कोरोना से सीख: स्थिति कैसी भी हो, सोच सकारात्मक रखें
सकारात्मक सोच पर ही बात आगे बढ़ाते हैं क्योंकि इस पर मुझे बहुत मदद मिली और वो भी बिल्कुल अनचाहे (लेक़िन बहुत ही कीमती ज्ञान)। पहली किश्त में मैंने भोजन वाली बात औऱ मेरे साथ वार्ड शेयर करने वाले एक वरिष्ठ नागरिक की सीख के बारे में बताया था, इस बार बिल्कुल उल्टा हुआ। एक वरिष्ठ नागरिक को उनके पुत्र सीख दे रहे थे।
ICU में मेरे बगल के बेड पर जो सज्जन भर्ती थे उनकी तबियत थोड़ी ऊपर नीचे चल रही थी। कभी तो सब ठीक रहता औऱ कभी थोड़ी चिंता की हालत रहती। रोज़ शाम को जब मिलने का समय रहता तो उनके पुत्र मिलने आते और उनसे बात करते। वो उन्हें बार बार समझाते और उन सज्जन के साथ मैं भी चुपचाप उनके पुत्र की हौसला बढ़ाने वाली बातें सुनता। इन सभी बातों का निश्चित रूप से मुझे भी लाभ हुआ क्योंकि मोबाइल बहुत सीमित समय के लिये इस्तेमाल कर पाता औऱ मिलने जुलने वाला कोई आना नहीं था (घर पर भी कोविड के मरीज़ थे)। तो अंकल जी के बाद शायद मुझे उनके पुत्रों का इंतज़ार रहता।
आपके आसपास ICU में मरीज़ रहते हों औऱ कुछ न कुछ चलता रहता हो तो ये सकारात्मक बातें बहुत बड़ा टॉनिक हो जाती हैं। ICU के बाहर अपने रोज़ मर्रा के जीवन में भी ऐसे परिवारजन, रिश्तेदार और दोस्त हों तो आपके लिये बहुत मदद हो जाती है। वैसे तो हम सभी सकारात्मक सोच रखते हैं, लेक़िन शायद अपने अंदर। वो जो आजकल एक नई श्रेणी के वक्ता या कहें एक नया व्यवसाय बन गया है मोटिवेशनल स्पीकर वाला, उन अंकल के बेटे उन सब से कहीं बेहतर। कम समय में वो अंकल (और साथ में मुझे भी) नये हौसले से भर देते। मैं हमेशा उन अनजान लोगों का ऋणी रहूँगा।
सकारात्मक सोच का एक बिल्कुल दूसरा रूप देखने को मिला जब ICU से दूसरे वार्ड में शिफ़्ट हुआ। वैसे तो हमेशा अपग्रेड होना ही अच्छा लगता है लेक़िन ये वो डाउनग्रेड था जिसका मुझे इंतज़ार था। इस वार्ड में रोज़ एक युवा, जिसने शायद अभी स्कूल ख़त्म ही किया हो, बार बार आता। लेक़िन वो अपने काम से काम रखता। मतलब वार्ड में कुछ भी चल रहा हो ये महाशय की एंट्री होती और ये सीधे जाकर सेनेटाइजर से अपने हाथों को साफ़ करते और उसके बाद वो अपना कुछ काम करते। इस पूरे समय उनका ध्यान सेनेटाइजर औऱ अपनी कुछ परेशानी पर रहता। जैसे एक दिन शायद उनकी चप्पल काट रही थी तो को पहले अपने पैर पर कुछ लगाया फ़िर अपनी चप्पल पर टेप लगाते रहे। वो इस बात से बिल्कुल भी परेशान नहीं कि वो अस्पताल के एक वार्ड में हैं जहाँ मरीज़ हैं या डॉक्टर भी आते जाते रहते हैं। इस बंदे के जज़्बे को भी सलाम!
तो पहले भोजन का ज्ञान और फ़िर बीमारी से लड़ने का हौसला बढ़ाने वाली बातें और सकारात्मक सोच। इन सबका निचोड़ यही की मन के हारे हार, मन के जीते जीत। जो अगली सीख मिली वो थी कुछ पुरानी आदतें को छोड़ना नहीं चाहिये।