कल जब शान-ए-भोपाल से दिल्ली वापसी का सफर शुरू किया तो एक बार फिर दिल मायूस हुआ। भोपाल छोड़े हुए इतने साल हो गए लेकिन तब भी हर बार शहर छोड़ने का दुख रहता है। ऐसा नहीं है की मुम्बई ने अपनाया नहीं। मुम्बई ने तो कभी पराया समझा ही नहीं और ऐसे गले लगाया जैसे पता नहीं कब से एक दूसरे को जानते हैं।
कब मुम्बई मेरी और मैं मुम्बई का हो गया ये पता ही नहीं चला। ठीक वैसे ही जब ऐश्वर्या राय अपनी माँ से हम दिल दे चुके सनम में सलमान खान से प्यार कब हुआ, कैसे हुआ पूछने पर कहती है – पता ही नहीं चला। शायद इसलिए इसे मायानगरी कहते हैं।
लेकिन फ़ोन किया गया था और शुभकामनाएं इत्यादि बातें हुई ये पता चल गया था। हिंदी की कहावत काटो तो खून नहीं वाली हालत थी। चोरी पकड़ी गई थी और अब सज़ा की तैयारी थी। लेकिन जवानी का जोश ऐसा की जो करना है करलो। अब बात शादी तक पहुंच गई थी तो कुछ ज़्यादा सीरियस मामला लग रहा था। मतलब ट्रेलर बन रहा था और पिक्चर सिनेमा हॉल में लगने को तैयार।
अल्ताफ ने पूछा कि दिलवाले दुल्हनिया ले गए या देवदास बन गए। हुआ कुछ भी नहीं। ना तो दुल्हनिया लाये न देवदास बने। क्योंकि ये सारी मंज़िलें थोड़ी ऊपर थीं। हम तो बस इस मोहब्बतनुमा इमारत के दरवाजे पर दस्तक ही दे पाए थे की ये सब हो गया।
एनकाउंटर होने वाला था दोनो पक्ष के परिवार वालों का एक अलग शहर में और समझ में ये नहीं आ रहा था कि इससे निकला कैसे जाए। खैर हमारे बड़े बहुत समझदार निकले और ऐसी कोई नोबत आयी नहीं और दोनों पक्ष बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में मिले। घटना का ज़िक्र नहीं हुआ और न ज़िक्र हुआ उस फिल्मी डायलॉग का – क्यूं न हम अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल लें। वैसे परिवार में ऐसे विवाह हुए हैं लेकिन इस एपिसोड के काफी बाद।
इस पूरे समय दिमाग में सवाल यही था कि पता कैसे चला। उन दिनों लैंडलाईन हुआ करती थी और बड़े घरों में उसका एक्सटेंशन लगाया जाता था ताकि फ़ोन उठाने के लिए दौड़ भाग न करनी पड़े। उस रात दौड़ भाग तो नहीं हुई बस मेरा फ़ोन ठीक वैसे ही सुना गया जैसे गोगा कपूर फ़िल्म कयामत से कयामत तक में आमिर खान और जूही चावला की बातें सुन लेते हैं। यहां बात किसने सुनी ये रहने देते हैं।
क्या इसके बाद सुधार गए या फिर दिल संभल जा ज़रा फिर मोहब्बत करने चला है तू वाला मामला रहा ?