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क्यूँ इस क़दर हैरान तू, मौसम का है मेहमान तू

पिछले दो दिनों से पुराने टीम के सदस्यों से बातचीत चालू है। इसका मतलब ये नहीं कि वो बंद हो गयी थी। वो बस मैं ही संपर्क काट लेता हूँ तो सबके लिये और आश्चर्य का विषय था कि मैंने फ़ोन किया।

बातों में बहुत सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। दिसंबर 2016 में एक पार्टी हुई थी। शायद टीम के साथ आखिरी बार। ये पार्टी बहुत लंबे समय से टलती आ रही थी। हमेशा ऐन मौके पर कैंसिल हो जाती। लेकिन दिसंबर में ये निर्णय हुआ कि 2016 का पार्टी का बहीखाता उसी साल बंद कर दिया जाये। बस एक दिन सुनिश्चित हुआ और जो आ सकता है आये वाला संदेश भेज दिया।

हर टीम में एक दो ऐसे सदस्य होते हैं जो पार्टी कहाँ, कैसे होगी, खानेपीने का इंतज़ाम करने में एक्सपर्ट होते हैं। मेरी टीम में ऐसे लोगों की कोई कमी नही थी। बस उन्होंने ये ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। और क्या पार्टी हुई थी। उस शाम वहाँ दो गायक भी थे। चूंकि हमारी फौज बड़ी थी तो नज़रंदाज़ करना भी मुश्किल था। खूब गाने सुने उनसे और थोड़ी देर बाद उन्हें सुनाये भी। अच्छा हम लोगों की पार्टी तो ख़त्म हो गयी लेकिन कुछ लोगों की उसके बाद किसी के घर पर देर रात तक चलती रही।

लेकिन अगले दिन ऑफिस में बवाल मचा हुआ था। हमारी पार्टी की ख़बर ऊपर तक पहुंच गई थी। काफ़ी सारे सवालों के जवाब दिये गये। एहसास-ए-जुर्म बार बार कराया जा रहा था। उसके पीछे की मंशा कब तक छुपी रहती। तब तक चीज़ें बदलना शुरू ही चुकी थीं और अगले सात महीने तक तो पूरी कायापलट हो गयी थी और फ़िल्मी सीन \’मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ\’ वाली स्थिति हो गयी थी। लेकिन इस पूरे समय जो साथ रहे ये वही टीम के सदस्य थे। नहीं, वही सदस्य हैं।

ये पूरी की पूरी टीम के सभी सदस्यों से मेरा मिलना 2012 से शुरू हुआ था। आज भी मुझे बड़ा अचरज होता है की कॉलेज से निकले युवाओं के साथ और कुछ अनुभवी लोगों की टीम ने क्या शानदार काम किया। ये जानकर और अच्छा लगा कि उनमें से कई अब बड़ी टीम को लीड कर रहे हैं। उनकी तरक़्क़ी देख कर खुशी भी होती है और गर्व भी। उन सभी के जज़्बे को सलाम।

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