उम्र के अलग अलग पड़ाव पर हम अलग अलग तरह के जोखिम उठाते हैं। बचपन में जब चलना सीख रहे होते हैं तो बार गिर कर तब तक कोशिश करते हैं जब तक ठीक से चलना नहीं सीख लेते। आपको अपना साईकल सीखने का समय याद है? जब कोई पीछे से अपना हाँथ खींच लेता है और आपका संतुलन बिगड़ जाता है। मगर कोशिश जारी रहती है। जोखिम उठाने के ये तरीक़े आगे बदलते रहते हैं।
जवानी के ऐसे बहुत से जोखिम आपका जीवन बदल देते हैं। मसलन दोस्तों के साथ कुछ नए तजुर्बे। ये वो समय भी रहता है जब आप नए दोस्त/सखी बनाते है जो आपके जीवन पर्यन्त मित्र रहते हैं। और कुछ दिलों के मामले होते हैं जिस पर किसी का जोर नहीं। ग़ालिब ने कहा भी खूब है ये इश्क़ नहीं आसान।
जिस तूफान का ज़िक्र मैंने किया था वो दरअसल खुद का खड़ा किया हुआ था जिसकी नींव रखी गयी थी कुछ तीन महीने पहले। एक परिचित के घर के सदस्य का आगमन हुआ हमारे यहाँ और बस माहौल कुछ वैसा होगया जैसा शाहरुख खान के साथ होता है फ़िल्म मैं हूँ ना में जब भी वो सुष्मिता सेन को देखते हैं।
इसके बारे में बहुत आगे तक सोचा नहीं था। बस उस समय का आनंद ले रहे थे। सच माने तो ये आँख मिचौली का खेल किस राह पर चलेगा या खत्म होगा इसका कोई पता न था। बहरहाल इस खेल को विराम लग ही गया जब वो अपने घर वापस गये। अब इसमें तूफान जैसा तो कुछ दूर दूर तक दिखाई नहीं देता?
जवानी के जोश में अक्सर हम कुछ खून की गर्मी के चलते ऐसे काम कर बैठते हैं जो शांत बैठ कर सोचा जाए तो बहुत बचकाने लगते हैं। वैसे खून की गर्मी का उम्र से कोई लेना देना नहीं होता है। आप को कई अधेड़ भी मिल जायेंगे जो ऐसी हरकतें नियमित करते हैं। लेकिन जब आप जवान होते हैं तो सारा ज़माना आप का दुश्मन होता है और बस जो आपकी सुन ले और जो आप सुनना चाहते हैं वो कह दे वही दोस्त होता है। वो तो समय के साथ पता चलता है कौन दोस्त है और कौन दुश्मन।
जब यह आंखों की गुस्ताखियां चल रही थीं उस दौरान मैं भोपाल के अंग्रेज़ी दैनिक में बतौर रिपोर्टर काम कर रहा था। साथ में पढ़ाई भी कर रहा था। इन सबसे जो समय बचा था उसका कुछ बहुत अच्छा सदुपयोग हो रहा हो ऐसा नहीं था। लेकिन सब इससे बड़े प्रभावित थे। हाँ अगर वो पूछ लेते पिछले परीक्षा परिणाम के बारे में तो मेरी और अमोल पालेकर की हालत में ज़्यादा फर्क नहीं होता जब उत्पल दत्त के सामने पानी पीते हुए उनकी नकली मूँछ निकल जाती है। बेटा रामप्रसाद…
तो एक रात जाने क्या सूझी सोचा एक फ़ोन लगा लूँ। परीक्षा के लिए शुभकाननाएँ दी जाएं। एसटीडी पीसीओ ऑपरेट कर रहीं भाभीजी की मदद से फ़ोन तक तो बुला लिया और संदेश भी दे दिया। मिशन सफल ठीक वैसे ही जैसे अभय देओल और आएशा टाकिया सोचा न था में रहते हैं। हम और कुछ उम्मीद कर भी नहीं रहे थे। लेकिन सब आप के जैसी सोच वाले मिल जाएं तो पति-पत्नी के जोक्स का क्या होगा। और यही जोक मेरा इंतेज़ार कर रहा था भोपाल में।
मुंबई, पुणे के प्रवास से लौटते जैसे पैरों को पर लग गए थे। बर्ताव कुछ ऐसा जैसे कौन सा क़िला फतेह कर के आये हों। लेकिन गिरे भी उतनी ही ज़ोर से जब पता चला की फ़ोन की खबर घर तक पहुंच चुकी है और रिश्ते की बात भी छेड़ी जा चुकी है।
अब मुझे तैयारी करनी थी उस एनकाउंटर की जो कि कुछ दिनों बाद था लेकिन उसका होना तय था।
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