1988 में आई फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक की नायिका जूही चावला मुझे बेहद पसंद आयीं। इसका श्रेय फ़िल्म में उनके क़िरदार, उनके बोलने का ढंग या उनका एक आम लड़की की तरह ओढ़ना पहनना -इन सबको जाता है। उसके बाद भी उनकी काफी फिल्में देखीं लेक़िन ऐसी कोई फ़िल्म जिसमें लगता उनके रोल के साथ न्याय नहीं किया होगा, मैं नहीं देखता। मतलब फैन तो हैं लेकिन अपनी शर्तों पर।
उनकी एक फ़िल्म आयी थी राधा का संगम। जब ये फ़िल्म बन रही तो ऐसा बताया जा रहा था की ये दूसरी मदर इंडिया या मुग़ल-ए-आज़म होगी। फ़िल्म को बनने में समय भी लगा और लता मंगेशकर जी और अनुराधा पौड़वाल की लड़ाई भी हुई गानों को लेकर। चूंकि संगीत टी-सीरीज़ पर था तो निर्माता के पास सिवाय इसके की अनुराधा पौड़वाल से भी गाने गवायें, कोई दूसरा विकल्प नहीं था। फ़िल्म का संगीत अच्छा है। अन्नू मलिक की कुछ फिल्मों में से जहां वो किसी से प्रेरित नहीं हैं। मौके मिले तो नीचे ज्यूक बॉक्स की लिंक पर सुनें।
जब फ़िल्म रिलीज़ हुई तो अंदर का जूही फैन जाग उठा। आजकल के जैसे उन दिनों फिल्मों के रिव्यु इतनी पहले नहीं आते थे और अगर आते भी तो सिर्फ़ अख़बार में छपते। बहरहाल फ़िल्म देखने घर के नज़दीक सिनेमाघर पहुँच गये। जो मुझे छोड़ने गये थे वो पूछने लगे की बाकी कौन आ रहा है। झूठमूठ बोल दिया एक दो दोस्त और आयेंगे। लेकिन कोई आने वाला नहीं था। कौन अपने पैसे ऐसी फिल्म पर खर्च करेगा। मुझे ये फ़िल्म अकेले ही देखनी थी। टिकट खिड़की भी लगभग खाली ही थी। लेक़िन हमने हिम्मत दिखाई और फ़िल्म देखी। उसके बाद किस हाल में घर पहुंचे ये नहीं पता लेकिन सही सलामत पहुंच गये।
जिस हॉल में मैंने ये हिम्मत दिखाई थी, ये वही हॉल है जहाँ मेरे छोटे भाईसाहब ने मुझे ज़ोर का झटका दिया था। जी हाँ ये वही किस्सा है जिसका ज़िक्र पहले हुआ है। राधा का संगम आयी थी 1992 में और एक साल बाद आयी थी यश चोपड़ा की डर। इस फ़िल्म से बड़ी उम्मीदें थीं। फ़िल्म का ट्रेलर कमाल का था। गाने जितने देखे सुने थे सब बढ़िया। बस गुरुवार को पहले शो के लिये पहुँच गये सिनेमाघर भाई के साथ। लेकिन वहाँ ज़बरदस्त भीड़। जूही चावला के फैन को बड़ी खुशी हुई लेकिन पहले शो के टिकट मिलना नामुमकिन था। बुझे दिल से घर वापस आने का मन बनाया तो देखा भाई ग़ायब। ढूंढने पर भी नहीं मिला। बाद में पता चला की पुलिस के लाठीचार्ज के बाद मची अफरातफरी में वो हॉल के अंदर पहुँच गये और फ़िल्म का आनंद लेने के बाद घर लौटे। जब भी इस फ़िल्म का ज़िक्र आता है तो अब पहले जूही चावला नहीं छोटे भाई की हँसी याद आती जो उनके चेहरे पर थी उस दिन फ़िल्म देखने के बाद। मुझ से पहले फ़िल्म देखने के बाद। मैंने सपरिवार उसी रात फ़िल्म देखी लेकिन…
https://youtu.be/vMZTAVzg6qk