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समस्या हैं तो हल निश्चित रूप से होगा

पिछले दिनों जब सोनाक्षी सिन्हा और सिद्धार्थ मल्होत्रा की इत्तेफ़ाक़ रिलीज़ होने वाली थी तब शाहरुख खान और करन जौहर ने वीडियो पर ये अपील करी थी दर्शकों से की वो फ़िल्म का सस्पेंस नहीं बताएं। बात सही भी है। अगर सस्पेंस ही खत्म हो जाये तो फ़िल्म देखने का सारा मज़ा ही किरकिरा हो जाता है।

ठीक वैसे ही जैसे हमें अपने जीवन के सस्पेंस पता चल जाये तो क्या मज़ा आयेगा। कुछ भी हो अच्छा या बुरा, सही या गलत उसके होने का अपना एक अलग ही स्थान होता है अपने अनुभव की लिस्ट में।

खैर इत्तेफ़ाक़ की अपील से मुझे पिताजी द्वारा सुनाया गया एक किस्सा याद आया। वो भी उनके समय की बेहतरीन सस्पेंस फ़िल्म वो कौन थी से जुड़ा हुआ है। आज के व्हाट्सएप उस समय तो थे नहीं तो सस्पेंस कैसे बताया जाए? कॉलेज का नोटिस बोर्ड जो हम कभी कभार ही देखा करते हैं उसकी मदद ली गयी और किसी शख़्स ने वहां एक कागज लगा दिया जिसपर सिर्फ इतना लिखा था – भाईयों खूनी रमेश था। अब आप जाइये और वो कौन थी के गानों का आनंद लीजिये क्योंकि बाकी कहानी और उसके अंत में आपको अब कोई रुचि नहीं रहेगी।

कॉलेज के नोटिस बोर्ड से संबंधित एक घटना मेरे साथ भी हो गयी। MA प्रीवियस के इम्तिहान थे। साथ में नौकरी भी कर रहे थे। दूसरे पेपर के दिन तैयार होकर कॉलेज पहुँचे और अपना रूम तलाशने लगे जहां बैठकर पेपर लिखना था। लेकिन बोर्ड पर इस पेपर का कोई जिक्र ही नहीं। ऐसी कोई खबर भी नहीं थी कि पेपर आगे बढ़ गया हो।

किसी प्रोफेसर से पूछा तो पता चला पेपर तो दो दिन पहले ही हो चुका है। अब क्या करें? पिताजी की डाँट से बचने का कोई उपाय ही नहीं था। घर पहुँचे तो वहां पहले से ही किसी बात को लेकर हंगामा मचा हुआ था। मुझे एक घंटे में वापस देख सभी अचरज में थे। मेरे पुराने पढ़ाई के रिकॉर्ड से सभी वाकिफ भी थे। जैसे तैसे हिम्मत कर बता दिया कि आज होने वाला पेपर तो हो चुका है। उसके बाद अच्छा सा एक डोज़ मिला। समस्या का हल ढूंढा गया और मेरे अख़बार के सहयोगी की मदद से इसको सुलझाया गया।

एक गुरु मंत्र और मिल गया: समस्या हैं तो हल निश्चित रूप से होगा। बस थोड़े धैर्य के साथ ढूँढे। मिलेगा ज़रूर।

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