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ज़िन्दगी फ़िर भी यहाँ खूबसूरत है

यत्र, तत्र, सर्वत्र ये आज कोरोना के लिये सही है। हम घरों में क़ैद हैं लेकिन बहुत सारे ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने सारे नियम, कायदे तोड़ अपने पैतृक गाँव या शहर जाना ही बेहतर समझा। ये सब उन्होंने तब सोचा जब सरकार ने ट्रेन, बस, हवाई जहाज के कहीं भी आनेजाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। ये पोस्ट इस बारे में नहीं है की उन्होंने ऐसा क्यों किया बल्कि 905 किलोमीटर दूर वो जो घर जिसे वो अपना मानते हैं, उस सफ़र पर पैदल चलते हुये एक परिवार के बारे में है जो हमें बहुत कुछ सिखाता है।

तमाम सोशल मीडिया लोगों की मदद करते हुये फ़ोटो से पटा हुआ है। किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसलिये ऐसी किसी पोस्ट को देखता हूँ जहाँ मक़सद मदद नहीं है तो आगे बढ़ जाता हूँ। इस परिवार की कहानी मुझे पढ़ने को मिली फेसबुक पर जहाँ शिबल भारतीय एवं ग्राष्मी जीवानी ने बताया की कैसे उन्हें ये परिवार NH8 पर पैदल चलता हुआ मिला। छह सदस्यों का ये परिवार बढ़ रहा है रायपुर, छत्तीसगढ़ के पास अपने गाँव की तरफ़। घर पहुँचने में शायद एक हफ़्ता लग जाये। शिबल और ग्राष्मी विज़न अनलिमिटेड संस्था से जुड़े हैं जो इस समय कष्ट झेल रहे लोगों की हर संभव मदद करने की कोशिश कर रहा है।

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जिस तरह के अनिश्चितता से भरे माहौल में हम रह रहे हैं, अगर कभी मार्किट जाने को मिल जाये तो सब भर भर के ले आयें। हमारा काम दो से चल सकता हो लेकिन हम छह उठा लायेंगे। पता नहीं फ़िर कब मौका मिले और अगर मौका मिला लेकिन सामान नहीं मिला तो? भर लो भाई जितना भर सकते हो।

शायद यही प्रवृत्ति हमें और इस परिवार को अलग करती है। जब हॉस्पिटल से लौटते हुये इन दोनों महिलाओं को ये परिवार दिखा तो उन्होंने गाड़ी रोककर पूछा कुछ खाने के लिये या पीने के लिये पानी चाहिये? परिवार की तरफ़ से माता ने बोला नहीं कुछ नही चाहिये। है सब हमारे पास। उन्होंने फ़िर से पूछा तो इस बार पिताजी ने बोला \”दीदी हमारे पास है। आप किसी और को दे दीजिए।\”

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साथ चल रहे दो बच्चों ने बिस्किट के पैकेट लिये लेक़िन बाकी दो ने मना कर दिया। जितना है वो काफ़ी है। उससे काम चल जायेगा। दो बैग में पूरी गृहस्थी समेटे रोड पर चले जा रहें हैं। और ऐसे भी लोग हैं जो इस समय भी मुनाफाखोरी के बारे में ही सोच रहे हैं। उन परिवारों का क्या करिये जो घर में अनाज भरते जा रहें हैं और सिर्फ़ औऱ सिर्फ़ अपने ही बारे में सोचते हैं।

शायद वक़्त उन्हें कोई सीख दे, शायद उनकी समझ में जल्द आ जाये की संतोष जीवन में कितना आनंद देता है। इस परिवार की फ़ोटो देखिये। हर सदस्य के चेहरे पर मुस्कुराहट देखिये। लगता है कितने दिनों बाद एक असली मुस्कान देखी है।

शिबल भारतीय एवं ग्राशमी जीवानी आपकी इस प्रेरणादायी पोस्ट और फ़ोटो के लिये धन्यवाद। इस पोस्ट को आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

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