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पत्रकारिता के सफर की शुरुआत

दिल्ली से जो मेरा पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ था उसकी नींव भोपाल में पड़ी थी। कॉलेज करने के बाद PG करने का मन तो नहीं था लेकिन LLB नहीं कर पाने की वजह से MA में दाखिला ले लिया। लेकिन दो घंटे के कॉलेज के बाद समय ही समय होता था। संयोगवश वहीं से प्रकाशित दैनिक में आवयश्कता थी और मैंने अर्ज़ी भेज दी और चुन भी लिया गया।

जिस समय मैं इस फील्ड को समझ रहा था उस समय भी इसका आभास नहीं था कि एक दिन में इसे बतौर करियर अपनाऊंगा। उस समय इसका सिर्फ एक उद्देश्य था -समय का सदुपयोग। पता नहीं कैसे धीरे धीरे मुझे पत्रकारिता रास आने लगी और आज इतना लंबा सफर गुज़र गया जो लगता है जैसे कुछ दिन पुरानी बात ही हो।

डॉ सुरेश मेहरोत्रा मेरे संपादक थे और नासिर कमाल साहब सिटी चीफ। अगर आज मैं इस मुकाम पर हूँ तो इसका श्रेय इन दो महानुभाव को जाता है। मुझे अभी भी याद मेरी पहली बाइलाइन जो कि पहले पन्ने पर छपी थी। आज के जैसे उन दिनों बाइलाइन के लिए बड़े कठोर नियम हुआ करते थे। बाइलाइन का मतलब उस स्टोरी को किसने लिखा है।

पहली बाइलाइन स्टोरी वो भी फ्रंट पेज पर। खुशी का ठिकाना नहीं। स्टोरी थी मध्य रेल के अधिकारी के बारे में और उनके एक वक्तव्य को लेकर। स्टोरी छपी और दूसरे दिन मुझे ढूंढते हुए कुछ लोग पहुँचे। उनकी मंशा निश्चित रूप से मुझे अपने परिवार का दामाद बनाने की नहीं रही होगी और मैं खुश भी था और डरा हुआ भी। खैर उनसे आमना सामना तो नहीं हुआ लेकिन छपे हुए शब्दों का क्या असर होता है उसको देखा।

डॉ मेहरोत्रा ने हमेशा हर चीज़ के लिये प्रोत्साहित ही किया। नहीं तो इतनी जल्दी से विधानसभा पर कवरेज, मंत्रालय बीट आदि मिलना बहुत ही मुश्किल था।

नासिर कमाल साहब कब बॉस से दोस्त बन गए पता नहीं चला। मामू, नासिर भाई के नाम से हम सब उन्हैं प्यार बुलाते थे। उनके काम करने अंदाज एकदम अलग। ओर बिना किसी शोर शराबे के सारा काम आराम से हो जाया करता था। और भोपाल के इतिहास के उनके पास जो किस्से थे वो कभी किताब की शक्ल ले ही नहीं पाये।
आज अगर कोई मुझे अच्छे बॉस होने के श्रेय देता है तो मैं कृतज्ञता प्रकट करता हूं डॉ मेहरोत्रा और नासिर क़माल साहब के प्रति। और धन्यवाद देता हूँ उन सबको जिनके चलते मुझे ऐसे सुलझे व्यक्तित्व के धनी दो व्यक्ति मिल गए अपने शुरुआती में। #असीमित #भोपाल #दिल्ली

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