in ब्लॉग

अपूर्व से यादगार मुलाक़ात – पहली और आखिरी

अपूर्व (मनु) से मुलाक़त उनका बारे में काफी किस्से सुनने के बहुत समय बाद हुई। और वो जो मुलाक़ात हुई वो यादगार बन गयी। मनु हमारी पीढ़ी के पहले सैनिक अधिकारी थे। मतलब जिनसे मेरा साक्षात मिलना हुआ। सुनते तो कइयों के बारे में थे कि वो ऑफिसर हैं लेकिन मिलना मनु से हुआ। शायद मनु ही परिवार के कई और बच्चों की प्रेरणा के स्त्रोत भी बने।

मनु जब पहली बार हमारे यहां आए थे तो उनकी बुआ की बेटी का तिलक लेके। भाइयों की फौज भोपाल में इकट्ठा हमारे ही घर हुई थी। हम सब तिलक लेकर गए और कार्यक्रम खत्म कर घर लौट रहे थे। उस रात बहुत तेज़ बारिश हो रही थी और हम सब बड़े चाचा की फ़िएट कार में घर लौट रहे थे।

आप में से जिनका कभी भोपाल जाना हुआ हो तो जानते होंगे कि भोपाल में सड़कें काफी उतार चढ़ाव वाली हैं। रात में बारिश काफी जोर से हो रही थी और सड़क पर पानी भरा हुआ था। सब लड़के मस्ती के मूड में और बारिश। बस गाड़ी दौड़ रही थी और ऐसे ही एक चढ़ाई के एन पहले रोड पर जमा हुए पानी से गाड़ी स्टाइल से निकाली गई। लेकिन ये क्या- चढ़ाई आधी ही चढ़ी थी कि गाड़ी बंद और लुढ़कने लगी वापस।

विवेक वर्मा जो आज भी ऑटो एक्सपर्ट हैं, काफी कोशिश करी की कार ज़िंदा हो जाये लेकिन सभी प्रयास असफल रहे। उन दिनों मोबाइल फ़ोन तो हुआ नहीं करते थे सो मदद कैसे मंगायी जाए इस पर विचार चल रहा था। सभी भाई जो तिलक के लिए तैयार होकर निकले थे कुछ देर में सड़क पर भीगते हुए कार को धक्का लगाते हुए वापस घर पहुंचे। वहाँ सबकी अच्छी ‘खातिरदारी’ हुई।

लेकिन इन सबके बाद भी मनु की आंखों में नींद नहीं। उन दिनों फुटबॉल वर्ल्डकप चल रहा था और मनु को देखना था मैच। बस चाय के साथ मनु मैच देखकर सोए। ये मेरी मनु से पहली मुलाक़ात थी। बीच में मनु की पोस्टिंग के बारे में सुनता रहता लेकिन मिलना नही हुआ।

जब माँ ने कल बताया कि मस्तिष्क ज्वर के कारण मनु नही रहा तो एक धक्का सा लगा और उस रात का वाकया फिर से आँखों के सामने आ गया। अब तुम उस और धमाल करोगे मनु, इसी विश्वास के साथ।

Write a Comment

Comment

  • Related Content by Tag