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हमारा जीवन और इन्टरनेट की क्रांति

मुम्बई में अगर आपके रहने और खाने का बंदोबस्त है तो इस शहर में रहना बहुत आसान है। रहने का बंदोबस्त PTI ने कर दिया था और खाने का हमने खुद। इस वजह से कुछ पैसा बचा और जब थोड़ा बहुत पैसा इकट्ठा कर लिया तो सोचा मोबाईल लिया जाए।

आज के जैसे उन दिनों फ़्री काल जैसी कोई चीज़ नहीं हुआ करती थी। और आपको दोनो इनकमिंग और आउटगोइंग दोनो के लिए पैसा देना पड़ता था। लेकिन मुझे टेक्नोलॉजी में शुरू से ही बडी रुचि रही है। इसलिए ये खर्चा कम और निवेश ज़्यादा लगा।

उसके बाद से तो जैसे रिलायंस ने मोबाइल क्रांति ले आया अपने धीरूभाई अंबानी ऑफर से। परिवार में सबने ये फ़ोन लिया और दिलवाया भी ये सोच कर की पैसा कम खर्च होगा। लेकिन उन्ही दिनों मेरी सगाई हुई थी तो बातों का सिलसिला काफी लंबा चला करता था। नतीज़न पैसे बचने की कोई उम्मीद सबने छोड़ दी थी सिवाय रिलायंस के। उन्हें तो मेरे जैसों ने ही खूब बिज़नेस कराया।

वो जो उठा पटक वाली बात मैंने एक पोस्ट में कही थी वो आज के इंटरनेट के बारे में थी। कंप्यूटर से मेरा साक्षात्कार बड़ी जल्दी हो गया था। जहां बाकी लोगों की तरह में भी उसमे पहले खेल खेलता था मेरा प्रयास यह रहता था कि कुछ और सीखने को मिल जाये। उस समय फ्लॉपी हुआ करती थी तो कुछ तिकड़म कर एक संस्थान का मासिक तनख्वाह का प्रोग्राम बना दिया।

उसके बाद आगमन हुआ इंटरनेट का। ये तो तय था ये कुछ बड़ा बदलाव लाएगा लेकिन कितना बड़ा इसका अंदाज़ा नहीं था। हाँ अपने उस समय के दोस्तों से मैं भी ये ज़रूर कहता कि एकदिन देखना सब ऑनलाइन मिलेगा। न अमेजान और न ही फ्लिपकार्ट के बारे में कुछ मालूम था। ये भी नहीं मालूम था कि एक दिन इसमें मेरा करियर बनेगा।

एक बड़ा तबका आज व्हाट्सएप और वीडियो देखने की क्षमता को ही इंटरनेट की बड़ी सफलता मानता है। लेकिन सही मायने में इसे इंटरनेट की जीत तब माना जायेगा जब उन लोगों के जीवन में एक ऐसा परिवर्तन लाए जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल हो।

मुझे समय समय पर इस दिशा में कुछ करने का फितूर चढ़ता है और फिर वापस वही ढ़र्रे वाली ज़िन्दगी पर। हमको इस इंतज़ार का कुछ तो सिला मिले…

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