आज ऐसे ही सफ़ाई के मूड में अपनी कुछ पुरानी फ़ाइल और कागज़ात निकाले। इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत होती कुछ इस तरह से की मैं परिवार के अन्य सदस्यों को बोलता हूँ कि वो पुराना सामान निकाले और जिसकी ज़रूरत नहीं हो वो निकाल कर रद्दी में रख दें। ये मेरा सेल्फ गोल होता है क्योंकि फिर मुझे ही सुनने को मिलता है श्रीमती जी से की आप का भी बहुत सारा पुराना सामान रखा है उसे भी देख लीजियेगा।
मैं सिर्फ इसी उद्देश्य से इस काम में जूट जाता हूँ। लेकिन बस शुरू ही हो पाता है कि फिर एक एक कर कुछ न कुछ मिलता रहता है। जैसे इस बार मुझे मिले कुछ पत्र जो करीब 18 साल पुराने हैं। कुछ दोस्तों के द्वारा लिखे हुए और कुछ परिवार के सदस्यों के द्वारा। परिवार वाले पत्र तो उस समय क्या चल रहा था उसके बारे में होते हैं लेकिन दोस्तों के पत्र होते हैं अधिकतर फ़ालतू जानकारी से भरे हुए लेकिन मज़ेदार। अगर उनको अठारह वर्ष बाद पढ़ा जाये तो उसका मज़ा ही कुछ और होता है।
लेकिन अब आजकल जो ये ईमेल और व्हाट्सएप का चलन शुरू हुआ है तो कागज़ पर अपने विचारों को उतारना ख़त्म सा हो गया है। अब तो जन्मदिन या बाकी अन्य आयोजन के उपलक्ष्य में भी फेसबुक या व्हाट्सएप पर बधाई दे दीजिये। बस काम हो गया। इससे पहले दोस्त, घरवाले कार्ड दिया करते थे। दूर रहनेवाले रिश्तेदार भी कार्ड चिट्ठी भेजा करते थे।
लेकिन जैसा कि फ़िल्म नाम के चिट्ठी आयी है गाने में आनंद बक्शी साहब ने लिखा है,
पहले जब तू ख़त लिखता था कागज़ में चेहरा दिखता था, बंद हुआ ये मेल भी अबतो ख़त्म हुआ ये खेल भी अब तो।
वैसे हिंदी फिल्मों में ख़त का इस्तेमाल अमूमन प्यार के इज़हार के लिये ही होता रहा है फ़िर चाहे वो सरस्वतीचंद्र का फूल तुम्हे भेजा है ख़त में हो या मैंने प्यार किया का कबूतर जा या संगम का ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर। लेकिन अब ऐसे गीत बनेंगे नहीं और अगर मेरे जैसे किसी ने ऐसा कर दिया तो सब हंसेंगे की अब कौन पत्र लिखता है।
जब आजकल के नये संपर्क साधन नहीं थे तो नई जगह पहुंच कर वहाँ से पिक्चर पोस्टकार्ड भेजने का भी चलन था। ऐसे ही कुछ मुझे अपने ख़ज़ाने में मिले जब भाई विदेश गया था और जब माता पिता धरती पर स्वर्ग यानी कश्मीर गए थे। अब तो बस सेल्फी खींचो और शेयर करो। विपशना के जैसे कहीं बाहर जाओ तो फ़ोन के इस्तेमाल पर रोक लगा देना चाहिये।
इस डिजिटल के चलते एक और चीज़ छूट रही है और वो है फ़ोटो। सबके मोबाइल फ़ोन फ़ोटो से भरे हुए हैं लेकिन अगर आप और मोबाइल बिछड़ जायें तो… पिछले दिनों जब व्हाट्सएप मोबाइल से हटा रहा तो श्रीमती जी ने आगाह भी किया कि फ़ोटो भी चली जायेंगी। ख़ज़ाने में मुझे बहुत सारी पुरानी फ़ोटो भी मिलीं। ढूँढने पर एक पुराना एल्बम भी मिल ही गया। बस इस सबके चलते यादों का कारवाँ निकल पड़ा लेकिन जिस काम के लिये बैठे थे वो नहीं हुआ।
इस नये चलन को बढ़ावा मैंने भी दिया लेकिन अब जब पुराने पत्र पढ़ रहा हूँ तो लगता है इस सिलसिले को फ़िर से शुरू करना चाहिये। तो बस कल पास के पोस्टऑफिस से कुछ अंतर्देशीय और पोस्टकार्ड लेकर आयेंगे और पहुँचाते हैं आप तक। अगर आप भी इसका हिस्सा बनना चाहते हैं तो अपना पता छोड़ दें कमेंट्स में। वो क्या है ना कि हम फ़ोन नंबर से शुरू कर अपनी दोस्ती सिर्फ फ़ोन तक ही सीमित कर लेते हैं। जब तक मिलने का संयोग न हो तो पते का आदान प्रदान नहीं होता है।