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ये न थी हमारी किस्मत…

मुम्बई या कहें नवी मुंबई में जहां में रहता हूँ वहाँ इन दिनों ट्रैफिक पुलिस काफी सक्रिय है ग़लत तरह से पार्क हुई गाड़ियों के खिलाफ कार्यवाही करने में। ये एक अच्छा प्रयास है। लेकिन जिस जगह वो ये सब कर रहे हैं वहाँ से ट्रैफिक कभी भी बाधित नही होता। जहाँ से गाड़ी उठायी जाती हैं उसके बिल्कुल सामने गाड़ियां बहुत ही बेतरतीब तरीक़े से खड़ी रहती हैं लेकिन उस पर इस पूरी टीम की नज़रें ही नहीं पड़ती। इसी एरिया में थोड़ी दूर पर ऑटोरिक्शा वाले ग़लत तरीक़े से ऑटो खड़े कर ट्रैफिक बाधित करते है लेकिन कुछ कार्यवाही होती हुई नहीं दिखती।

चलिये इसको भी मान लेते हैं। लेकिन उसी रोड पर थोड़ा आगे चलकर एक भारत सरकार के उपक्रम का कार्यलय है और उसमें काम करने वालों के वाहन, उनको मुम्बई से लाने वाली मिनी बस जैसे कई वाहन ग़लत लेन में पार्क रहते हैं। लेकिन उसपर कोई कार्यवाही इतने दिनों में होती हुई नहीं देखी है। आगे भी होगी इसकी गुंजाइश कम ही लगती है।

ज़्यादातर लोग अपनी ऊर्जा ऐसे छोटे छोटे काम में गवां देते हैं जो समय का भी नुकसान करते हैं। दो ऐसे समय गवाने वाले काम जो अक्सर काफ़ी लोग करते है उनमें से एक है सोशल मीडिया पर और दूसरा चैनल पर घूमते रहना। लेकिन रोज़ मैं जब अपनी बालकनी से ये नज़ारा देखता हूँ तो गुस्सा भी आती है लेक़िन ये भी लगता है कि उस टीम को जो ज़िम्मेदारी दी गयी है वो उसको पूरा करते हैं। हाँ अगर वो बाकी आड़ी तिरछी गाड़ियों की पार्किंग भी सुधारवाते तो और अच्छा होता। अग़र वैसे ही हम अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर रखें और उसी पर आगे बढ़ते जायें तो हमारे सफ़ल होने की गुंजाइश और बढ़ जाती है।

इस पूरे प्रकरण का दूसरा पहलू ये है कि किसी भी व्यवस्था को सफल या विफल होने में आम जनता का सहयोग बहुत ज़रूरी होता है। जिस समय ट्रैफिक पुलिस ये मुहिम चला रही होती है तो वाहन चालकों को एक हिदायत देने के लिये वो वाहन नम्बर बताते हैं और उनसे कहते हैं कि वो गाड़ी वहाँ से हटालें। लेकिन एक ड्राइवर महाशय जैसे ही ये मुहिम शुरू होती है तेज़ी से अपनी गाड़ी दूसरी और ले जाते हैं। जब तक अमला वहाँ रहता है वो इंतज़ार करते हैं। उसके बाद गाड़ी वहीं वापस। दोबारा ऐसा होने पर वो फ़िर से ऐसा करते हैं। शायद ट्रैफिक पुलिस की टीम भी ये समझ चुकी है और इसलिए कोई कार्यवाही नहीं होती। मुझे तो इस पूरी मुहिम से सिर्फ़ एक सीख मिलती है – नियम, कायदों का पालन करना। वो चाहे पार्किंग के लिये हो या किसी और काम से संबंधित।

लेकिन हमारा यानी जनता के बर्ताव से सिर्फ यही पता चलता है – हम नहीं सुधरेंगे।

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