दरअसल ये कहना जितना आसान है उसका पालन उतना ही मुश्किल है। हम सबको अपने हिसाब से ढालना चाहते हैं लेकिन हम अपने आप को बदलना नहीं चाहते। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारी अर्धांगिनी यानी पत्नियाँ होती हैं।
भोपाल प्रवास के दौरान परिवार में एक विवाह की स्वर्णजयंती समारोह में सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मतलब साथ रहते हुये पचास साल। बाकी सारे रिश्ते आते जाते रहे जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे। लेकिन ये दो प्राणी साथ में रहे पूरे पचास साल। इस लंबे सफ़र की शुरुआत थोड़ी अजीब सी होती है।
वो ऐसे की एक लंबे समय तक लड़की अपने माता-पिता के घर पर अपने हिसाब से रहती थी। लेकिन एक दिन सब बदल जाता है और एक नये रिश्ते, परिवार के बीच एक शुरुआत होती है। जो काम करने ऑफिस जाते हैं अगर उन्हें बताया जाये कि अगले दिन से ऑफिस नई जगह लगेगा और सब नये सहयोगी होंगे। कपड़े भी नये तरीक़े से पहनने होंगे। ये बदलाव कैसा होगा?
2017 में जिस कंपनी में काम करता था उसने अपना ऑफिस नई जगह शिफ्ट करने का निर्णय लिया। ये काफ़ी समय से चल रहा था। कुछ लोग इससे बहुत खुश थे तो कुछ लोग खासे परेशान थे। अच्छा इसमें आपके पास इस बदलाव को गले लगाने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। ठीक उस दुल्हन की तरह जो किसी दूसरे प्रान्त से आती है और अपने अभी तक के सीखे सभी तौरतरीकों को भुलाकर नये को अपना लेती है।
आज जब भोजन कर रहा था तो श्रीमती जी ने जो सब्जी बनाई थी उसको उन्होंने विवाह पूर्व देखा तक नहीं था। लेकिन उन्होंने बनाना भी सीखा और खाना भी शुरू किया। मैं कितना अपना रंग बिना गवायें उनके रंग में रंगा इसका पता नहीं लेकिन उन्होंने यहां के काफी सारे रंगों को अपना लिया है।
बरसों पहले अभिनेता अजय देवगन का एक इंटरव्यू पढ़ा था जिसमें उन्होंने यही बात कही थी अपनी पत्नी काजोल के बारे में। वो विवाह पूर्व जैसी थीं वैसी ही हैं। उन्होंने एक दूसरे को पसंद ही उनकी इन खूबियों के कारण किया था। तो अब बदलने का मतलब की अब हम उन्हें पसंद नहीं करते।
हम पति-पत्नी के रिश्ते को सफल भी तभी मानते हैं जब हम उन्हें पूरी तरह से बदल लेते हैं। अब चाय का ही उदाहरण ले लें। हम चाय ऐसी पीतें हैं, आप ऐसी बनाना सीख लें। थोड़े समय बाद दोनों एक जैसी चाय पीने लगते हैं। पचास साल बाद साथ में खड़े होते हैं तो क्या दोनों ही ये कहते हैं तुम कितना बदल गये हो?
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