मैंने अपना पत्रकारिता में करियर अंग्रेज़ी में शुरू किया और उसी में आगे बढ़ा। हिंदी प्रदेश का होने के कारण हिंदी समझने में कोई परेशानी नही होती है और ख़बर हिंदी में हो तो उसको अंग्रेजी में बनाने में भी कोई दिक्कत नहीं। इन सभी बातों का फायदा मिला और वो भी कैसे।
नासिर भाई ने अगर लिखना सिखाया तो दैनिक भास्कर के मेरे सीनियर और अब अज़ीज दोस्त विनोद तिवारी ने सरकारी दफ्तरों, अफसरों से ख़बर कैसे निकाली जाये ये सिखाया। विनोद के साथ भोपाल में नगर निगम और सचिवालय दोनों कवर कर मैंने बहुत कुछ सीखा। उन दिनों मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था लेकिन विनोद ने एक दिन चाय पीते हुये एलान कर दिया था कि मुझे पत्रकारिता का कीड़ा लग चुका है और मैं अब यहीं रहूँगा।
हिंदी के पाठक उस समय भी अंग्रेजी से ज़्यादा हुआ करते थे लेकिन मुझे अंग्रेज़ी में लिखना ही आसान लगता। उस समय ये नहीं मालूम था कि पन्द्रह साल बाद मैं भी हिंदी में अपना सफ़र शुरू करूंगा। थोड़ा अजीब भी लगता क्योंकि मेरे नाना हिंदी के लेखक थे और पिताजी भी हिंदी में कवितायें लिखते थे।
इंडिया.कॉम को जब हमने हिंदी में शुरू करने की सोची तो मेरे बॉस संदीप अमर ने पूछा कौन करेगा। मैंने हामी भर दी जबकि इससे पहले सारा काम सिर्फ और सिर्फ अंग्रेज़ी में ही किया था। लेकिन \”एक बार मैंने कमिटमेंट कर दी तो उसके बाद मैं अपने आप की भी नहीं सुनता\” की तर्ज़ पर मुंबई में लिखने वालों को ढूंढना शुरू किया। इसमें मुझे मिले अब्दुल कादिर। वो आये तो थे अंग्रेज़ी के लिये लेकिन वहाँ कोई जगह नहीं थी और उन्हें जहाँ वो उस समय काम कर रहे थे वो छोड़नी था। समस्या सिर्फ इतनी सी थी कि उन्होंने हिंदी में कभी लिखा नहीं था। लेकिन उन्होंने इसको एक चुनौती की तरह लिया और बेहतरीन काम किया और आज वो हिंदी टीम के लीड हैं।
आगे टीम में और लोगों की ज़रूरत थी तो कहीं से अल्ताफ़ शेख़ का नाम आया। अल्ताफ़ ने डिजिटल में काम नहीं किया था और हिंदी में लिखने में थोड़े कच्चे थे। शुरुआती दिनों में उनके साथ मेहनत करी और उसके बाद एक बार जब उन्हें इस पूरे खेल के नियम समझ में आ गए तो उन्होंने उसमें न केवल महारत हासिल कर की बल्कि उन्होंने अपना एक अलग स्थान बना लिया। हाँ शुरू के दिनों में अल्ताफ़ ने बहुत परेशान किया और शायद ही कोई ऐसा दिन जाता जब अल्ताफ़ पुराण न हो। लेकिन उनकी मेहनत में कोई कमी कभी नहीं आई और नतीजा सबके सामने है। इनके किस्सों की अलग पोस्ट बनती है!
अल्ताफ़ इन दिनों एक मनोरंजन वेबसाइट के कंटेंट हेड हैं और आये दिन फिल्मस्टार्स के साथ अपनी फोटो फेसबुक पर साझा करते रहते हैं। आज वो जिस मुकाम पर हैं उन्हें देख कर अच्छा लगता है। उनके चाहने वाले उन्हें लातूर का शाहरुख कहते हैं। लेकिन जिस तरह एक ही शाहरुख खान हैं वैसे ही एक ही अल्ताफ़ हैं। सबसे अलग, सबसे जुदा। जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें। हिंदी के टीम के बारे में विस्तार से फिर कभी।