जहाँ दशक की शुरुआत में एक बहुत बड़े बदलाव का साक्षी बना, दस साल का अंत होते होते एक और कड़वी सच्चाई से पाला पड़ा। एक संस्थान में जाने का मौका मिला जो बदलाव की कगार पर खड़ा है लेकिन बदलाव को अपना नहीं रहा।
इन दस वर्षों में बहुत सी चीज़ें बदलती हुई देखी। जब ये दशक शुरू हुआ था तो किसे पता था हमारी दुनिया एक पाँच इंच की स्क्रीन पर सिमट जायेगी। लेकिन आज मैं ये पोस्ट उसी स्क्रीन पर टाइप कर रहा हूँ। कहने का मतलब है सिर्फ़ और सिर्फ़ बदलाव ही निरंतर है। लेकिन उस संस्थान को देखकर लगा समय जैसे रुक सा गया है। कहाँ हम इंटरनेट क्रांति की बात कर रहे हैं और कहाँ लोगों के पास अच्छी स्पीड वाला इंटरनेट नहीं है जो कि उनके काम को आसान बनाता है। ऐसा नहीं है की पैसे नहीं है, लेकिन जो चला आ रहा है उसको बदलने का डर और फ़िर हमारी माईबाप वाली मानसिकता जो इस बदलाव का सबसे बड़ा रोड़ा बन बैठी है।
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ऐसे किसी भी बदलाव को हम सिर्फ़ कुछ समय तक रोक सकते हैं। लेकिन वो बदलाव होगा ये निश्चित है। अगर समय रहते हम नहीं बदले तो पीछे ही रह जायेंगे। चार्ल्स डार्विन ने भी तो यही कहा है। तो क्या ये बेहतर नहीं है कि हम अपने आप को किसी भी बदलाव के लिये तैयार रखें?
इस बीते दशक में दुनिया में कई जगह जाने का मौका मिला। दूसरे देशों के लोगों के साथ काम करने का मौका भी मिला और उनसे बहुत कुछ सीखने को भी। ऐसे शुभचिंतकों की लंबी लिस्ट भी है जिनसे अब अगले कई दशकों तक मिलने का कोई मन नहीं है और एक छोटी सी लिस्ट उन लोगों की भी जिनसे मुलाक़ात के लिये बस एक बहाने की तलाश रहती है।
कुल मिलाकर इन दस सालों में बहुत कुछ सीखने को मिला। सबसे बड़ी उपलब्धि? ये जो मैं लिख रहा हूँ और जो आप पढ़ रहे हैं। मेरे अंदर का लेखक जो पिछले दो दशकों में कहीं खो गया था वो मिल गया और वो हिंदी में भी लिख सकता है।
पिछली पोस्ट में आप सभी को नये साल की शुभकामनायें देना भूल गया था। आप सभी के लिये ये वर्ष मंगलमय हो और आप सभी स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। नया दशक चुनोतियों से भरा हो और आप हर चुनौती का डट कर मुकाबला करें।
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