in ब्लॉग

शनिवार की शाम हंसी, कल  छुट्टी इतवार की, सोमवार को सोचेंगे, बातें सोमवार की

आज छुट्टी का दिन और काम की लंबी लिस्ट। लेकिन काम नहीं होने का मतलब अगले हफ्ते तक की छुट्टी। जबसे ये पाँच दिन का हफ़्ता आया है जिंदगी में, एक बड़ी बोरिंग सी ज़िन्दगी लगती है (है नहीं), सिर्फ़ लगती है। पहले जब पीटीआई और हिन्दुस्तान टाइम्स में काम किया था तब हफ़्ते में एक रोज़ छुट्टी मिल जाती थी। जब डिजिटल की दुनिया में प्रवेश किया तो वहाँ पाँच दिन काम होता। पिछले नौ सालों से ये आदत बन गयी है। हालांकि ऐसा कम ही होता जब छुट्टी पूरी तरह छुट्टी हो। समाचार जगत में तो ऐसा कुछ होता नहीं है। जैसे आज ही शीला दीक्षित जी का निधन हो गया। ऐसे बहुत से मौके आये हैं जब ये सप्ताहांत में ही बड़ी घटनायें घटी हैं। मतलब कोई घटना सप्ताह के दिन या समय देख कर तो नहीं होती। जैसे पीटीआई में एक मेरे सहयोगी थे। उनकी जब नाईट शिफ़्ट लगती तब कहीं न कहीं ट्रैन दुर्घटना होती। बाकी लोग अपनी शिफ़्ट रूटीन के काम करते उन्हें इसके अपडेट पर ध्यान रखना पड़ता।

विषय पर वापस आते हैं। वीकेंड पर पढ़ने और टीवी देखने का काम ज़रूर होता। अख़बार इक्कट्ठा करके रख लेते पढ़ने के लिये। हाई कमांड की इसी पर नज़र रहती है की कब ये पेपर की गठरी अपने नियत स्थान पर पहुँचायी जाये। काउच पटेटो शब्द शायद मेरे लिये ही बना था। जिन्होंने रूबरू देखा है वो इससे सहमत भी होंगे। मुझे टीवी देखने का बहुत शौक़ है और शुरू से रहा। जब नया नया ज़ी टीवी शुरू हुआ था तब उसके कार्यक्रम भी अच्छे होते थे। उसके पहले दूरदर्शन पर बहुत अच्छे सीरियल दिखाये जाते थे। लेकिन वो सास-बहू वाले सीरियल नहीं पसंद आते। हाँ सीरियल देखता हूँ लेकिन जिनकी कहानी थोड़ी अलग हो। जब नया नया स्टार टीवी आया था, जब उसके प्रोग्राम सिर्फ़ अंग्रेज़ी में होते थे, तब बोल्ड एंड द ब्यूटीफुल भी देखा।

अभी तक गेम ऑफ थ्रोन्स नहीं देख पाया। उसके शुरू के कुछ सीजन लैपटॉप में रखे हैं जो मनीष मिश्रा जी ने दिये थे लेक़िन थोड़ी देर देखने के बाद बात कुछ बनी नहीं तो आगे बढ़े नहीं। देवार्चित वर्मा ने तो इसको नहीं देखने के लिये बहुत कुछ बोला भी लेक़िन आज भी मामला पहले एपिसोड से आगे नहीं बढ़ पाया। उन्होंने मुझे और नीरज को इस शो को नहीं देखने को अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया है। शनिवार, इतवार थोड़ा बहुत टीवी ज़रूर देखा जाता है। लेकिन चूंकि लोकतंत्र है तो रिमोट \’सरकार\’ के पास रहता है। सरकार से मतलब श्रीमतीजी और बच्चों के पास। उसमें भी बच्चों के पास ज़्यादा क्योंकि उनकी नज़रों में बादशाह, अरमान मलिक, सनम जैसे कलाकार ही असली हैं।

इन दिनों मैं बिटिया के साथ सोनी टीवी का पुराना सीरियल माही वे देख रहे हैं। वैसे सोनी ऐसे अलग, हट के सीरियल के मामले में बहुत आगे है। पाउडर भी बहुत ही ज़बरदस्त सीरियल था। ये दोनों नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध हैं। मौका मिले तो ज़रूर देखें। जो नई वेब सीरीज बन रही हैं हमारे यहाँ उनमें एडल्ट सीन में कहानी होती है और बाकी भाषाओं में कहानी में एडल्ट सीन होते हैं। इसलिये कई अच्छी सीरीज़ देखने के लिये समय निकालना पड़ता है।

सोनी पर इन दिनों दो और सीरियल चल रहे हैं – पटियाला बेब्स और लेडीज़ स्पेशल। दोनों की कहानी आम सीरियल से अलग हैं और इसलिये जब देखने को मिल जाये तो कहानी अच्छी लगती है। पटियाला… एक तलाक़शुदा औरत और उसकी बेटी के समाज में अपना स्थान बनाने की लड़ाई को लेकर हैं। दोनों सीरियल ने कई जगह कहानी या कॉमन सेंस को लेकर समझौता किया है। लेकिन कुछ बहुत अच्छे सवाल भी उठाए हैं – विशेषकर पटियाला…। श्रीमतीजी का ये मानना है कि दोनों सीरियल में शायद रोमांस का तड़का है इसलिये मैं बड़े चाव से देखता हूँ। वो बहुत ज़्यादा गलत नहीं हैं वैसे।

काम भी ऐसा है की सबकी ख़बर रखनी पड़ती है। तो सीरियल में क्या हो रहा है इसका पता रखते हैं। आपके पास अगर कोई सीरीज़ देखने का सुझाव हो तो नीचे कमेंट में बतायें। आपका वीकेंड आनंदमय हो।

Write a Comment

Comment