लोग आपकी क्या क्या बातें याद रखते हैं इसका आपको अंदाज़ा भी नहीं होगा। कल से पहले मुझे भी नहीं था। मैं अपने स्कूल के एक पुराने मित्र से बात कर रहा था। ये हमारी पिछले 25 सालों में, मतलब स्कूल छोड़ने के बाद, पहली बातचीत थी।
दोनों एक दूसरे की अभी तक के सफर के बारे में बात कर चुके थे लेकिन भाईसाहब को मेरी शक्ल याद ही नहीं आ रही थी। जब मैं किसी से मिलता हूँ तो मेरे साथ अक्सर ये परेशानी होती है लेकिन इनके साथ नहीं थी। मुझे इनकी शक्ल और इनके कारनामे सभी याद थे। बात करते करते उन्होंने बोला यार इस नाम के एक लड़के की याद है और फ़िर उन्होंने मेरे बारे में बताना शुरू किया। इस नाम का लड़का जोकि खाते पीते घर का दिखता था और उसके बाल कुछ इस तरह के होते थे। लेकिन जो बात उन्हें बिल्कुल साफ साफ याद थी वो ये की लंच ब्रेक में मैं किस तरीके से अपना टिफिन पकड़ कर खाता था। शायद ये भी मेरे खाते पीते शरीर के पीछे का राज़ था।
जब वो ये बता रहे तो मैं ये सोच रहा था अच्छा हुआ उन्हें ये याद नहीं रहा की मैं कितना खाता था। लेकिन सोचिये याद रहा भी तो क्या। हमें अक्सर लोगों की क्या बातें याद रह जाती हैं? उनके हावभाव, बोलने का तरीका, खाने पीने का तरीका या चलने का तरीका। लेकिन टिफिन पकड़ने का तरीका? मैं सही में वक़्त में वापस जाकर देखना चाहता हूँ की उसमें ऐसा क्या अनोखा था? क्या इन्होंने कभी मेरा टिफिन खाने की इच्छा व्यक्त करी हो और मैंने उन्हें नहीं खाने दिया हो। अब पच्चीस साल बाद सिर्फ़ कयास ही लगा सकते हैं।
जब से लिखना शुरू किया है इन यादों के ख़ज़ाने से ही कुछ न कुछ ढूंढता रहता हूँ। लेकिन किसी के टिफ़िन पकड़ने के अंदाज़ को याद नहीं रखा। लोगों की कंजूसी और दरियादिली याद है और उनका किसी बात पर नाराज़ होना भी। जैसे हमारे एक पड़ोसी हुआ करते थे। उनका हँसने का अंदाज़ एकदम जुदा और इसके चलते हम उनकी न हँसने वालीं बातों पर भी हँस दिया करते थे। लेकिन मुझे उनके या उनके बच्चों का टिफ़िन पकड़ने का अंदाज़ याद नहीं आ रहा।
कुछ ऐसी ही यादों के पुलिंदे खुल गये पिछले गुरुवार की रात जब ख़बर आयी की हमारी एक करीबी रिश्तेदार की अचानक मृत्यु हो गयी है। पहले तो जब ये संदेश पढ़ा तो विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि उनके स्वास्थ्य को लेकर ऐसा कुछ मालूम ही नहीं था। सब कुछ अचानक में हो गया और रह गईं सिर्फ़ यादें। मैं उनके विवाह में भी सम्मिलित हुआ था और जब कुछ समय वो मुम्बई में थीं तब भी उनके यहाँ आना जाना था। कुछ महीनों पहले भोपाल प्रवास के दौरान उनसे मिलना हुआ था। बहुत ही मिलनसार और चेहरे पर हमेशा एक मुस्कुराहट याद रहेगी और याद रहेगा उनकी रसोई से निकलने वाले हर पकवान का स्वाद।
तो आप भी हमेशा हँसते मुस्कुराते मिला करें, ताकि आपकी यादें भी मुस्कुराती हुई ही मिलें। मैं फिलहाल किसी तरह टिफ़िन पकड़ने की याद को किसी और बेहतर व्यवहार से बदलने की कोशिश करता हूँ।