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कल के लिये आज को न खोना

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ औऱ पांडव विजयी हुये तो श्रीकृष्ण गांधारी से मिलने गये। युद्ध में अपने पुत्रों की मृत्यु से दुःखी गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया था की जैसे उनके सामने उनके कुल का अंत हुआ था वैसे ही श्रीकृष्ण के सामने यदुवंश का भी ऐसे ही अंत होगा।

श्रीकृष्ण को तो इस बारे में सब ज्ञात था लेक़िन श्रीराधा ने जब स्वपन में ये प्रसंग देखा तो वो तहत विचलित हुईं। वो किसी भी तरह से आगे जो ये होने वाला था उसको रोकने का प्रयास करने लगीं। उन्होंने उस व्यक्ति को भी ढूंढ निकाला जिसके तीर से वासुदेव के प्राण निकलने वाले थे। राधा ने जरा नामक उस व्यक्ति को स्वर्ण आभूषण भी दिये ताकि वो अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सके औऱ शिकार करके जीवनयापन की आवश्यकता ही न पड़े।

श्रीकृष्ण ये सभी बातें जानते थे औऱ वो अपने तरीक़े से राधा को ये समझाने का प्रयास भी कर रहे थे की कोई कुछ भी करले जो नियत है वो होकर ही रहेगा। अंततः श्रीराधा को ये बात समझ आ जाती है की जिस पीड़ा से वो डर रही हैं वो एक चक्र है। अगर एक पुष्प खिला है तो उसका मुरझाना निश्चित है। जब इस बात का उन्हें ज्ञान हो जाता है तो उनका बस एक ही लक्ष्य रहता, जो भी समय है उसको श्रीकृष्ण के साथ अच्छे से व्यतीत करें।

यही हमारे जीवन का भी लक्ष्य होना चाहिये। हर दिन को ऐसे बितायें जैसे बस आज की ही दिन है। कल पर टालना छोड़ें।

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