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रविवारीय: तेरी एक निग़ाह की बात है, मेरी ज़िंदगी का सवाल है

आप सभी ने कभी न कभी वो साबुन वाला विज्ञापन ‘मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता नहीं चलता’ ज़रूर देखा होगा। इसकी एक लाइन है जो वर्षों से चली आ रही है। असल जीवन में मुझे ये विज्ञापन औऱ इसकी ये लाइन तब याद आती है जब…

मेरे साथ अक्सर तो नहीं लेक़िन कई बार हुआ है की मेरे अनुज को मेरा बड़ा भाई बताया गया है। जब भी ऐसा होता तो विज्ञापन की याद आती है। हाल ही में ये घटना एक बार औऱ हो गयी जब साल के अंत में हमारा गोवा जाना हुआ। होटल के रिसेप्शन से मैंने कुछ बात करी थी। उसके बाद भाई पहुँचे तो उनसे बोला आपके छोटे भाई आये थे अभी। पहले तो भाई को समझ में नहीं आता उनका छोटा भाई कौन आ गया। लेक़िन अब वो मुस्कुरा कर गर्दन हिला देते हैं।

इसके पहले आपको लगे इसमें किसी साबुन का योगदान है, तो मैं बता दूँ ऐसा कुछ नहीं है। आज जो ये बडे छोटे वाली बात निकली है दरअसल इसकी वजह हैं मेरी एक पुरानी सहयोगी जो इस समय शायद अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुज़र रही हैं।

कुछ दिनों पहले उनसे फ़ोन पर बात हुई थी तो वो कहने लगीं, औऱ कुछ भी हो जाये घर का बड़ा नहीं होना चाहिये। बहुत सारी ज़िम्मेदारी होती हैं उनके कंधों पर जो बड़े होते हैं। ये ज़िम्मेदारी कुछ तो उनको इसलिये मिलती हैं क्योंकि वो बड़े हैं औऱ कुछ इसलिये उनको उठानी पड़ती हैं क्योंकि वो बड़े हैं।

परिवार में जो बच्चे बड़े रहते हैं वो समय से पहले ही बड़े हो जाते हैं अपने बड़े होने के कारण। थोड़ा पेचीदा सा लगता है लेक़िन अपने आसपास देखिये। घर में अगर दो बच्चे हैं तो जो बड़ा होता है उसको शुरू से ही यही समझाईश सुनने को मिलती है, \’तुम बड़ी/बड़े हो\’।

ज़्यादातर जितने भी बड़े लोगों को में जानता हूँ वो सभी थोड़े ज़्यादा संजीदा होते हैं। वहीं उसी घर के छोटे जो होते हैं वो ज़्यादा मस्तीखोर, चंचल। बहुत कम घर/परिवार में बड़ों को ऐसा करते देखा है। कभी कभार शायद, लेक़िन ज़्यादातर वो एक गंभीर मुद्रा में रहते हैं।

हिंदी फ़िल्मों को ही देख लीजिये। यादों की बारात के धर्मेंद्र हों या अमर अकबर एंथोनी के विनोद खन्ना। सभी तीनों भाइयों में बड़े भाई थे और सभी गंभीर। फ़िल्म में उनके जो छोटे भाई थे वो ज़्यादा चुलबुले थे।

फ़िल्मों में अगर बड़े भाई की बात करें तो ‘जो जीता वही सिकन्दर’ में भी बड़े भाई को थोड़ा गंभीर। सबका ख़्याल रखने वाला, ज़िम्मेदार। पूरी फ़िल्म में आमिर ख़ान एक के बाद एक मुसीबत में पड़ते रहते हैं औऱ मामिक सिंह उनको बचाते रहते हैं। लेक़िन एक जगह फ़िल्म में मामिक को अपना गंभीर होना छोड़ गाने में क़मर हिलानी पड़ी।

वैसे तो मामिक लगभग सभी गानों में हैं, लेक़िन बाक़ी कलाकारों के जैसे वो उछल कूद नहीं कर रहे हैं। लेक़िन ‘शहर की परियों के पीछे‘ गाने में मामिक आमिर के साथ नाचते हुये दिखाये गये हैं। आप अगर वो गाना देखें तो आपको भी मामिक थोड़े असहज दिखाई देंगे। इसके पीछे का कारण भी फ़राह खान ने बताया। दरअसल फ़िल्म में दो कोरियोग्राफर थे। पहले सरोज खान थीं औऱ बाद में उनकी जगह आईं फ़राह खान। तो सरोज खान ने ये गाना निर्देशित किया था। बक़ौल फ़राह “अगर वो ये गाना करती

फ़िल्मों से असल जीवन में वापस आते हैं। जिन सहयोगी के बारे में बता रहा था, वो घर में बड़ी हैं औऱ इस कठिन समय में सभी को संभालने का काम उन्हें करना है। अक़्सर ये होता है की कई बार सबको संभालते संभालते हम ख़ुद भी संभल जाते हैं। वैसे मेरे जीवन में ऐसे मौक़े जब भी आये हैं तो मेरे मुक़ाबले मेरे अनुज ने कहीं ज़्यादा संभाला है। मुझे संभलने में एक लंबा समय लगता है तो भाई ये ज़िम्मा उठा लेते हैं औऱ मुझे समय देते हैं।

कई ऐसे भी घर के बड़े देखें हैं जो ये भूल जाते हैं कि वो बड़े हैं। अपने छोटों की ग़लतियों के बारे में ख़ामोश रहना ही अपना बड़प्पन समझते हैं। कई बड़े अपना सारा दुख, परेशानी अपने तक ही सीमित रखते हैं। चूँकि वो बड़े हैं तो वो इनके बारे में सबसे बात नहीं कर सकते। सलाह मशविरा बड़ों से, लाड़ प्यार छोटों से।

मुझे कई बार बड़े होने में औऱ किसी संस्था या टीम के लीडर होने में बड़ी समानताएं दिखाई देती हैं। जब आप ऐसी किसी पोस्ट पर आ जाते हैं तो आपको कम से कम बोलना होता है औऱ आपके पास बहुत सी ऐसी जानकारी होती है जिसे आप किसी के साथ शेयर नहीं कर सकते। जो एक बड़ा फर्क़ होता है वो ये की कोई अनुज नहीं होता जो आपकी जगह चीजों को संभाल सके। ये सब आपको करना होता है।

जब मुझे टीम की ज़िम्मेदारी मिली तो बड़ी खुशी हुई। कई बार बहुत कड़े फ़ैसले भी लेने पड़े। उस समय आपके साथ कोई नहीं होता है लेक़िन आपको जो भी काम है वो करना पड़ता है। चूँकि आपको सिर्फ़ एक दो नहीं बल्कि पूरी संस्था या टीम के बारे में देखना होता है, तो आपको बहुत से अप्रिय निर्णय भी लेने पड़ सकते हैं। जैसे हर लीडर का काम करने का औऱ चीजों को देखने का अपना एक अंदाज़ होता है, वैसे ही घर के बड़ों का भी अलग अलग अंदाज होता है। यहाँ फ़र्क़ ये होता है की लीडर के ऊपर औऱ भी कोई बड़ा अधिकारी होता है, लेक़िन घर में ये बड़ों पर आकर रुक जाता है। शायद इसलिये बड़े जो हैं बड़े ही बने रहते हैं।

होंडा की एक कार आयी थी जैज़। उस साबुन के तरह इस कार के विज्ञापन की जो लाइन थी Why so serious… तो आप भी आप बड़े हों या छोटे, जीवन का भरपूर आनंद लें। औऱ कभी मामिक के जैसे गलती से ही सही, नाचने का मौक़ा मिले तो दिल खोलकर नाचें।

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