दिल्ली का छूटना कई मायनों में बहुत दुखद रहा लेकिन मैं इस बात को लेकर ही खुश हो लेता हूँ कि मैंने लिखना शुरू किया। वो भी हिंदी में।
मेरा पूरा पत्रकारिता का करियर अंग्रेज़ी को समर्पित रहा है। जब भी कभी लिखने का प्रयास किया तो अंग्रेज़ी में ही किया। उसपर ये बहाना बनाना भी सीख लिया कि मेरे विचार भी अंग्रेज़ी में ही आते हैं और इसलिए उनको हिंदी में लिखना थोड़ा मुश्किल होता है।
अपने इस दकियानूसी तर्क पर कभी ज़्यादा सोचा नहीं क्यूंकि अंग्रेज़ी में ही लिखते रहे। लेकिन जब हिंदी में लिखना शुरू किया तब लगा कि मैं अपने को इस भाषा में ज़्यादा अच्छे से व्यक्त कर सकता हूँ। अटकता अभी भी हूँ और पहला शब्द दिमाग़ में अंग्रेज़ी का ही आता है। लेकिन शरीर के ऊपरी हिस्से में मौजूद चीज़ को कष्ट देते हैं तो कुछ हल मिल ही जाता है।
टीम के एक सदस्य जो भोपाल से ही आते थे, उनको अंग्रेज़ी का भूत सवार था। उनका ये मानना है कि अंग्रेज़ी जानने वालों को ही ज़्यादा तवज्जों मिलती है। हमारे देश के अधिकारीगण भी उन्हीं लोगों की सुनवाई करते हैं जो इस का ज्ञान रखते हों। मैं इससे बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखता लेकिन उनको इसका विश्वास दिला नहीं पाया।
अच्छा मेरी भी अंग्रेज़ी जिसका मुझे अच्छे होने का गुमान है, लेकिन असल में है नहीं, वो भी बहुत ख़राब थी। उसको सुधारने का और मुझे इस लायक बनाने का मैं ठीक ठाक लिख सकूँ, पूरा श्रेय जाता है तनवानी सर को। उन्होंने बहुत धैर्य के साथ मुझे इस भाषा के दावपेंच समझाये। बात फिर वहीं पर वापस। आपके शिक्षक कैसे हैं। अच्छा पढ़ाने वाले मिल जायें तो पढ़ने वाले अच्छे हो ही जाते हैं।
मैंने पहले भी इसका जिक्र किया है और आज फ़िर कर रहा हूँ। घर में पढ़ने लिखने की भरपूर सामग्री थी और इसका कैसा इस्तेमाल हो वो व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। अख़बार पढ़ने की आदत धीरे धीरे बनी। शुरुआत में सब बक़वास लगता। फिर रुचि बढ़ने लगी। उनदिनों नईदुनिया के लिये मेहरुनिस्सा परवेज़ साहिबा लिखती थीं और मुझे उनके कॉलम पढ़ने में काफी आनन्द आता। उनसे तो नहीं लेकिन उनके आईएएस पति से कई बार मिलना हुआ। कई बार सोचा कि एक बार उनके बारे में भी पूछलूँ लेकिन संकोच कर गया।
इंटरव्यू के लिये कई बार ऐसे ऐसे नमूने मिले जो सपना पत्रकार बनने का रखते हैं लेकिन अख़बार पढ़ने से तौबा है। लेकिन दिल्ली में कई पढ़ने के शौक़ीन युवा साथी मिले। इनसे मिल के इसलिये अच्छा लगता है क्योंकि वो मुझसे कुछ ज़्यादा जानते हैं। जैसे आदित्य काफी शायरों को पढ़ चुके हैं और मैं उनसे पूछ लेता हूँ इनदिनों कौन अच्छा लिख रहा है। इतनी बडी इंटरनेट क्रांति के बावज़ूद बहुत से लेखकों से हमारा परिचय नहीं हो पाता। जो चल गया बस उसके पीछे सब चल देते हैं। इसके लिये हम सब को ये प्रयास करना चाहिये कि अगर कुछ अच्छा पढ़ने को मिले तो उसको अपने जान पहचान वालों के साथ साझा करें। तो अब आप कमेंट कर बतायें अपनी प्रिय तीन किताबें, उनके लेखक और क्या खास है उसमें।
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[…] चलिये नया कुछ करते हैं कि श्रेणी में आज अपना फ़ोन उठाइये और किन्ही तीन लोगों को फ़ोन लगायें। कोई पुराने मिलने वाले पारिवारिक मित्र, कोई पुराना दोस्त या रिश्तेदार। शर्त ये की आपका उनसे पिछले तीन महीनों में किसी भी तरह से कोई संपर्क नहीं हुआ हो। जैसा कि उस विज्ञापन में कहते हैं, बात करने से बात बनती है तो बस बात करिये और रिश्तों पर पड़ी धूल को साफ करिये। सिर्फ अपनी कार ही नहीं अपने रिश्तों को भी चमकाते रहिए। बस थोडा समय दीजिये। […]