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हर साँस में कहानी है, हर साँस में अफ़साना है

हर शहर की अपनी खासियत होती है। मुम्बई में इसकी भरमार है। आज भले ही मुम्बई अलग कारणों से समाचार में छाया हुआ है, लेक़िन इस मायानगरी में कई सारी खूबियां भी हैं और जो भी यहाँ आया है या तो मुम्बई उसके दिल में बस गयी है या ये शहर उसको रास नहीं आया।

जब मैं पहली बार 1996 में आया था तब मुझे शहर के बारे में ज़्यादा पता नहीं चला क्योंकि मैं एक परीक्षा देने आया था और ज़्यादा घूमना नहीं हो पाया। लेक़िन जब पीटीआई दिल्ली से यहाँ भेजा गया तो इसको जानने का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है।

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के

इसी क्रम में मेरा परिचय हुआ फुटपाथ लाइब्रेरी से। हमारा ऑफिस फ़्लोरा फाउंटेन में था और नज़दीक ही कम से कम तीन ऐसी लाइब्रेरी थीं। मुझे पहले इसकी उपयोगिता समझ में नहीं आयी। लेकिन लोकल ट्रैन से सफ़र करने के बाद समझ में आ गया। मात्र 10 रुपये में कोई भी किताब आपको एक महीने के लिये मिलती है। एक महीने का समय काफ़ी होता है। ऑफिस में कई और लोगों ने भी इस लाइब्रेरी को जॉइन किया था तो आपस में किताबों की अदला बदली भी होती। मैंने इस लाइब्रेरी से बहुत सी किताबें पढ़ी।

भोपाल में ऐसी लाइब्रेरी से परिचय हुआ था जब दादाजी के साथ पास के मार्किट जाते थे। वो वहाँ से अपनी कोई किताब लेते और हमें टॉफी खाने को मिलती। बाद में लाइब्रेरी जो भी मिली वो बड़ी ही व्यवस्थित हुआ करती थीं। ब्रिटिश कॉउंसिल लाइब्रेरी में जाने का अलग ही आनंद था। पूरी लाइब्रेरी एयर कंडिशन्ड और अच्छी बैठने की सुविधा भी।

ज़िन्दगी फ़िर भी यहाँ खूबसूरत है

आज मुझे मुम्बई की फुटपाथ वाली लाइब्रेरी की याद राजेश जी की फ़ोटो देख कर आई। राजेश मुम्बई के अंधेरी, मरोल इलाके में अपनी ये लाइब्रेरी चलाते हैं। मुंबई में रहने वाले और लोकल से सफ़र करने वाले ज़्यादातर लोगों ने कभी न कभी राजेश जी की जैसी लाइब्रेरी का आनंद लिया होगा। ये मोबाइल के पहले की बात है। अब तो सब मोबाइल हाथ में लिये वीडियो देखते।ही नज़र आते हैं।

राजेश जी ये लाइब्रेरी चलाने के लिये तो बधाई के पात्र हैं ही, उनका ज़िन्दगी के प्रति नज़रिया भी बहुत ही सुंदर है। आज जब सब अपने ही बारे में सोचते रहते हैं, तो राजेश जी की बातें सुनकर लगता है हमें अभी और बहुत कुछ सीखना बाकी है।

जब उनसे पूछा गया वो कितना कमा लेते हैं तो राजेश ने कहा, \”लोग पैसा कमाते हैं ताकि वो उस पर ख़र्च कर सकें जो उनकी खरीदने की इच्छा है।\” किताबों की तरफ़ इशारा करते हुये उन्होंने कहा, \”मुझे जो चाहिये था मैं उससे घिरा हुआ हूँ।\”

लॉक डाउन के दौरान ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले जब लोगों ने सामान होने के बाद भी जमाखोरी करी। ऐसे में बैटर इंडिया वेबसाइट ने जब उनकी कोई मदद करने की पेशकश हुई तो राजेश ने कहा, \”बड़ी संख्या में मज़दूर मर रहे हैं। उनकी मदद करिये। मेरा पास खाने को है और मैं घर पर आराम से हूँ।\”

फ़ोटो: द बैटर इंडिया

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