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दो घड़ी वो जो पास आ बैठे, हम ज़माने से दूर जा बैठे

एक पुराना विज्ञापन आज फ़िर से देखा। घर की बहू सुबह से सबकी सेवा में लगी रहती है। अपनी चाय भी पीना भूल जाती है। रात को पति देखता है की सबको गर्म गर्म खाना खिलाने के बाद वो स्वयं अकेले ठंडा खाना खाती है। लेकिन उस बीच में भी उसे कभी सास की दवाई तो कभी बिटिया की किताब ढूंढने के लिये उठना पड़ता है। पति बड़ा आहत होता है और अगले ही दिन से उसमें पत्नी प्रेम जाग उठता है और वो उससे कहता है अबसे पहले तुम, जो की विज्ञापन की थीम भी है।

इस पर लोगों की प्रतिक्रिया ही इस पोस्ट की जननी है। कुछ महिलाओं ने इससे सहमति जताई और कहा की महिलाओं को भी घर में सम्मान मिलना चाहिये। लेकिन कुछ अन्य महिलाओं ने कहा दरअसल अंत में खाने के पीछे कारण है सही अंदाज़ा लगाना की कितनी रोटियां बनाई जायें और कितनी सब्ज़ी बच रही है। इसमें कोई महिला सशक्तिकरण जैसी कोई बात नहीं है और ये एक प्रक्टिकल सोच है।

इस विज्ञापन के बारे में दो विचार थोड़े अलग थे। एक किसी ने पूछा कि सास क्यों नहीं बहु का साथ देती रसोई में। क्या बहु सिर्फ़ काम करने के लिये ही है। शायद जिन महिलाओं को इस विज्ञापन का संदेश पसंद आया उनके साथ ऐसा व्यवहार होता है इसलिये उन्हें कहीं न कहीं अपनी पीड़ा दिखाई दी।

मैं स्वयं ऐसे कई परिवारों को जानता हूँ जो पढ़े लिखे हैं। अच्छे पद पर काम कर चुके हैं लेकिन बहु को रिमोट कंट्रोल करते हैं। सास ससुर रहते दूसरे शहर में हैं लेकिन बहु की मजाल है कि वो अपने हिसाब से कोई काम कर सके। उसके कहीं आने जाने पर रोकटोक है और रिश्तेदारों से फ़ोन पर बात करने पर भी पाबंदी।

दूसरी बात जिसने मुझे सोचने पर मजबूर किया वो पति जी का एकदम से जागृत होना। मतलब इतने वर्षों से क्या ये उन्हें दिखाई नहीं दे रहा था? अच्छी बात है की उन्हें इस बात का एहसास हुआ, देर से ही सही।

https://youtu.be/Sm_tmr7cYQk
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