in ब्लॉग

भोपाल के प्रति मेरा प्यार

\"timelapse

मैंने सिर्फ शहर बदला था और मेरा भोपाल के प्रति मेरा प्यार और गहरा हो रहा था। परिवार और दोस्त सब वहीं थे इसलिये जब भी मौका मिलता भोपाल की तरफ़ दौड़ पड़ता। ऐसा अमूमन हर महीने ही होता था। आजकल की ईमेल जनता के लिए ये बड़े अचरज की बात होगी कि उन दिनों हम एक दूसरे को पत्र लिखा करते थे।

कुछ पत्र लंबे होते थे जो 3-4 पेज के होते थे और ज़्यादातर अंतर्देशीय पत्र हुआ करते थे। आज भी उन संभाल के रखे पत्रों के साथ कभी कभार एक यादों की यात्रा पर निकल पड़ते हैं। कभी हंसी आती है उन बातों पर जो अब बचकानी लगती हैं तो कभी उन कागज़ पर उमड़े हुए जज़्बात आंखे नम कर जाते हैं।

ये पत्रों का सिलसिला जो दिल्ली से शुरू हुआ था वो मुम्बई में भी चलता रहा। हाँ मुम्बई में पत्रों को पहुंचने में समय लगता था। फ़ोन ज़्यादातर अभी भी लैंडलाइन ही हुआ करते थे। लेकिन पत्रों का मज़ा उन फ़ोन कॉल्स में कहां जब आपकी नजर सिर्फ डिस्प्ले स्क्रीन पर बढ़ते हुए पैसे की तरफ रहती थी।

PTI गेस्टहाउस में एक फ़ोन दे रखा था और बहुत तेज़ आँधी बारिश के बाद भी वो काम कर रहा था। नहीं मैं उसको हर घंटे चेक नहीं कर रहा था बल्कि सुबह सुबह फ़ोन आ गया। बारिश के चलते कोई नहीं आया है आप दोनों फौरन पहुँचे। यहाँ दूसरे शख्स हैं रणविजय सिंह यादव। इनके बारे में फ़िर कभी। इसके पहले की ये बताया जाए कि यही मजबूरी हमारी भी है, बताया गया बस चल रही है और उससे आप ऑफिस पहुंच सकते हैं।

एजेंसी में काम कभी रुकता नहीं है और आपको अपने उपभोक्ताओं को समाचार देना है। बस यही एकमात्र उद्देश्य रहता है। चेंबूर में घर के नीचे से ही बस मिलती थी तो तैयार होकर पहुँच गए बेस्ट के इंतज़ार में। बस आयी औऱ उसमे बैठ गए। ये पता था समय लगेगा लेकिन कितना ये नहीं पता था।

आगे जो नज़ारा देखा वो काफी डरावना ही था। प्रियदर्शिनी पार्क के कुछ पहले पानी जमा था और ड्राइवर काफी सावधानी पूर्वक चलाते हुए जा रहा था। थोड़ी देर में पानी बस की सीढ़ियों तक पहुँच गया था। ये सब पहले देखा नहीं था हाँ एक बार भोपाल में ऐसी ही बरसात में कार पानी में चलाई थी और वो बीच रोड पर बंद हो गयी थी। गनीमत है मुम्बई में दिन था लेकिन अगर ये बस भी बंद हो गयी तो?

खैर सही सलामत आफिस पहुँच गए जहां ढेर सारा काम हमारा इंतज़ार कर रहा था। कितने दिन तक ऑफिस में ही रहे इसकी कुछ याद नहीं लेकिन मुंबई की बारिश के बारे मे अब नज़रिया बदल गया था। लेकिन आज भी ये मानता हूँ कि दिल्ली की सर्द सुबह और मुम्बई की बारिश का कोई मुकाबला नहीं है।

इतने सालों से मुम्बई की बारिश का आनंद लिया है अब है समय दिल्ली की सर्दियों का लुत्फ उठाने का।

Write a Comment

Comment