सुबह से श्रीमती जी थोड़ी सी विचलित सी दिखीं। मैंने अपने दिमाग़ में सुबह का पूरा सीक्वेंस दोहराया कि कहीं इसमें मेरा कोई योगदान तो नहीं है। मैंने उनके कार्यक्षेत्र (रसोईघर) में किसी तरह का कोई उल्टा पुल्टा काम भी नहीं किया था। चाय के बारे में भी सब कुछ अच्छा ही बोला था मतलब अच्छी चाय के बारे में अच्छा ही बोला जायेगा और वही ग़ुलाम ने किया था।
मैं निश्चिंत था आज न किसी का जन्मदिन है जिसे मैं भूल गया हूँ। वैसे उनकी सखियों की शादी की सालगिरह और जन्मदिन याद रखने का ज़िम्मा मुझे दिया गया है। अगर चूक हुई तो दोनों ही तरफ से सुनने को मिलता है। जब तक व्हाट्सएप पर था तो वहाँ सबके सहयोग से ये कार्य बहुत ही आसानी से सम्पन्न हो जाता था। जबसे व्हाट्सऐप से हटा हूँ तो अपनी कमज़ोर होती याददाश्त पर ही निर्भर रहता हूँ।
जिस समय ये विचारों की रेल 180 की मि की रफ्तार से दौड़ रही थी श्रीमती जी अपने व्हाट्सऐप पर दुनिया के कोने कोने में बसे रिश्तेदारों और अपनी सखियों को गुड मॉर्निंग मैसेज के आदान प्रदान में लगी हुईं थीं। मेरे बाद आता है नम्बर बच्चों का तो बच्चों के स्कूल की भी छुट्टी थी तो वहाँ से किसी शिकायत की गुंजाइश नहीं थीं। अगर होती भी तो उसका निवारण फ़टाफ़ट पिछले दिन ही हो जाता। अब ये कोई सरकारी दफ्तर तो है नहीं कि फ़ाइल घूमे। सिंगल विंडो क्लीयरेंस सरकार अभी अमल में ला पाई है। घरों में ये अनन्त काल से चल रहा है। खैर, छुट्टी के चलते बच्चों ने अपने से ही पढ़ाई की भी छुट्टी घोषित कर दी थी तो रोजाना होने वाला एक सीन भी इन दिनों नदारद था।
जितना पतियों को सवाल नापसंद हैं, पत्नियों को अच्छा लगता है कि उनसे सवाल पूछे जायें। मतलब आप इशारे समझ लीजिये और एक छोटा सा सवाल पूछ लें – क्या हुआ। बस जैसे किसी बाँध के दरवाज़े खुलते हैं वैसे ही जानकारी का बहाव शुरू। आप उसमे से काम की बात ढूंढ लें। मैंने वही किया। सुबह सुबह उन्हें ख़बर मिल गयी कि आज काम करनेवाली ने छुट्टी घोषित कर दी है।
कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी मेरे हिसाब से क्योंकि जैसे में वैसे हर काम करने वाला छुट्टी का हक़दार होता है। और फ़िर आप अपनी ऊर्जा, समय इसके ऊपर फ़ोन और व्हाट्सएप कर क्यों बर्बाद कर रहे हो? ऐसा मैंने सोचा लेकिन बोला नहीं। जब सामने से तूफान निश्चित दिखाई दे रहा है तो क्यों अपनी नाव उतारी जाये। ऐसे समय ख़ामोश रहना बेहतर है। कोई सुझाव हो तो आप उसको दुनियाभर को बता दें। श्रीमती जी को न बतायें। सो नहीं बताया।
बस यही गलती कर दी। कल मैं फ़ोन पर किसी को उनकी समस्या के लिये कुछ सुझाव श्रीमती जी के सामने दे दिये थे। आपके पास इसके लिये कुछ सुझाव नहीं है? उन्होंने पूछ ही डाला और उसके बाद जैसा सैफ अली खान का दिल चाहता है में सीन था वैसा ही कुछ होता। मतलब की, वो, तो, मैं जैसे चार शब्द मेरे हिस्से में आते।
लेकिन मैंने उनसे दूसरा प्रश्न पूछ लिया समस्या पता है। उन्होंने कहा हाँ। तो अब इसका समाधान ढूँढते हैं।
अपने जीवम में हम अक्सर समस्या पर ही उलझ जाते हैं। वो तो हमें पता होती है लेकिन समाधान नहीं। उसपर ध्यान दें और जो भी दो-तीन समाधान दिखें उसपर काम करना शुरू करें। बात सिर्फ फ़ोकस बदलने की है।
श्रीमती जी इस सलाह के बाद व्हाट्सएप पर कुछ और संदेश का आदान प्रदान किया, एक दो फ़ोन भी लगा लिये और उनका काम हो गया। वैसे श्रीमती जी और बाकी गृहणियों से एक बहुत अच्छी मैनेजमेंट की सीख भी मिलती है। उसपर चार लाइना कल। फ़िलहाल गरम चाय की प्याली इस सर्द सुबह का आनन्द दुगना करने का आमंत्रण दे रही है।