हमारे इस छोटे से जीवन में ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं जिनसे हम अच्छे खासे प्रभावित होते हैं और उन्हें अपना गुरु मानने लगते हैं। शिक्षा के दौरान हमारे शिक्षक इस पद पर रहते हैं और बाद में हमारे काम से जुड़े हुए लोग। कुछ ऐसे भी लोग मिल जाते है इस यात्रा में जो बस कहीं से प्रकट हो जाते हैं और कुछ सीख दे कर चले जाते हैं।
इन सबमे सबसे अहम शिक्षक – हमारे माता पिता कहीं छूट से जाते हैं। वो रहते तो हैं हमारे आसपास लेकिन हम उन्हें उस रूप में नहीं देखते और सोचते हैं उन्हें मेरे काम या काम से संबंधित ज़्यादा जानकारी नहीं होगी तो वो मेरी मदद कैसे करेंगे। ऊपरी तौर पर शायद ये सही दिखता है लेकिन हर समस्या भले ही दिखे अलग पर उसका समाधान बहुत मिलता जुलता है।
मसलन अगर आप एक टीम लीड कर रहें हो तो सबको हैंडल करने का आपका तरीका अलग अलग होगा। कोई प्यार से, कोई डाँट से तो कोई मार खाकर। हाँ आखरी वाला उपाय ऑफिस में काम नहीं आएगा तो उसके बारे में न सोचें। लेकिन क्या ये किसी की ज़िंदगी बदल सकता है?
भोपाल के न्यूमार्केट में घूम रहे थे परिवार के साथ कि अचानक भीड़ में से एक युवक आया और बीच बाजार में पिताजी के पैर छूने लगा। सर पहचाना आपने? सर आपने मार मार कर ठीक कर दिया नहीं तो आज पता नहीं कहाँ होता। पिताजी को उसका नाम तो याद नहीं आया क्योंकि उन्होंने इतने लोगो की पिटाई लगाई थी लेकिन खुश थे कि उनकी सख्ती से किसी का जीवन सुधार गया। लेकिन वो एक पल मुझे हमेशा याद रहेगा। और शायद शिक्षक के प्रति जो आदर और सम्मान देख कर ही शिक्षक बनने का खयाल हमेशा से दिल में रहा है।
ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ है जब पिताजी कहीं जाते हैं तो उनके छात्र मिल जाते हैं। पिताजी एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे सेवानिवृत्त होने से पहले और काफी चर्चा थी उनके एक सख्त शिक्षक होने की। आज भी उनसे अच्छा रसायन शास्त्र कोई नहीं पढ़ा सकता। उस समय जब कोचिंग संस्थानों में शिक्षक की बहुत डिमांड थी तब संचालक उनसे कहते थे आप नोट्स दे दीजिए। कुछ किताब लिखने के लिए भी मनाने आते। लेकिन पिताजी सबको मना कर देते। चाहते तो अच्छी मोटी रकम जमा कर सकते थे लेकिन नहीं। उन्हें मुफ्त में पढ़ाना मंज़ूर था लेकिन ये सब नहीं।
जब ये सब सब होता था तब लगता था क्यों नहीं कर लेते ये सब जब सभी लोग ये कर रहे हैं। जवाब कुछ वर्षों बाद मिला। उनसे नहीं लेकिन अपने आसपास हो रहीे घटनाओं से।
ये शायद उनकी इस ईमानदारी का ही नतीजा है कि मेरे अन्दर की ईमानदारी आज भी जिंदा है। फ़िल्म दंगल में आमिर खान अपनी छोटी बेटी से कहते हैं कहीं भी पहुंच जाओ ये मत भूलना की तुम कहाँ से आई हो। अपनी जड़ें मत भूलना। लेकिन ये जीवन की दौड़ में भागते दौड़ते हम ये भूल जाते हैं और याद रखते हैं सिर्फ आज जो हमारे पास है।
माताजी से अच्छा मैनेजमेंट गुरु नहीं हो सकता। घर में अचानक मेहमान आ जायें और खाना खाकर जाएंगे तो आप को समझ नहीं आएगा क्या करें। पर माँ बिना किसी शिकन के मेनू भी तैयार कर लेतीं और सादा खाना परोसकर भी सभी को खुश कर लेतीं।
आजकल तो घर में खाने लोग ऐसे जाते हैं जैसे कभी हम होटल में जाया करते थे। इसको समय का अभाव ही कह सकते हैं क्योंकि रोज़ रोज़ ये बाहर का खाना कोई कैसे खा सकता है ये मुझे नहीं समझ आता। मजबूरी में कुछ दिन चल सकता है लेकिन हर दिन? लेकिन जो ऊपर समय वाली मजबूरी कही है दरअसल वो सच नहीं हो सकती है क्योंकि मेरी टीम में ऐसे लड़के भी हैं जो अकेले हैं और कमाल का खाना बनाते हैं।
किसी भी बालक के पहले गुरु उसके माता-पिता होते हैं। जैसे एक मोबाइल फोन होता है उसमें पहले से एक बेसिक ऑपरेशन के लिये सब होता है और उसको इस्तेमाल करने वाला अपनी जरूरत के हिसाब से उसमें नई एप्प इंस्टॉल करता है। ठीक वैसे ही माता पिता अपने जीवन की जो भी महत्वपूर्ण बातें होती हैं वो हमें देते हैं। आगे जीवन के सफ़र जो मिलते जाते हैं या तो वो नई एप्प हैं या वो पुरानी अप्प अपडेट होती रहती है।
हम अपने माता पिता के अनुभव का लाभ ये सोचकर नहीं लेते की उनका ज़माना कुछ और था और आज कुछ और है। हम ये भूल जाते हैं कि अंत में हम जिससे डील कर रहें वो भी एक इंसान ही है। मुझे स्कूली शिक्षा में बहुत ज़्यादा विश्वास न पहले था और अब तो बिल्कुल भी नहीं रहा। लेक़िन मुझे तराशने में सभी का योगदान रहा है, ऐसा मेरा मानना है। मुझे पत्रकारिता के गुर सिखाने वाले कई गुरु, डिजिटल सीखाने वाले भी, भाषाओं का ज्ञान देने वाले और न जाने क्या क्या। लेक़िन जीवन के जिन मूल्यों को लेकर मैं आज भी चल रहा हूँ वो मुझे मेरे पहले गुरु से ही मिले हैं। हाँ अब मैं उन्ही मूल्यों को आधार बनाकर अपने आगे का मार्ग खोज रहा हूँ और इसमें मेरे नये गुरु मेरा साथ दे रहे हैं।
ऐसी है एक शिक्षक बीच मे प्रकट हो गए और आज मैं जो भी कुछ हूँ वो उनकी ही देन है। लेकिन आज उन्होंने हम सबके जीवन में उथल पुथल मचा रखी है।