इस कहानी का भी वही अंत न जो कि पिछली कई कहानियों का हुआ है, इसलिये समय मिलते ही लिखना शुरू कर दिया। मुम्बई में या बाकी बड़े शहरों में गाड़ी चलाना अपने आप में एक अवार्ड जीतने जैसा लगता है। नवी मुम्बई में जहां मैं रहता हूँ वहाँ से उल्टे हाथ पर मुम्बई जाने की सड़क है और सीधे हाथ वाले मोड़ से आप मुम्बई से बाहर निकल सकते हैं। मेरी कोशिश यही रहती है की सीधे हाथ की ओर गाड़ी मुड़े लेकिन काम के चलते उल्टे हाथ पर ज़्यादा जाना होता है। अच्छी टैक्सी सर्विस के चलते उन्हीं की सेवा लेते हैं। और ऐसे ही कल मेरी मुलाकात हुई प्रदीप से।
जब भी में टैक्सी में बैठता हूँ तो अक्सर चालक से बात करता हूँ क्योंकि उनके पास कहानियां होती हैं। दिनभर न जाने कितने अनजान लोग उनकी गाड़ी में बैठते होंगे और सबकी छोटी बड़ी कोई तो कहानी होती होगी। लेकिन मुझे सुनाने के लिये प्रदीप के पास दूसरों के अलावा अपनी भी कहानी थी। पुणे से माता-पिता के देहांत के बाद मुम्बई आये प्रदीप ने गाड़ी साफ करने से अपना सफर शुरू किया। फ़िर गाड़ी चलाना सीखी और टैक्सी चलाना शुरू किया। इसी दौरान उनका संपर्क एक चैनल के बड़े अधिकारी से हुआ और प्रदीप उनके साथ काम करते हुये नई ऊंचाइयों को छुआ। अपनी कई गाड़ियां भी खरीदीं लेकिन कुछ ऐसा हुआ की सब छोड़ कर उन्हें फ़िर से एक नई शुरुआत करनी पड़ी। जीवन एक गीत है तो कोरस है अनुभव
इस बार गाड़ी छोटी थी लेकिन तमन्ना कुछ बड़ा करने की थी। फ़िर से टैक्सी चलाना शुरू किया और अब वो एक सात सीट वाली गाड़ी चलाते हैं। बातों ही बातों में प्रदीप ने बताया की अगर उन्हें लॉटरी लग जाये तो वो ज़मीन खरीद कर उसमें फुटपाथ पर रहनेवालों के लिये घर बनवायेंगे और पास ही एक छोटी सी फैक्टरी भी शुरू करेंगे जिससे की ये लोग पैसा भी कमा सकें। सब अपना कुछ छोटा मोटा काम भी करें। इसके लिये वो पैसे भी बचा रहें हैं और उम्मीद है मुम्बई के आसपास उन्हें ज़मीन मिल जायेगी। दूसरा काम जो प्रदीप करते हैं वो सिग्नल पर खड़े भीख मांगने वाले बच्चों को पैसा न देकर कुछ खाने के लिये देना जैसे बिस्किट या टॉफ़ी। प्रदीप को कभी कोई ज़रूरतमंद मिल जाता है तो वो उसको अपने कमरे में रहने खाने के लिये जगह भी देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पैसा भी। अपने इसी व्यवहार के चलते प्रदीप ने अभी शादी नहीं करी है और उनकी गर्लफ्रैंड का भी इस काम के लिये पूरा समर्थन प्राप्त है। जीवन सिर्फ सीखना और सिखाना है
प्रदीप जब ये सब बता रहे थे तो मैं सोचने लगा हम सब अपने ही स्तर पर अगर उनके जैसे ही कुछ करने लगें तो ये समाज कितना बेहतर बन सकता है। लेकिन हम सोचते ही रह जाते हैं और ये प्रदीप जैसे कुछ कर गुज़रने की चाह रखने वाले चुपचाप काम करते रहते हैं। शायद समाज अगर आज कुछ अच्छा है तो इसमें प्रदीप जैसे कईयों का योगदान होगा न कि मेरे जैसे कई जो बस सही वक्त का इंतजार ही करते रहते हैं।