in ब्लॉग

भारत में बसे इस दूसरे भारत से क्या आपकी मुलाकात हुई है?

\’इस देश में दो भारत बसते हैं\’, ऐसा मैं नहीं कह रहा लेकिन अमिताभ बच्चन ने प्रकाश झा द्वारा निर्देशित फ़िल्म आरक्षण में कहा था। हाल ही में सम्पन्न हुऐ आम चुनाव में ये बात बिल्कुल सही साबित हुई। चुनाव से पूर्व सब ये मान बैठे थे कि किसानों की समस्या, रोज़गार, महंगाई और ऐसे कई मुद्दों के चलते सरकार का वापस आना नामुमकिन था।

ऐसा मानने वाले कौन? मेरे और आप जैसे शहरों में रहने वाले। हम अपने सोशल मीडिया, मिलने जुलने वालों का जो कहना होता है वही मान लेते हैं और वही सच्चाई से परे बात को आगे भी फॉरवर्ड कर देते हैं। हम ज़मीनी सच्चाई से बिल्कुल अलग थलग हैं। अगर ये कहा जाए कि परिणामों से कइयों की पैरों तले ज़मीन खिसक गई तो कुछ ग़लत नहीं होगा।

मुम्बई में जहाँ में रहता हूँ वहाँ पिछले दो महीनों से पानी की समस्या शुरू हो गयी है। समस्या क्या? दिन में अब चौबीस घंटे पानी नहीं मिलेगा। अब से सिर्फ सुबह-शाम चार घंटे ही पानी आयेगा और सभी रहवासियों को इससे काम चलाना पड़ेगा। इस को लेकर काफ़ी हंगामा हुआ। कुछ लोगों को सप्लाई के समय से दिक्कत थी तो कुछ इस बात को पचा नहीं पा रहे थे कि नल खोलने पर पानी नहीं मिलेगा। एक दो दिन में पता चला कि चार घंटे की सप्लाई बिल्डिंग के एक हिस्से में दो घंटे में समाप्त। पता चला कुछ लोग अपने फ्लैट में छोटे छोटे पानी स्टोर करने वाले टैंक में पानी भरकर रख लेते। बाकी किसी को मिले न मिले इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं। उन्हें सख्त हिदायत दी गयी कि ऐसे टैंक ज़ब्त कर लिये जायेंगे तब कुछ मामला ठीक हुआ। ये सब पढ़े लिखे महानुभाव हैं जो अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं।

बाहर की दूसरी सोसाइटी भी कुछ कम नहीं। पानी का सप्लाई कम होने के बाद उन लोगों ने बूस्टर पंप लगा लिये। हमारे पास तो पानी होना चाहिये आस पास वालों की वो जाने। ये तब की पानी रोज़ाना आ रहा है बस उसकी मात्रा थोड़ी कम है। लेकिन महाराष्ट्र के कई इलाकों में तो पानी हफ़्ते में एक बार और वो भी सिर्फ आधे घंटे के लिये। मतलब महीने में कुल दो घंटे पानी की सप्लाई। लेकिन हम शहरों में रहने वाले लोग अपनी समस्याओं से ज़्यादा नहीं सोचते हैं। शायद इसी वजह से हमें बहुत सी सच्चाई दिखाई नहीं देती।

आपने अगर वो सुनयना वाला कार्यक्रम नहीं देखा हो तो ज़रूर देखें। वो हम सबके गाल पर एक तमाचे की तरह है। हम बड़ी बड़ी बातें ही करते रह जाते हैं और ये बालिका इतनी कठिनाई के बाद भी डॉक्टर बनने की चाह रखती है। और वो बन भी जायेगी बिना किसी अच्छी कोचिंग के या ताम झाम वाली पढ़ाई के। इसी एपिसोड में छिपी है सरकार की जीत की कहानी।

अगर आप परीक्षा परिणाम पर नज़र रखते हों तो कौन है जो इसमें अव्वल आ रहे हैं? वो छात्र जो आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवारों से नहीं आते। हम अपने बच्चों पर लाखों रुपये खर्च देते हैं की वो कुछ बन जायें लेकिन ये सामान्य सी परिस्थितियों से आने वाले उनको पछाड़ देते हैं।

अगर सूरत के केतन जोरावड़िया भी उस दिन जब वो बिल्डिंग में लगी आग के वीडियो बनाने में लग जाते तो? लेकिन उन्होंने बच्चों की जान बचाने को ज़्यादा महत्व दिया। हम शहरों में रहने वालों को लगता है इतना इनकम टैक्स, रोड टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स दिया है तो सुविधाओं पर हमारा हक़ है। जब हमारा पेट भरने वाले किसान अपने हक़ ही बात करते हैं तो हम चैनल क्यों बदल देते हैं?

Write a Comment

Comment

  • Related Content by Tag