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अब यहाँ से कहाँ जायें हम

धीरे धीरे सब सामान्य होता जायेगा और फ़िर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब कोरोना सिर्फ़ एक याद बनकर रह जायेगा। लॉक डाउन और उस समय की कहानियाँ अतीत का हिस्सा बनकर रह जायेंगी। हमारे जीवन की सभी घटनाओं के साथ ऐसा ही होता आया है फ़िर वो चाहे कितनी भी अच्छी या कितनी ही दुख देने वाली ही क्यों न हों। लेकिन क्या ये लॉक डाउन इतनी जल्दी यादों में ही सिमट जायेगा?

यही ज़िन्दगी का संदेश है। शो मस्ट गो ऑन (ये तमाशा चलता रहना चाहिये). सभी ने पैदल चलते हुये हमारे श्रमिकों की फ़ोटो या वीडियो देखें हैं। चिलचिलाती गर्मी में माँ सूटकेस खींच रही है और बेटा उस पर सो रहा है या बिटिया पिताजी को सायकल पर बिठा कर गाँव तक पहुंच गई। ऐसी कई घटनाओं से चैनल, वेबसाइटें या समाचार पत्र भरे पडे हैं। इन सभी भाई, बहनों को भी सलाम और उनके जज़्बे को भी नमन। इतनी मुश्किलें झेलकर भी उन्होंने कहीं भी कानून व्यवस्था में कोई अड़चन डाली।

सामने हैं मगर दिखते नहीं

लेक़िन एक तबका जो सामने रहता भी है लेक़िन उसकी समस्याओं की अनदेखी हो जाती है वो है हमारा मध्यम वर्गीय परिवार। हम ऐसे कितने परिवारों को जानते हैं जो शायद श्रमिकों जितनी ही मुश्किलें झेल रहे हैं लेक़िन अपना दर्द बयां नहीं कर रहे? कई लोगों की नौकरी चली गयी है और आगे नौकरी जल्दी मिलने की संभावना भी नहीं के बराबर है। बहुत से लोगों की तनख्वाह कम हो गयी है। लेक़िन उनके बाक़ी खर्चे जैसे बच्चों की पढ़ाई, लोन की किश्त आदि में तो कोई कमी नही हुई है। कई को इन्हीं महीनों में नौकरी मिलना तय हुआ था। लेकिन अब कोई उम्मीद भी नहीं है।

कई प्राइवेट कंपनियों में अप्रैल-मई का समय आपके सालाना बोनस एवं प्रोमोशन का समय होता है। कर्मचारी बस इसी का इंतजार करते रहते हैं की इस बार उन्हें क्या मिल रहा है। पूरे वर्ष वो अपना अच्छे से अच्छा काम करते हैं और साल के आख़िर में उन्हें पता चलता है की उन्हें ये कुछ तो मिलेगा नहीं और नौकरी भी नहीं रहेगी। लेकिन आपको इनकी कहानी सुनने को नहीं मिलेगी। क्योंकि ये तबका इसे अपनी नियति मान चुका है। काम करो, ढ़ेर सारा टैक्स भरो और सुविधा एक नहीं। लेकिन ये तब भी पीछे नहीं हटते। जुटे रहते हैं क्योंकि उनको अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी है ताकि वो अच्छी नौकरी पा सकें। यही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहता है।

क्या हल है

तो क्या ग़रीबों को उनके हाल पर छोड़ दें? बिल्कुल नहीं। आप उनको जितनी सुविधाएं देना चाहते हैं दीजिये ताकि उनका जीवन और बेहतर हो और वो भी देश की प्रगति का हिस्सा बने। लेक़िन ज़रा उन लोगों के बारे में भी तो सोचिये जो कर तो भरते रहते हैं लेक़िन उनको सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिलता। मैं उनके लिये उनकी छत पर हेलिपैड बनवाने की बात नहीं कर रहा हूँ लेक़िन बुनियादी सुविधाएं। अच्छी सड़क, रहने की साफ सुथरी जगह, अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं। इस पूरे कोरोना वायरस वाले घटनाक्रम से ये तो पता चलता है हमारी खामियाँ क्या हैं, कहाँ कुछ सुधारने की गुंजाइश है और कहाँ सब बदलने की। जो इस बार भी हम चूक गये तो…

वो जो चले गये उनके पास एक आसरा है, एक उम्मीद है। जो रह गये उन्हें नहीं पता उनकी जमापूंजी कितने दिनों तक चलेगी और उसके बाद क्या होगा। सच मानिये तो अभी तक हमको इसका आभास भी नहीं है की ये दो महीने कितनों की ज़िंदगी में एक ऐसा तूफ़ान लाया है जिसका असर वर्षों तक दिखेगा।

याद तो वो रह जाता है जो ख़त्म हो जाता है, इस पूरे घटनाक्रम को कई लोग अभी कई वर्षों तक जियेंगे। ये वो सफ़र है जो अभी शुरू भी नहीं हुआ है। निराश होने का विकल्प लेकर ही न चलें। सफ़र (अंग्रेज़ी वाला नहीं) का आनंद लें, मंज़िल की चिंता न करें। प्रयास करें अपने स्तर पर सुधार करने का। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं सोनू सूद। उनसे प्रेरणा लें और जो आप कर सकते हैं वो करें।

https://youtu.be/71VOHXpUHd4

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