अगर आप रेडियो सुनने का शौक़ रखते हैं तो क्या आपने वो देर रात वाले लव गुरु वाले शो सुने हैं? ये अमूमन रात 11 या उसके भी बाद होते हैं और ज़्यादातर इसमें पुरूष RJ रहते हैं। इसमें श्रोता अपने दिल/प्यार से जुड़ी परेशानी रखते हैं।
मैंने आखिरी बार तो नहीं लेकिन जो याद है वो पीटीआई के चेम्बूर गेस्ट हाउस में अपने पुराने फिलिप्स के टू-इन-वन पर देर रात इस शो को सुनना। चूंकि शिफ़्ट देर से ख़त्म होती तो घर पहुंचने में भी समय लगता। मनोरंजन के लिये बचता सिर्फ़ रेडियो। मोबाइल फ़ोन उन दिनों रईसी की निशानी होता। इनकमिंग के लिये भी पैसे देने पड़ते थे।
तो ये रेडियो शो जो नये नये FM चैनल पर शुरू हुये थे, रह देकर यही साथ देते रात में। अच्छा ये जो समस्याएँ हैं दिल वाली इनमें कोई बदलाव नही हुआ है। पहले भी लड़का लड़की को पसंद करता था लेकिन लड़की की सहेली लड़के को पसंद करती थी। लड़के का दोस्त उसकी बहन को बहुत चाहता है लेकिन दोस्ती के चलते बोल नहीं पाता। या क्लासिक प्रॉब्लम वो मुझे सिर्फ अपना अच्छा दोस्त मानती है। हाँ इसमें से कुछ अजीब अजीब से किस्से भी आते।
इन समस्याओं के क़िरदार भर बदलते रहते हैं। बाकी सब वैसा का वैसा। अमीर लडक़ी, ग़रीब लड़का जिसके ऊपर परिवार की ज़िम्मेदारी है। उसके बाद ये सुनने को मिले की आप ये बातें नहीं समझोगे तो सलमान ख़ान का भारत वाला डायलाग बिल्कुल सही लगता है।
जितने सफ़ेद बाल मेरी दाढ़ी में है उससे कहीं ज़्यादा रंगीन मेरी ज़िंदगी रही है
मैं अभी 70 साल से सालों दूर हूँ इसलिये वापस रेडियो के शो पर। दरअसल रेडियो इतना सशक्त माध्यम है और इतनी आसानी से एक बहुत बड़ी जनसंख्या में पास पहुंच सकता है। उससे भी बड़ी ख़ासियत ये की आपकी कल्पना शक्ति को पंख लगा देता है रेडियो। अगर आप कोई गाना सिर्फ सुन सकते हैं तो आप सोचना शुरू कर देते हैं कि इसको ऐसे दिखाया गया होगा। एक अच्छा RJ तो आपको सिर्फ़ अपनी आवाज़ के ज़रिये उस स्थान पर ले जा सकता है जहाँ कुछ घटित हो रहा हो। जैसे एक ज़माने में बीबीसी सुनने पर होता था।
आज रेडियो की याद दिलाई मेरे पुराने सहयोगी अल्ताफ़ शेख ने। हम दोनों ने मिलकर पॉडकास्ट शुरू किया था पुरानी कंपनी में। उसको करने में बड़ा मजा आता। पिछली संस्थान में मेघना वर्मा, आदित्य द्विवेदी और योगेश सोमकुंवर के साथ ये प्रयोग जारी रहे। योगेश को देख कर आपको अंदाजा नहीं होगा की इनके पास दमदार आवाज़ है।
घर में दो रेडियो थे। टेलीक्राफ्ट और कॉस्सिर। दोनों बिल्कुल अलग अलग सेट थे लेकिन बड़े प्यारे थे। सुबह से लग जाते और जब एनाउंसर सभा ख़त्म होने का ऐलान करती तब बंद हो जाते। उन दिनों चौबीस घंटे रेडियो प्रसारण नहीं होता था। दिन को तीन से चार सभाओं में बाँट दिया था।
इस धुन को तो सभी पहचान गए होंगे। अधिकतर सुबह इसी के साथ होती थी।
जहाँ आज के FM सिर्फ़ मनोरंजन का साधन हैं सूचना के नहीं (वो भी सरकार के नियमों के चलते), आल इंडिया रेडियो मनोरंजन के साथ ढ़ेर सारी जानकारी भी देता है। बस हुआ इतना है की हम उस चैनल तक पहुँचते पहुँचते रेडियो बंद ही कर देते हैं। न तो विद्या बालन जैसी अदा के साथ बोलने वाली RJ होंगी न टूटे दिलों को जोड़ने वाले लुवगुरु।
कभी मौका मिले तो लवगुरु वाले शो और आकाशवाणी के शो को सुनें।