कहते हैं पालतू जानवर आपके जीवन में बहुत सी परेशानियों को दूर करता है। बचपन से बहुत से परिवारों के पास जानवर देखे थे। लेक़िन उनसे बड़ा डर भी लगता। पिताजी के परिवार में भी एक दो पालतू जानवर रहे घर में। लेक़िन वो सब हम लोगों के जन्म से पहले।
धर्मेंद्र जी की शुरुआत वाली फिल्में बहुत ही बढ़िया थीं। लेक़िन जबसे वो एक्शन हीरो बने और शोले आदि जैसी फिल्में करीं तबसे उन्होनें कुत्तों के ऊपर बड़ी मेहरबानी दिखाई। आज जब ये लिख रहा हूँ तो कुत्ता/ कुत्ते लिखने में थोड़ा सा संकोच सा हो रहा है। उनसे पहले अंग्रेजों ने भारतीय और कुत्तों के आने जाने पर बैन लगा रखा था।
बचपन की यादें
हमारे पहले पड़ोसी के पास भी एक पालतू कुत्ता था लेक़िन उसकी बहुत ज़्यादा कारस्तानी याद नहीं है। उसी घर में कुछ समय बाद जो परिवार रहने आया उसने कुछ वर्षों पश्चात एक जर्मन शेफर्ड को अपने घर का सदस्य बनाया। उसके अलग ही जलवे थे और उसने कोहराम मचा रखा था। मजाल है कोई उनका गेट खोल के अंदर घुस पाये।
फेसबुक या ट्विटर पर आपको अक्सर ऐसे वीडियो देखने को मिल जाते हैं जिनमे पालतू जानवर के कभी मज़ेदार तो कभी बहुत ही प्यारे प्यारे वीडियो देखने को मिल जाते हैं। जैसे पिछले दिनों दो तीन पालतू गाय के वीडियो देखने को मिले जिनमे मालिक ने परेशान होने का नाटक किया और गौ माता ने दूर से देखकर दौड़ लगा दी अपने सेवक को बचाने के लिये। बेज़ुबान जानवर के प्यार का एक और अनोखा उदाहरण है।
बचपने में ही हम एक परिवार के यहाँ एक जन्मदिन मनाने गये थे। उनके पास शायद दो या तीन पालतू कुत्ते थे। लेक़िन वो उनको बिल्कुल अपने बच्चों के जैसे ही रखती। उनके बढ़िया कपड़े भी बनवाये थे। ये सब हमने पहली बार देखा था तो इसलिये बड़ा अजीब सा लगा। लेक़िन अब तो लोग अपने पालतू पशुओं के जन्मदिन भी धूमधाम से मनाते हैं। उसमें उन पशुओं के अन्य पशु दोस्त भी अपने अपने मालिकों के साथ शिरकत करते हैं।
आपका दोस्त
आज पालतू जानवर पर इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि पिछले दिनों सुशांत सिंह राजपूत के पालतू कुत्ते फ़ज के बारे में पढ़ा था की पटना में कैसे वो जब भी दरवाज़े खुलता है तो देखता है इस उम्मीद में की सुशांत वापस आ गये। दूसरा मुझे सुबह सुबह कई लोग दिखते हैं जो अपने पालतू जानवर को घुमाने निकलते हैं और वो सड़क पर घूमने वाले मोहल्ले के कुत्तों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
एक अधेड़ उम्र दंपत्ति अपने कुत्ते के साथ जब रहते हैं तो उसकी बड़ी हिफ़ाज़त करते हैं। मोहल्ले के कुत्ते अगर पीछे लग जाएं तो वो ऐसे झिड़कते हैं कि अगर इंसान हो तो वापस न आये। लेक़िन ये जानवर तो बस प्यार की उम्मीद लगाये बैठे रहते हैं। आप उनको थपथपा दीजिये और वो आपके दोस्त बन जाते हैं।
लेक़िन उसी सड़क पर एक कन्या भी अपना जर्मन शेफर्ड घुमाती हैं औऱ वो इन सभी आवारा कुत्तों को प्यार करती है। जैसे ही वो दिखती है, सब उसके आसपास घूमने लगते हैं। हाँ, उस दिन उन्हें निराशा होती है जब कन्या की जगह उसके पिताजी ये ज़िम्मेदारी निभाते हैं।
जिस सोसाइटी में मैं इन दिनों रहता हूँ वहाँ एक पढ़े लिखे परिवार के लोग अपने प्रिय पालतू पशु को सोसाइटी में खुला छोड़ देते और वो जगह जगह अपने आने का प्रमाण छोड़ देता। वो तो जब इसके ऊपर हंगामा हुआ तो ये कार्यक्रम बंद हुआ। वैसे जितने भी लोग सुबह अपने पशु को इसके लिये बाहर निकलते हैं वो सभी सार्वजनिक स्थल पर यही करते हैं। ये सभी पढ़े लिखे लोग हैं लेक़िन उनको इस तरह गंदगी फैलाते हुये दुख ही होता है। हम पढ़े लिखे लोग ही अगर अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहें तो काफ़ी सारी समस्याओं से निजात पा सकते हैं।
जब विदेश जाने का मौक़ा मिला तो देखा वहाँ आप अपने पालतू जानवर को लेकर कहीं भी जा सकते हैं। मॉल में, ट्रैन में, मेट्रो में बग़ैर किसी रोकटोक के। हाँ साफसफाई की ज़िम्मेदारी मालिकों की है तो किसी को क्या तकलीफ़ हो सकती है। ब्रिटेन जाने का मौक़ा नहीं मिला तो पता नहीं वहाँ क्या स्थिति है क्योंकि उन्हें भारतीयों और कुत्तों से बहुत परेशानी थी। अब शायद दोनो से प्यार हो गया हो।
और फ़िर एक दिन…
जैसा मैंने बताया, हमारे घर में ऐसा कोई पालतू पशु नहीं था लेक़िन बड़ी इच्छा थी। भोपाल में मेरे मित्र विनोद ने एक दिन फ़ोन करके बोला वो दो बच्चे लाये हैं और मैं एक को ले जाऊं। मुझे उनके घर से अपने घर की यात्रा याद नहीं, लेक़िन उसके आने के बाद माताजी ने खूब ख़ातिर करी हमारी। उन्होंने बोल दिया अगर पालना है उसके सब काम करने को भी तैयार रहो। घर में बाकी लोग भी इसके पक्ष में नहीं थे। शाम तक होते होते एक रिश्तेदार को बुलाया गया औऱ उसको उनके सुपुर्द कर दिया गया।
ये कुत्तों के डर का एक और मज़ेदार किस्सा है। जिस कॉलोनी में हम रहते हैं वहाँ एक दो घरों में पालतू कुत्ते हैं और अक्सर बच्चों की बॉल अगर बाहर चली जाती है तो वो मुँह में दबाकर भाग जाते हैं।
ख़ैर उस शाम गेंद का कुछ लेना देना नहीं था। जिसकी इन दिनों सबसे ज़्यादा पूछपरख है – जी वही कामवाली। उस दिन शायद उसने दर्शन नहीं दिये थे तो पूछने के लिये एक तीन सदस्यीय मंडल ने भेंट करने का कार्यक्रम बनाया। सब कुछ व्यवस्थित चल रहा था की अचानक से गेट खुला और घर से कुत्तों ने बाहर दौड़ लगा दी। उसके बाद दौड़ लग गयी, लोग गिर पड़े और उन पालतू जानवरों की मलकिन ने किसी तरह सब संभाला। हाँ इस सब में वो किसी के हाथ पर चढ़ गयीं।
जब कुत्तों ने आज़ादी की दौड़ लगाई तो दल के दो सदस्यों ने भी मदद की पुकार लगाई। जिसके चलते हमारे घर से कुछ सदस्यों ने ये सारा दृश्य लाइव देखा था। अच्छा वो जो दो प्यारे बेज़ुबान प्राणी कौन थे? एक था पग जो आपको काट नहीं सकता और दूसरा जो शायद काट सकता था लेक़िन काटा नहीं।
सबक़
हमारे पत्रकारिता में कहा जाता है कुत्ते ने आदमी को काटा ये कोई न्यूज़ नहीं है। हाँ आदमी ने कुत्ते को काटा ये समाचार है। दिल्ली पहुंचने के कुछ दिनों बाद इसका नमूना भी मिल गया। नहीं किसी ने किसी को नहीं काटा, लेक़िन कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके सीताराम केसरी के निधन के बाद उनकी पालतू पशु रुचि ने भी प्राण त्याग दिये थे। जब ये ख़बर ये फ़ाइल हो रही थी तो मुझे नहीं पता था अगले दिन ये हर अख़बार में होगी। लेक़िन मुझे अभी बहुत कुछ सीखना बाक़ी था, है।
अभिनेता आमिर ख़ान ने भी एक विवादास्पद बयान दिया था कुछ वर्षों पहले जब उन्होंने कहा था शाहरुख उनके पैरों में बैठा है। लेक़िन बाद में उन्होंने बताया की शाहरुख उनके पंचगनी के नए बंगले के मालिक के कुत्ते का नाम है।
अग़र आपके पास कोई पालतू जानवर है तो अपने अनुभव बतायें और कैसे उसके आने से आपके जीवन में बदलाव आया। ख़ुश रहें।