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हरेक जीवन है एक कहानी

श्रवण कुमार की कहानी आपको पता होगी। आज एक बार फ़िर से बताता हूँ। श्रवण कुमार के माता पिता नेत्रहीन थे। श्रवण कुमार उनकी बहुत सेवा करते औऱ उन्होंने एक कांवर बनाई थी जिसमें वो उनको लेकर यात्रा करते। एक दिन तीनो अयोध्या के समीप के जंगल के रास्ते कहीं जा रहे थे तब माता पिता को पानी पिलाने के लिये श्रवण कुमार रुके। उसी जंगल में अयोध्या के राजा दशरथ भी शिकार के लिये आये थे।

जब श्रवण कुमार तालाब से पानी निकाल रहे थे तब महाराज दशरथ को ऐसा लगा की शायद कोई हिरन है पानी पी रहा है औऱ उन्होंने तीर चला दिया। तीर श्रवण कुमार को लगा जिससे उनके प्राण निकल गये। राजा दशरथ ने ये दुःखद समाचार उनके माता पिता को सुनाया। ऐसा कहा जाता है उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया की उन्हें भी पुत्र वियोग होगा। वर्षों बाद दशरथ पुत्र रामचंद्र जी को वनवास हुआ और पुत्र वियोग में राजा दशरथ ने भी प्राण त्याग दिये थे।

कहानी 2: बचपन में माँ एक कहानी सुनाती थीं। एक बहुत ही होनहार बालक था। पढ़ने, लिखने, संस्कार सभी में अव्वल। जब उसकी परीक्षा का समय आया तब माँ की तबियत ख़राब हो गयी। बालक ने परीक्षा छोड़ माँ की देखभाल करना उचित समझा औऱ उनकी सेवा में लगा रहा। माँ के बहुत समझाने के बाद भी वो विद्यालय नहीं गया।

जब बालक परीक्षा देने नहीं पहुँचा तब उसके अध्यापक को थोड़ी चिंता हुई। उन्होंने विद्यालय से किसी को भेज कर पता करवाया। जब उन्हें उसके नहीं आने का कारण पता चला तो उन्होंने एक अध्यापिका को घर भेजा की वो बालक की माँ की देखभाल करें ताकि वो परीक्षा दे सके।

विद्यालय से लौटते समय उन्होंने बालक के घर जाकर माँ का कुशलक्षेम पूछा औऱ बालक को ढ़ेर सारा आशीर्वाद भी दिया।

ये तो कहानी हुई। अग़र आप कौन बनेगा करोड़पति का नया सीज़न देख रहे हों तो ज्ञान राज नाम के जो प्रतियोगी झारखंड से आये थे उनके जीवन में ऐसा ही हुआ। इंजीनियरिंग करने के बाद जो नौकरी का ऑफर था उसे छोड़कर उन्होंने बीमार माँ की देखभाल करने का निर्णय लिया। आज वो एक शिक्षक हैं औऱ अपने छात्रों को नई टेक्नोलॉजी सिखाते हैं।

असल ज़िंदगी में मैंने स्वयं ये सब बहुत क़रीब से देखा है। मेरी दादीजी को लकवा हो गया था जिसके चलते उनकी हमेशा देखभाल की ज़रूरत थी। एक सहायिका दिनभर के लिये रखी थी। माँ-पिताजी भी उनकी बहुत सेवा करते। पिताजी का रोज़ का रूटीन था उनको व्हीलचेयर पर बैठाकर नहाने के लिये बाथरूम लेकर जाते औऱ स्नान के बाद जब सहायिका की मदद से वो तैयार हो जातीं, तब उनको बाहर लेकर आते, जहां वो सबके साथ बैठ कर बातचीत करतीं। हम लोग उनको अखबार की ख़बरें भी पढ़कर सुनाते। पिताजी ये सारा काम हमारे साथ स्कूल निकलने से पहले करते। भोजन के लिये दादी को सहारा देकर बैठाने का काम हम भाई बहन का रहता।

अब चलते हैं मेरे कॉलेज के दिनों की तरफ़। जिस कॉलेज में मेरा दाखिला हुआ था वो घर से काफ़ी दूर था (पास वाले कॉलेज में दाखिले के लिये जो नंबर चाहिये थे वो मेरे से बहुत दूर थे)। जाने के दो विकल्प थे – या तो कुछ पैदल औऱ कुछ पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर रहें या साइकल से जाया जाये। तीसरा विकल्प – गाड़ी वाला फाइनल ईयर में आकर मिला (परीक्षा के लिये)। तो साइकल की उस लंबी यात्रा के दौरान रास्ते में जो सुविचार वाले बोर्ड लगे रहते थे वो पढ़ते जाते थे। आज के जैसे मोबाइल फ़ोन तो हुआ नहीं करते थे की ईयरफोन लगाओ औऱ निकल पड़ो। हाँ चलता फिरता आदमी अर्थात वॉकमैन ज़रूर था लेक़िन जल्दी जल्दी बैटरी बदलना भी संभव नहीं था। कॉलेज लगभग रोज़ ही जाना होता था क्योंकि विज्ञान विषय था तो प्रैक्टिकल होते थे। तो ये सुविचार वाले बोर्ड यात्रा के साथी रहे लगभग तीन वर्ष।

भोपाल में जैसे ही आप भेल (BHEL) टाऊनशिप में प्रवेश करते हैं, बिजली के खम्बों पर लगे ये बोर्ड आपका स्वागत करते हैं। पूरे रास्ते ऐसे बोर्ड लगे हुये थे। ऐसा ही एक बोर्ड जो याद रह गया, उस पर लिखा था

माता पिता की सेवा करने वाला पुत्र कभी दुखी नहीं रहता

आपको बहुत से ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे जो माता-पिता की देखभाल का ख़ूब दिखावा करेंगे लेक़िन बात कुछ औऱ ही रहती है। कोई अपने पालकों के नाम पर इमारत खड़ी कर ये समझते हैं समाज में उनकी वाहवाही होगी। कोई उनके बुत बनवा कर साल में एक बार साफ़ सफ़ाई करवा कर फ़ोटो खींच कर व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर कर देते हैं। लेक़िन वो उन मूल्यों की तो तिलांजलि दे चुके रहते हैं, जिसका अग़र वो पालन करते तो शायद उनके दिवंगत माता पिता ज़्यादा खुश होते। लेक़िन जैसा इन दिनों फ़ैशन है सब चीज़ का दिखावा करिये। ख़ैर।

जो ऊपर दो कहानी औऱ अपनी दादी के बारे में बताया उसके पीछे कारण था इन दिनों ऐसी खबरें सुनना या पढ़ना जब बच्चे अपने माता पिता को छोड़कर चले जाते हैं या उनकी पूछ परख सिर्फ़ इसलिये करते हैं क्योंकि ज़मीन जायदाद का मामला रहता है। इन खबरों से दुःख तो होता ही है, आश्चर्य भी होता है। ऐसे बेटों की गलतियों के श्रेय ज़्यादातर बहुओं के हिस्से में आता है। चलिये एक बार को मान भी लें की बहू की ग़लती होगी, लेक़िन जिस बेटे को माँ बाप ने पाला पोसा वो कैसे अपने माता पिता के साथ ऐसा व्यवहार होता देख सकते हैं? कहीं न कहीं उनका मौन रहना उस ग़लत व्यवहार को बढ़ावा ही देता है। वैसे ही बड़ा भाई, जिसे मातापिता के न होने पर उनके स्थान पर रखा जाता है, वो कैसे अपने से छोटे भाई बहनों के साथ ग़लत होता देखते रहते हैं ख़ामोशी से? लेक़िन क्या सिर्फ़ संतान ही दोषी हैं? क्या माता-पिता भी कहीं इसके लिये कुछ हद तक दोषी हैं? यहाँ दोषी होने का मतलब क्या वो अपनी संतान से कुछ ज़्यादा की उम्मीद तो नहीं लगा बैठे? ज़्यादातर माता पिता ये मान कर चलते हैं की बुढ़ापे में जब उन्हें ज़रूरत होगी तब उनका पुत्र उनका ख़्याल रखेगा। लेक़िन कई बार ऐसा नहीं होता है। उल्टा माता पिता ही बच्चों के परिवारों का भी ख़्याल रखते हैं।

मुझे याद है जब अमिताभ बच्चन की फ़िल्म बाग़बान आयी थी। किसी कारण से मैं ये फ़िल्म नहीं देख पाया था। छोटे भाई ने फ़ोन कर बोला ये फ़िल्म ज़रूर देखना। जब देखी तो बहुत बढ़िया लगी। लेक़िन सभी को ये फ़िल्म पसंद नहीं आयी। हमारे एक रिश्तेदार फ़िल्म को देखने औऱ बाक़ी लोगों को इसको देखने के लिये बोलने से नाराज़ भी हुये थे। उनका दर्द समझ में भी आता था क्योंकि उनके सुपुत्र औऱ उनके संबंध लगभग ख़त्म से ही हो गये थे।

ख़ैर बात फिल्मों की नहीं है। असल ज़िन्दगी में अमिताभ बच्चन ने जिस तरह से अपने माता पिता की सेवा करी है उसकी भी मिसाल दी जाती है। ऐसी बहुत सी फ़िल्मों का यहाँ उदाहरण दिया जा सकता है।

बाग़बान के अंत का जो सीन है उसमें अमिताभ बच्चन बहुत सारा ज्ञान देते हैं। लेक़िन फ़िल्मों से जो भी ज्ञान मिले, असल ज़िन्दगी में क्यूँ हम ऐसे वाक्ये देखते हैं। भाई बहन के बीच तक़रार फ़िर भी समझ में आती है क्योंकि एक भाई थोड़ा लालची हो जाता है औऱ अपने फायदे के अलावा कुछ नहीं सोचते। लेक़िन माता-पिता के साथ ऐसा व्यवहार कैसे सही हो सकता है? माता पिता उम्र की उस दहलीज़ पर खड़े रहते हैं जहाँ उन्हें बस प्यार औऱ सम्मान की दरकार है। लेक़िन ऐसी बहुत सी संतान हैं जो इतना भी नहीं कर पाती। माता पिता सब इसलिये सह लेते हैं क्योंकि उनके पास औऱ कोई चारा नहीं है। वो अपना बचा हुआ जीवन बस गुज़ारना चाहते हैं।

जब तक माता पिता सामने रहते हैं उनकी क़दर नहीं करते औऱ उनके जाने के बाद सिर्फ़ अफ़सोस ही कर सकते हैं। वैसे ये बात सभी रिश्तों पर लागू होती है। कहाँ तो आप सालों साल बात नहीं करते औऱ फ़िर जब अचानक उनके न होने की ख़बर आती है तो जीवन भर न सही लेक़िन उनके जाने के शुरू के कुछ वर्षों तक आप अफ़सोस जताते रहते हैं। उसके बाद वही ढ़र्रे वाला व्यवहार वापस।

अपने आसपास सभी तरह के लोग देखें हैं। वो जो दिखावा करते नहीं थकते, वो जो माता पिता की क़दर नहीं करते औऱ वो भी जो माता पिता को ढ़ेर सारा प्यार देते हैं औऱ उनका ख़ूब सम्मान भी करते हैं। अगर आपके बच्चे ये देख रहें की आप अपने माता पिता से कैसे व्यवहार कर रहे हैं तो आपको अपने साथ भी ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद करनी चाहिये। वैसे इतनी कहानी हो चुकी हैं, नहीं तो इस बारे में भी एक कहानी है। उसका नंबर भी आयेगा।

\”शायद आज की पीढ़ी ये भूल जाती है जहाँ आज हम हैं, कल वो वहाँ होंगे। कल वो भी बूढ़े होंगे।\”

बाग़बान

वैसे ये जो सुविचार वाले बोर्ड थे (अब जानकारी नहीं है वो हैं की नहीं। भेल टाऊनशिप भी अब भुतहा जगह हो गयी है), बड़े याद आतें हैं। हाईवे पर कई गाड़ियों के पीछे भी ऐसे ही गुरुमंत्र लिखे रहते हैं। क्या आपने ऐसा कुछ कभी पढ़ा है जो आपको याद रह गया? कमेंट करके बताइये।

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