसपास अनुपम खेर और शाहरुख खान फ़िल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे वाले पिता पुत्र देखे हैं जो साथ बैठ सिगरेट, शराब साथ में पीते हैं। क्या वाकई में वो दोस्त हैं या ये दोस्ताना सिर्फ इस काम तक ही सीमित है? इसका जवाब शायद उनके पास होगा। मैं तो सिर्फ उम्मीद कर रहा हूँ कि अपने गुस्से की तरह वो अपने प्यार का भी इज़हार करते होंगे। इस पोस्ट को पढ़ने वाले सभी पिता पुत्र से ही नहीं सभी से निवेदन – अगर प्यार करते हैं तो दिखाने से परहेज़ क्यों। वो अंग्रेज़ी में कहते हैं ना – If you love somebody show it. तो बस गले लगाइये और गले लगिये और प्यार बांटते रहिये।
आनंद श्रीवास्तव की फेसबुक पोस्ट की लिंक।