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सुन खनखनाती है ज़िन्दगी, देख हमें बुलाती है ज़िन्दगी

भोपाल में मेरे एक मित्र हैं राहुल जोशी। इनसे मुलाक़ात मेरी कॉलेज के दौरान मेरे बने दोस्त विजय नारायन के ज़रिये हुई थी। राहुल घर के पास है रहते हैं तो उनसे मुलाक़ात के सिलसिले बढ़ने लगे और मैंने उनको बेहतर जाना।

जोशी जी की एक ख़ास बात है की कोई भी सिचुएशन हो वो उसमें आपके चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। परेशानी की बात हो, दुख का माहौल हो – अगर राहुल आसपास हैं तो वो माहौल को हल्का करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ज़िंदगी में जो भी घटित हो रहा हो उसको वो एक अलग अंदाज़ से देखते हैं। मेरे घर में आज भी उनके एक्सपर्ट कमेंट को याद किया जाता है।

राहुल के दादाजी का जब निधन हुआ तो मैं उनसे मिलने गया था। राहुल उनके बहुत करीब भी थे और जब वो लौट के आये तो मुलाक़ात हुई। राहुल बोले जब आप किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होते हैं तो चंद पलों के लिये ही सही, आपको एहसास होता है अभी तक आप जिन भी चीजों को महत्व देते हैं वो सब पीछे छूट जायेगा। ज़िन्दगी की असली सच्चाई दिख जाती है। लेकिन क्रियाकर्म खत्म कर जैसे जैसे आपके क़दम बाहर की और चलते हैं वैसे वैसे आप वापस इस दुनिया में लौटते हैं। सबसे पहले तो सिगरेट सुलगाते हैं इस बात को और गहराई से समझने के लिये और चंद मिनटों में सब वापस।

आज राहुल और उनके साथ कि ये बातचीत इसलिये ध्यान आयी क्योंकि जिस समस्या से हम जूझ रहे हैं जब ये खत्म हो जायेगा तो क्या हम वही होंगे जो इससे पहले थे या कुछ बदले हुये होंगे? क्या हम महीने भर बाद भी अपने आसपास, लोगों को उसी नज़र से देखेंगे या हमारे अंदर चीजों के प्रति लगाव कम हो जायेगा। शायद आपको ये सब बेमानी लग रहा हो लेक़िन अगर एक महीने हम सब मौत के डर से अंदर बैठे हों और इसके बाद भी सब वैसा ही चलता रहेगा तो कहीं न कहीं हमसे ग़लती हो रही है।

लगभग सभी लोगों ने अपनी एक लिस्ट बना रखी है की जब उन्हें इस क़ैद से आज़ादी मिलेगी तो वो क्या करेंगे। किसी ने खानेपीने की, किसी ने शॉपिंग तो किसी ने पार्टी की तो किसी ने घूमने का प्रोग्राम बनाया है। बस सब थोड़े थोड़े अच्छे इंसान भी बन जायें और अपने दिलों में लोगों के लिये थोड़ी और जगह रखें – इसे भी अपनी लिस्ट में रखें।

https://youtu.be/X_q9IXvt3ro

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