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जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है

गुलज़ार मेरे पसंदीदा शायरों में से एक हैं औऱ इसके पीछे सिर्फ़ उनके लिखे गाने या ग़ज़ल ही नहीं बल्कि उनकी फिल्मों का भी बहुत बड़ा योगदान है। वैसे आज तो पूरी पोस्ट ही गुलज़ारमय लग रही है। शीर्षक भी उन्हीं का एक गीत है औऱ आगे जो बात होने जा रही वो भी उनका ही लिखा है। आज जिसका ज़िक्र कर रहे हैं वो न तो फ़िल्म है न ही गीत। औऱ जिस शख्स को याद करते हुये ये पोस्ट लिखी जा रही है, वो भी गुलज़ार की बड़ी चाहने वालों में से एक।

गुलज़ार, विशाल भारद्वाज (संगीतकार), भूपेंद्र एवं चित्रा (गायक) ने साथ मिलकर एक एल्बम किया था सनसेट पॉइंट। इस एल्बम में एक से एक क़माल के गीत थे। मगर इसकी ख़ासियत थी गुलज़ार साहब की आवाज़ जिसमें वो एक सूत्रधार की भूमिका में कहानी को आगे बढ़ाते हैं या अगले गाने के लिये एक पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। इसको सुनकर आपकी गाना सुनने की इच्छा औऱ प्रबल होती है। शायद अपने तरह का ये एक पहला प्रयोग था। एल्बम का पूरा नाम था सनसेट पॉइंट – सुरों पर चलता अफ़साना।

आज से ठीक एक बरस पहले हमारा जीवन हमेशा के लिये बदल गया जब मेरी छोटी बहन कैंसर से अपनी लड़ाई हार गई। कहते हैं बदलाव ही जीवन है। हम में से किसी के पास भी इस बदलाव को स्वीकार कर आगे बढ़ने के अलावा औऱ दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था। आप कुछ भी करिये, नहीं मानिये, लेक़िन वो बदलाव हो चुका था। हमेशा के लिये।

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यशस्विता शास्त्री ❤️❤️❤️

365 दिन का लंबा सफ़र पलक झपकते ही ख़त्म हो गया लेक़िन यादों की सुई जैसे अटक सी गयी है। अग़र आपने कभी रिकॉर्ड प्लेयर पर गाने सुने हों तो ठीक वैसे ही। कुछ आगे बढ़ता सा नहीं दिखता लेक़िन 2021 आया भी औऱ अब ख़त्म होने की कगार पर है।

वापस आते हैं आज गुलज़ार साहब कैसे आ गये। इस एल्बम में अपनी भारी भरकम आवाज़ में एक गीत के पहले कहते हैं –

पल भर में सब बदल गया था…

…औऱ कुछ भी नहीं बदला था।

जो बदला था वो तो गुज़र गया।

कुछ ऐसा ही उस रात हुआ था। अपनी आंखों के सामने \’है\’ को \’था\’ होते हुये देखा। पल भर में सब कुछ बदल गया था। सभी ने अपने अपने तरीक़े से अपने आप को समझाया। जब नहीं समझा पाये तो आँखे भीगो लीं। कभी सबके सामने तो कभी अकेले में। हम सब, यशस्विता के परिवारजन, रिश्तेदार, दोस्त सब अपनी अपनी तरह से इस सच्चाई को मानने का प्रयास कर रहे थे। लेक़िन समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा औऱ आज यशस्विता को हमसे बिछड़े हुये एक बरस हो गया। पहली बरसी।

ज़िन्दगी की खूबसूरती भी यही है। ये चलती रहती है। औऱ यही अच्छा भी है। नहीं तो हम सभी कहीं न कहीं अतीत में भटकते ही रहें। सबके पास अपने अपने हिस्से की यादें हैं। कुछ साझा यादें भी हैं औऱ कुछ उनके बताने के बाद हमारी यादों का हिस्सा बन गईं। आज जब यशस्विता को याद करते हैं तो इसमें वो बातें भी होती जो उससे कभी नहीं करी थीं क्योंकि इन्होंने आकार उनके जाने के बाद लिया। जैसे कोई अजीबोगरीब नाम पढ़ो या सुनो तो उसका इस पर क्या कहना होता ये सोच कर एक मुस्कान आ जाती है औऱ फ़िर एक कारवां निकल पड़ता है यादों का। जैसे अमिताभ बच्चन सिलसिला में कहते हैं न ठीक उसी तरह…तुम इस बात पर हैरां होतीं। तुम उस बात पर कितनी हँसती।

जब मैंने लिखना शुरू किया तो अतीत के कई पन्ने खुले औऱ बहुत सी बातों का ज़िक्र भी किया। जब कभी यशस्विता से बात होती औऱ किसी पुरानी बात की पड़ताल करता तो उनका यही सवाल रहता, आज फलां व्यक्ति के बारे में लिख रहे हो क्या। मेरे ब्लॉग की वो एक नियमित पाठक थीं औऱ अपने सुझाव भी देती रहती थीं। जब मैंने एक प्रतियोगिता के लिये पहली बार कहानी लिखी तो लगा इसको आगे बढ़ाना चाहिये। तो ब्लॉग पर कहानी लिखना शुरू किया तो कुछ दिनों तक उनकी कुछ प्रतिक्रिया नहीं मिली। लिखने मैं वैसे भी आलसी हूँ तो दो पोस्ट औऱ शायद तीन ड्राफ्ट (जो लिखे तो लेक़िन पब्लिश नहीं किये) के बाद भूल गये। एक दिन यशस्विता ने फ़ोन कर पूछा कहानी में आगे क्या हुआ? अब लिखने वाले को कोई उसकी लिखी कहानी के बारे में पूछ लें इससे बड़ा प्रोत्साहन क्या हो सकता है, भले ही पाठक घर का ही हो तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैंने उनसे कहा अग़र आगे की कहानी जाननी है तो कमेंट कर के पूछो। न उन्होंने कमेंट किया न वो ड्राफ्ट ही पब्लिश हुये। वैसे उसके बाद उनकी स्वयं की कहानी में इतने ट्विस्ट आये की जय, सुधांशु, कृति औऱ स्मृति की कहानी में क्या ही रुचि होती। ख़ैर।

औऱ वो जो गुलज़ार का गाना जिसका मैंने ज़िक्र किया है ऊपर, उसके बोल कुछ इस तरह से हैं,

तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,
रात भी आई थी और चाँद भी था,
सांस वैसे ही चलती है हमेशा की तरह,
आँख वैसे ही झपकती है हमेशा की तरह,
थोड़ी सी भीगी हुई रहती है और कुछ भी नहीं,

होंठ खुश्क होते है, और प्यास भी लगती है,
आज कल शाम ही से सर्द हवा चलती है,
बात करने से धुआं उठता है जो दिल का नहीं
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं
रात भी आई थी और चाँद भी था,
हाँ मगर नींद नहीं …नींद नहीं…

गुलज़ार – सनसेट पॉइंट

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Comment

  1. तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं शिकवा नहीं
    तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी तो नहीं ज़िंदगी नही

    • सभी गुलज़ारमय हुये जा रहे हैं। वैसे लिखते भी लाजवाब हैं। ❤️