विगत कुछ वर्षों से विदेश घूमने का चलन बहुत बढ़ गया है। इसके पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं लेकिन हमारे यहाँ विदेश यात्रा को एक स्टेटस सिंबल की तरह देखा जाता है। आपने भारत भले ही न घुमा हो लेकिन अगर आपने एक भी विदेश यात्रा नहीं करी हो तो आपने अपने जीवन में कुछ नहीं किया।
आज से लगभग 20 वर्ष पहले जब फ़ेसबुक या इंस्टाग्राम या ट्विटर नहीं था तो आपके निकट संबंधियों के अलावा जन सामान्य को आपकी विदेश यात्रा के बारे में कैसे पता चले? अगर आप विदेश यात्रा पर जाते थे या लौटते थे तो कुछ लोग इसका ऐलान बाक़ायदा समाचार पत्र में एक इश्तेहार देकर करते थे। उस छोटे से विज्ञापन का शीर्षक होता था विदेश यात्रा और उस व्यक्ति का नाम और वो कहाँ गये थे और यात्रा का उद्देश्य सब जानकारी रहती थी।
शायद मार्च के पहले हफ़्ते दस दिन तक तो ये बखान यथावत चलता रहा। लेकिन उसके बाद सब कुछ बदलने लगा। वही लोग जो सोशल मीडिया पर अपनी इस यात्रा के टिकट से लेकर हर छोटी बड़ी चीज़ें शेयर करते नहीं थकते थे अचानक उनकी विदेश यात्रा के बारे में बात करने से परहेज़ होने लगा।
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इसमें कुछ ऐसे लोग भी पकड़े गए जो घर से तो काम के सिलसिले में बेंगलुरू और कोलकता का कहकर निकले थे, लेकिन असल में थाईलैंड की यात्रा कर आये थे। उनकी चोरी उनके परिवार को तब पता लगी जब स्थानीय प्रशासन नोटिस लगाने आयी। पकड़े गये व्यक्तियों ने इसका सारा गुस्सा मीडिया पर निकाला।
मेरे एक सीनियर ने मुझे भी ये समझाइश दी थी आज से लगभग पाँच साल पहले की अगर बाहर कहीं जाओ, किसी अच्छे होटल में रुको तो वहाँ की फ़ोटो शेयर करो सोशल मीडिया पर। उनके अनुसार ये अपने आप को मार्केट करने का एक तरीका है। सोशल मीडिया पर लोग फ़ोटो देखेंगे तो आपका स्टेटस सिंबल पता चलेगा और आपके लिये आगे के द्वार खुलेंगे।
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ये सच ज़रूर है की आजकल कंपनियां आपका सोशल मीडिया एकाउंट भी देखती हैं लेकिन वो ये देखने के लिये की आप किस तरह की पोस्ट शेयर कर रहे हैं। कहीं आप कोई आपत्तिजनक पोस्ट तो नहीं करते या शायद ये देखने के लिये भी की आप न कभी उस कंपनी के ख़िलाफ़ कुछ लिखा है क्या? क्या आपने कहाँ अपनी पिछली गर्मी की छुट्टियां बितायीं थीं उसके आधार पर नौकरियां भी दी जाती हैं?
मेरे ध्यान में इस समय वो परिवार है जो रायपुर के समीप अपने गाँव की तरफ़ चला जा रहा है। जिसका कोई सोशल मीडिया एकाउंट नहीं होगा, जिसकी इस यात्रा का कोई वृत्तांत नहीं होगा लेकिन वो इन सबसे बेखबर है। कई बार यूँ बेख़बर होना ही बड़ा अच्छा होता है।
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जब ये महीना शुरू हुआ था तब श्रीमती जी और मेरी यही बात हो रही थी की साल के दो महीने तो ऐसे निकल गये की कुछ पता ही नहीं चला। होली तक इस महीने के भी उड़नछू हो जाने की सभी संभावनाएं दिख रही थीं की अचानक फ़िल्म जो जीता वही सिकन्दर के क्लाइमेक्स सीन के जैसे सब कुछ स्लोमोशन में होने लगा और लगता है जैसे बरसों बीत गये इस महीने के पंद्रह दिन बीतने में। लेकिन जैसा होता है, समय बीत ही जाता है। मार्च 2020 को हम सभी एक ऐसे महीने के रूप में अपने सारे जीवन याद रखेंगे जिसने हमारे जीवन से जुड़े हर पहलू को हमेशा हमेशा के लिये बदल दिया है। क्या ये बदलाव हमें नई दिशा में लेके जायेगा?