गुलज़ार साहब का गीत आनेवाला पल जानेवाला है देखने से पहले सुना था। जी आपने बिल्कुल सही पढ़ा है। उस समय गाने सुने ज़्यादा जाते थे और देखने को मिल गये तो आपकी किस्मत। गाना है भी बड़ा फिलासफी से भरा हुआ। उसपर किशोर कुमार की आवाज़ और आर डी बर्मन का संगीत।
फरवरी के अंतिम सप्ताह में श्रीमती जी से चाय पर चर्चा हो रही थी की कितनी जल्दी 2020 के दो महीने निकल गये। बच्चों की परीक्षा शुरू हो गयी और उसके बाद समय का ध्यान बच्चों ने रखा। लेकिन होली आते आते कहानी में ट्विस्ट और ट्विस्ट भी ऐसा जो न देखा, न सुना।
पिछले लगभग दो हफ्तों में दो बार ही घर से बाहर निकलना हुआ। अब घर के अंदर दो हफ़्ते और क़ैद रहेंगे। इतनी ज़्यादा उथलपुथल मची हुई है की लगता है जब ये सब ख़त्म हो जायेगा तो छोटे छोटे सुख का फ़िर से अनुभव करूँगा। जैसे पार्क में सैर करने जाना, किसी से बात करना, किसी चाय की दुकान पर बैठकर चाय पीना और अपने आसपास लोगों को देखना।
सोशल मीडिया के चलते सूचना की कोई कमी नहीं है बल्कि ओवरडोज़ है। लेकिन इन सब में एक बात समान है – सब उम्मीद से भरे हैं की ये समय भी निकल जायेगा। सब एक दूसरे से जुड़े हुये हैं और एक दूसरे को हिम्मत भी दे रहे हैं। मैंने इससे पहले ऐसी कोई घटना अगर देखी थी तो वो भोपाल गैस त्रासदी के समय थी। उस समय ये नहीं मालूम था हुआ क्या है बस इतना मालूम था लोगों को साँस लेने में तक़लीफ़ थी। उसके बाद कुछ दिनों के लिये शहर बंद हो गया था और हम सब भी ज़्यादातर समय घर के अंदर ही बिताते। कपड़े में रुई भरकर एक गेंद बना ली थी और इंडोर क्रिकेट खेला जाता था।
टीवी उस समय नया नया ही आया था लेक़िन कार्यक्रम कुछ खास नहीं होते थे। दिनभर वाला मामला भी नहीं था। दूरदर्शन पर तीन चार शिफ़्ट में प्रोग्राम आया करते थे। आज के जैसे नहीं जब टीवी खोला तब कुछ न कुछ आता रहता है। अगर कुछ नहीं देखने लायक हो तो वेब सीरीज़ की भरमार है। आपमें कितनी इच्छा शक्ति है सब उसपर निर्भर करता है।
लेकिन गाने सुनने का कोई सानी नहीं है। आप अपना काम करते रहिये और गाने सुनते रहिये। आज जब ये गाना सुना तो इसके मायने ही बदल गये। आनेवाले महीनों में क्या होने वाला है इसकी कोई ख़बर नहीं है। लेक़िन ज़रूरी है आज के ये लम्हे को भरपूर जिया जाये। ऐसे ही हर रोज़ किया जाये। जब पीछे मुड़कर देखेंगे तो वहाँ दास्ताँ मिलेगी, लम्हा कहीं नहीं।
https://youtu.be/AFRAFHtU-PE