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आज फ़िर दिल ने एक तमन्ना की, आज फ़िर दिल को हमने समझाया

अभी पिछले दिनों टुकड़ों में फ़िर से क़यामत से क़यामत तक देखना शुरू किया है। ये फ़िल्म बहुत से कारणों से दिल के बहुत करीब है। लेकिन ये पोस्ट उस बारे में नहीं हैं।

फ़िल्म में जूही चावला का एक डायलॉग है जो की ग़ज़ब का है दिन गाने के ठीक बाद है। आमिर खान जहाँ जंगल से बाहर निकलने पर बेहद खुश हैं वहीं जूही चावला थोड़ा दुखी हैं। जूही कहती हैं जब वो माउंट आबू आयीं थीं तो उन्हें नहीं पता था उनकी मुलाक़ात आमिर से होगी और उनकी दुनिया ही बदल जायेगी। ये फ़िल्म का आप कह सकते हैं टर्निंग प्वाइंट है जब दोनों क़िरदार अपने प्यार का इज़हार करते हैं और कहानी आगे बढ़ती है।

बिल्कुल वैसे ही हमारी दुनिया बदल जाती है जब हम कोई किताब उठाते हैं। उससे पहले हमें उसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता। लेकिन जैसे आप पन्ने पलटते जाते हैं आप एक नई दुनिया में खोते जाते हैं। और ये शब्दों के जादूगर ही हैं जो अपने इस जाल में फँसा कर उस क़िरदार को हमारे सामने ला खड़ा करते हैं।

पढ़ने के शौक़ के बारे में पहले भी कई बार लिखा है। लेकिन आज विश्व पुस्तक दिवस पर एक बार और किताबों की दुनिया। जैसा अमूमन किसी दिवस पर होता है, लोगों ने अपनी पाँच पसंदीदा किताबें लिखी। वो लिस्ट बड़ी रोचक लगती है क्योंकि वो आपको उस इंसान के बारे में थोड़ा बहुत बता ही जाती है। लेक़िन मैं अपनी ऐसी कोई लिस्ट नहीं बताने वाला हूँ।

आप किताबें कैसे पढ़ना पसंद करते हैं? मतलब हार्डकॉपी, ईबुक या अब जो चल रहीं है – ऑडियो बुक। मैंने ये तीनों ही फॉरमेट में किताबें पढ़ी/सुनी हैं और पहला तरीका अब भी सबसे पसंदीदा है। तीनों के अपने फ़ायदे नुकसान हैं। नुकसान का इस्तेमाल शायद यहाँ ग़लत है। जैसे हार्डकॉपी लेकर चलना आसान नहीं है अगर आप दो-तीन किताबें साथ लेकर चलते हैं तो। अगर वो दुबली पतली हैं तो कोई कष्ट नहीं लेक़िन अगर वो खाते पीते घर की हों तो थोड़ी समस्या हो सकती है।

ऐसे समय ईबुक सबसे अच्छी लगती है। अगर आप किंडल का इस्तेमाल करते हों तो आप अपनी पूरी लाइब्रेरी लेकर दुनिया घूम सकते हैं। और सबसे मजेदार बात ये की आप अपनी लाइब्रेरी में किताबें जोड़ सकते हैं बिना अपना बोझा बढ़ाये।

जो सबसे आख़िरी तरीका है उससे थोड़ी उलझन होती है। मुझे तो हुई थी शुरुआत में। क्योंकि किताब को सुनना एक बिल्कुल अलग अनुभव है। ठीक वैसे ही जैसे मैंने क़यामत से क़यामत तक को देखा नहीं लेक़िन सिर्फ़ सुना। अब अग़र फ़िल्म देखने के लिये बनी है तो क़िताब पढ़ने के लिये। इसलिये सुनना थोड़ा अजीब सा लगता है।

दूसरी बात जो ईबुक या ऑडियो बुक में खलती है वो है निशान लगाना जो आपको अच्छा लगा या आपको कुछ समझना है। ईबुक में ये सुविधा ज़रूर है लेक़िन शायद आदत पड़ी हुई है तो इसलिये वो पुराना तरीका अच्छा लगता है।

और क़िताब पढ़ते समय साथ में अगर एक गर्म चाय की प्याली हो तो क्या कहने। एक हाँथ से किताब संभालते हुये और दूसरे हाँथ से चाय का मग। मुझे अक्सर साथ में एक रुमाल की भी ज़रूरत पड़ जाती है क्योंकि मैं कहानी में इतना खो जाता हूँ की पढ़ते हुए आँसू निकल आते हैं। इसका अभी हिसाब नहीं है की क्या ये तीनों फॉरमेट के साथ होता है या सिर्फ़ पहले वाले के साथ।

2020 की बदौलत मुझे लगता है एक लंबा समय जायेगा जब मैं या और क़िताब प्रेमी भी हार्डकॉपी को हाँथ लगायेंगे। इसलिये अग़र अब किताब पढ़ना होगा तो सिर्फ़ ईबुक या ऑडियो बुक ही चुनी जायेगी।

लेक़िन हमेशा ऐसा लगता है अगर क़िताब को, उसके पन्नों को छूने का मौका न मिले और पन्नों से आती खुशबू न मिले तक पढ़ने जैसा लगता ही नहीं।

क्या ये साल के बदलावों की लंबी लिस्ट में किताबें भी शामिल हो गयी हैं?

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