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यादों के मौसम

\’राम नाम सत्य है\’ बोलते हुये जब डॉ रायज़ादा के पार्थिव शरीर को ले जाने लगे तो जय भी अंतिम संस्कार की रीतियों में शामिल होने के लिये अपने दिवंगत ससुर को कन्धा देेने के लिये आगे बढ़ा। अचानक एक हाँथ उसके कंधे पे आ रुका।

“घर के दामाद कन्धा नहीं देते”, जय ने पलटकर देखा तो कृति का पति और उसका पुराना दोस्त सुधांशु था। जय ने कुछ कहा नहीं और सुधांशु के बगल खड़ा हो गया। इतनी भीड़ में उसने कृति को देखा ही नहीं। कितने साल हो गये उसे देखे हुए। लेकिन लगता जैसे कल की ही बात हो जब उसने पहली बार डॉ रायज़ादा से उसे मिलाया था।

अंतिम संस्कार का काम संपन्न कर सब शाम को जब पाठ के लिए इकट्ठा हुए तो उसकी नज़र कृति पर गयी। बिलकुल वैसी ही दिखती है। थोडा वज़न बढ़ गया है लेकिन इस दुःख के मौके पर भी उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं। उसने भी जय को देखा और नमस्ते किया। जवाब में जय सिर्फ अपने हाथ मिला ही पाया था और यादों का कारवां चल पड़ा।

जय अपने आप को दस साल पीछे जाने से रोक नहीं पाया।

कृति ने उसे मेसेज किया था अर्जेंट मिलना है। वो घर से कॉलेज के लिए निकला ही था। अब कॉलेज में तो मिलना ही था। ऐसा क्या अर्जेंट था ये सोचते हुए वो कॉलेज पहुँच गया पर कृति का कहीं नामोनिशान नहीं था। अपने ग्रुप के बाकी लोगों से पूछने पर भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। उसकी खीज बढती जा रही थी की तभी मुस्कुराती हुयी कृति उसे आवाज़ लगाते हुए उसके पीछे आ रही थी। उसे देख वो अपनी सारी झुन्झूलाहाट भूल गया।

\”कहाँ थीं अब तक? पहले तो कहती हो अर्जेंट मिलना है और फिर गायब। लाइब्रेरी जाना था किताबें वापस करना है नहीं तो फाइन लगेगा\”, जय बोलता जा रहा था । कृति ने मानो सब अनसुना करते हुए अपने बैग से एक पेपर कटिंग निकाली। एक नौकरी का विज्ञापन था। जय के हाथ में देते हुए बोली, \”जब बोलना खत्म हो जाये तो पढ़ लेना\”।

जय चुप होकर कटिंग को पढ़ने लगा। एक रिसर्च अस्सिस्टेंट की पोस्ट थी। पैसा ठीक था। उसने कृति को धन्यवाद कहा। कृति ने मेंशन नॉट बोलते हुए हिदायत दी जल्दी भेज देना। \’ओके मैडम\’, कहते हुए जय लाइब्रेरी की ओर चल पड़ा।

लाइब्रेरी जाते हुये उसने सोचा आज कृति से अपने दिल की बात बोल ही देनी थी। लेकिन उसे डर था की अगर कृति ने मना कर दिया तो। वैसे तो वो उसका बहुत ख़याल रखती है और हमेशा आगे बढ़ने के लिये कहती है लेकिन क्या वो जय को अपने जीवन साथी के रूप में पसंद करती है? ये सवाल जय कई बार अपने आप से पूछ चुका है लेकिन इसका जवाब सिर्फ़ कृति के पास था।

इन्हीं विचारों में उलझे हुये जय को सुधांशु की आवाज़ ही सुनाई नहीं दी। वो तो जब पास आकर उसने चिल्लाकर कहा \’जय हो\’ तब जय का ध्यान गया।

\”लगता है किसी लड़की के ख़यालों में खोये हुये थे,\” सुधांशु ने कहा तो जय इधर उधर देखने लगा। \”जैसे हमें नहीं पता वो कौन है\”, सुधांशु ने कहा तो जय थोड़ा झेंप गया और बोलने लगा, \”यार सुबह सुबह क्यूँ मेरे पीछे पड़े हो\”। पीछा छुड़ाने के लिये बोला चाय पियोगे?

\”आपकी चाय\”, ये शब्द जय को वर्तमान में ले आये थे। सामने उसकी पत्नी स्मृति उसकी काली चाय का प्याला लिये खड़ी थी। (क्रमशः)

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