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द फैमिली मैन 2: थोड़ा था, बहुत की ज़रूरत थी

हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। कोरोना की कहानियों की श्रृंखला के बीच ये सोना कहाँ से आया? वैसे तो सोना हम भारतीयों का प्रिय है लेक़िन उस विषय पर मेरा ज्ञान बहुत ही सीमित है। तो कहानी आगे बढ़ाते हैं।

अस्पताल से लौटने के बाद टीवी देखना बहुत कम हो गया है। समाचार देखना तो समय की बर्बादी लगता है तो बस कभी कभार हल्के फुल्के कार्यक्रम देख लेते हैं। मनोज बाजपेयी की द फैमिली मैन का दूसरा सीजन बहुत समय से अटकते हुये 4 जून को आ गया। पहला सीजन देखा था तो थोड़ी उत्सुकता थी इस बार क्या होगा। ट्रेलर देखकर लगा की इसको अपना समय दिया जा सकता है। तो बस इस हफ़्ते के कुछ घंटे उसको दे दिये। ये उसी का लेखा जोखा है। सोने वाली बात की गुत्थी आगे सुलझेगी।

किसी भी फ़िल्म, किताब या इन दिनों की वेब सीरीज़ की जान होती है उसकी स्क्रिप्ट। अच्छी स्क्रिप्ट हो औऱ ठीक ठाक कलाकार भी हों तो ये आपको बांधे रख सकते हैं। इस सीरीज़ में तो मनोज बाजपेयी जैसे कई मंझे हुए कलाकार हैं। इस बार दक्षिण से सामंथा अकिनेनी इससे जुड़ीं हैं। वैसे तो प्रयास यही है की बहुत ज़्यादा न बताया जाये लेक़िन अगर आपने अपने सप्ताहांत का सदुपयोग (?) नहीं किया है तो आप मेरी कोई पुरानी ब्लॉग पोस्ट पढ़ सकते हैं। 

कहानी

अगर आपने पहला सीज़न देखा है तो आपको पता है मनोज बाजपेयी एक सीक्रेट सर्विस (टास्क) एजेंट हैं। इस बार शुरुआत में वो एक IT कंपनी में काम करते हुऐ दिखाई गये हैं। आपको ये तो पता है की देर सबेर वो वापस अपनी एजेंसी में जायेंगे तो ऐसा हो ही जाता है नहीं तो कहानी कहाँ से आगे बढ़ती? लेक़िन उनका और उनकी पत्नी का संबंध कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चूँकि फैमिली मैन है तो परिवार वाला ट्रैक साथ में चलता रहता है औऱ इस बार मनोज बाजपेयी की बेटी का थोड़ा ज़्यादा काम है।

श्रीलंकाई तमिल आतंकवादियों का एक समूह भारतीय औऱ लंका के नेताओं पर हमले की फ़िराक में हैं। कैसे बाजपेयी औऱ उनकी टीम इसको नाकाम करते हैं यही कहानी है। पिछली बार जैसे मिशन कश्मीर में था इस बार दक्षिण भारत में कहानी सेट है। इसके अलावा इसके कुछ क़िरदार लंदन में भी हैं। कुल मिलाकर सीरीज़ बड़ी स्केल पर बनाई गई है।

अभिनय

मनोज बाजपेयी के साथ प्रियामनी, सामंथा अकिनेनी, सीमा बिस्वास, शारिब हाशमी मुख्य भूमिका में हैं। कलाकारों की लिस्ट लंबी है इसलिये कुछ का ही ज़िक्र कर रहे हैं। पहले सीज़न वाले कलाकार अपने क़िरदार में हैं औऱ उसी को आगे बढ़ाते हैं। सामंथा का किरदार बोलता कम है औऱ काम ज़्यादा करता है औऱ उन्होंने जो उन्हें काम दिया गया वो बख़ूबी निभाया है।

निर्देशक

निर्देशक राज और डीके कहानी को हल्की फुल्की रखने के चक्कर में बहुत सारी चीजों को नज़रअंदाज़ करते लगते हैं। औऱ जब लगता है कहानी यहाँ पर ख़त्म होगी तो उसको खींचते से लगते हैं क्योंकि उनको उसको एक बड़े स्केल पर दिखाना है। सीरीज़ का कैमरावर्क अच्छा है लेक़िन क्या सिर्फ़ बढ़िया कैमरे का काम आपको चार घंटे तक बाँधे रख सकता है?

क्यूँ देखें / न देखें

लगभग साढ़े चार घंटे की सीरीज़ है तो अगर आप समय का सदुपयोग करना चाहते हैं तो सोच समझ कर पहल करें। अगर आप देखना चाहते हैं तो ये एक टाइमपास सीरीज़ है जैसी ज़्यादातर सीरीज़ होती हैं। बहुत कुछ पहले सीज़न के जैसा है – गलियों में अपराधी के पीछे भागना। मतलब इसको तो हमारे निर्देशकों ने अब इतना भुना लिया है की अब इसमें कुछ नयापन नहीं दिखता। हाँ आजकल इसकी लंबाई ज़रूर चर्चा का विषय रहता है। लेक़िन अब इसमें वो मज़ा नहीं रहा। बहुत सी वर्तमान स्थिति पर लेखक टिप्पणी ज़रूर करते हैं लेक़िन चूँकि वो सीरीज़ का फ़ोकस नहीं है तो बस बात आई गयी हो जाती है।

एक सीक्वेंस है जिसको देख कर हँसी भी आती औऱ स्क्रिप्ट और डायरेक्टर की सोच पर आश्चर्य कम तरस ज़्यादा होता है। देश के शीर्ष नेता पर हवाई हमले की बात हो रही हो औऱ हमारी हवाई क्षमता का कोई ज़िक्र भी नहीं। औऱ तो औऱ शीर्ष नेताओं की सुरक्षा में लगी एजेंसी या हमारी सेनाओं से भी कोई तालमेल नहीं दिखाया गया है जो बहुत ही हास्यास्पद है। शायद इसलिये की बाजपेयी जी एक एजेंट हैं, एक फाइटर पायलट नहीं। इसलिये उनकी बंदूक के निशाने से ही…

इस सीरीज़ का अगला सीज़न भी बनेगा ऐसा आख़िरी एपिसोड में बता दिया गया है। इस बार निर्देशक ने कहानी अरुणाचल प्रदेश वाले इलाके में सेट करी है तो तैयार हो जाइये वहाँ की खूबसूरती देखने के लिये। औऱ अगर आपको कोई अच्छी सीरीज़ देखने का मन है तो मेरे दो ही सुझाव हैं : दिल्ली क्राइम औऱ स्पेशल ऑप्स। दोनों की स्क्रिप्ट औऱ उसका ट्रीटमेंट क़माल का है। वैसे इस सीरीज़ के लेखकों को गुल्लक भी एक बार देख लेना चाहिये। शायद तीसरे सीज़न में कुछ बात बन जाये।

रही सोने वाली बात – तो ट्रेलर से अपनी उम्मीदें न बांधें औऱ न ये समझें की मनोज बाजपेयी हैं तो बढ़िया होगी। क्योंकि हर चमकती चीज़…

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